Friday, November 4, 2011

बौद्धिक बौनेपन का ख़तरा

भारत के संदर्भ में
डाक्टर एम. एस. स्वामीनाथन (जन्म 1925) भारत के मशहूर कृषि वैज्ञानिक हैं। वह भारत में हरित क्रांति (green revolution) के जनक समझे जाते हैं। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। नई दिल्ली के अंग्रेज़ी अख़बार स्टेट्समैन के अंक 4 सितम्बर 1967 में स्वामीनाथन का एक विशेष इंटरव्यू छपा था जो उन्होंने यूएनआई को दिया था। इसमें उन्होंने यह चेतावनी दी थी कि भारत के लोग अपनी खान-पान की आदतों की वजह से प्रोटीन के फ़ाक़े के शिकार हैं। इस बयान में कहा गया था कि -

‘‘अगले दो दशकों में भारत को बहुत बड़े पैमाने पर ज़हनी बौनेपन (intellectual dwarfism) के ख़तरे का सामना करना होगा, अगर प्रोटीन के फ़ाक़े का मसला हल नहीं हुआ।‘‘- ये अल्फ़ाज़ डाक्टर एम.एम.स्वामीनाथन ने यूएनआई को एक इंटरव्यू देते हुए कहे थे, जो इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली के डायरेक्टर रह चुके हैं। उन्होंने कहा था कि संतुलित आहार का विचार हालांकि नया नहीं है लेकिन दिमाग़ के विकास के सिलसिले में उसकी अहमियत एक नई बायलोजिकल खोज है। अब यह बात निश्चित है कि 4 साल की उम्र में इंसानी दिमाग़ 80 प्रतिशत से लेकन 90 प्रतिशत तक अपने पूरे वज़न को पहुंच जाता है और अगर उस नाज़ुक मुद्दत में बच्चे को मुनासिब प्रोटीन न मिल रही हो तो दिमाग़ अच्छी तरह विकसित नहीं हो सकता। डाक्टर स्वामीनाथन ने कहा कि भविष्य में विभिन्न जातीय वर्गों के ज़हनी फ़र्क़ का तुलनात्मक अध्ययन इस दृष्टिकोण से भी करना चाहिये। अगर कुपोषण और प्रोटीन के फ़ाक़े के मसले पर जल्दी तवज्जो न दी गई तो अगले दो दशकों में हमें यह मन्ज़र देखना पड़ेगा कि एक तरफ़ सभ्य क़ौमों की बौद्धिक ताक़त (intellectual power) में तेज़ी से इज़ाफ़ा हो रहा है और दूसरी तरफ़ हमारे मुल्क में ज़हनी बौनापन (intellectual dwarfs) बढ़ रहा है। नौजवान नस्ल को प्राटीन के फ़ाक़े से निकालने में अगर हमने जल्दी न दिखाई तो नतीजा यह होगा कि हर रोज़ हमारे देष में 10,00,000 दस लाख बौने वजूद में आयेंगे। इसका बहुत कुछ असर हमारी नस्लों पर तो मौजूदा वर्षों में ही पड़ चुका होगा।

पूछा गया कि इस मसले का हल क्या है ?

डाक्टर स्वामीनाथन ने जवाब दिया कि सरकार को चाहिये कि वह अपने कार्यक्रमों के ज़रिये जनता में प्रोटीन के संबंध में चेतना जगाये (protein conciousness) और इस सिलसिले में लोगों को जागरूक बनाये।

ग़ैर-मांसीय आहार में प्रोटीन हासिल करने का सबसे बड़ा ज़रिया दालें हैं और जानवरों से हासिल होने वाले आहार मस्लन दूध में ज़्यादा आला क़िस्म का प्रोटीन पाया जाता है। प्रोटीन की ज़रूरत का अन्दाज़ा मात्रा और गुणवत्ता दोनों ऐतबार से करना चाहिए। औसत विकास के लिए प्रोटीन के समूह में 80 प्रकार के अमिनो एसिड होना (amino acid) ज़रूरी हैं। उन्होंने कहा कि ग़ैर-मांसीय आहार में कुछ प्रकार के एसिड मस्लन लाइसिन (lysine) और मैथोनाइन (methionine) का मौजूद होना आम है जबकि ज्वार में लाइसिन की ज़्यादती उन इलाक़ों में बीमारी का कारण रही है जहां का मुख्य आहार यही अनाज है।

हालांकि जानवरों से मिलने वाले आहार का बड़े पैमाने पर उपलब्ध होना अच्छा है लेकिन उनकी प्राप्ति बड़ी महंगी है क्योंकि वनस्पति आहार को इस आहार में बदलने के लिए बहुत ज़्यादा एनर्जी बर्बाद करनी पड़ती है। एग्रीकल्चरल इंस्टीच्यूट में दुनिया भर के सभी हिस्सों से गेहूं और ज्वार की क़िस्में मंगवाकर जमा की गईं और इस ऐतबार से उनका विश्लेषण किया गया कि किस क़िस्म में कितने अमिनो एसिड पाए जाते हैं ?

रिसर्च से इनमें दिलचस्प फ़र्क़ मालूम हुआ। इनमें प्रोटीन की मात्रा 7 प्रतिशत से लेकर 16 प्रतिशत तक मौजूद थी। यह भी पता चला कि नाइट्रोजन की खाद इस्तेमाल करके आधे के क़रीब तक उनका प्रोटीन बढ़ाया जा सकता है।

किसानों के अन्दर प्रोटीन के संबंध में चेतना पैदा करने के लिए डाक्टर स्वामीनाथन ने यह सुझाव दिया था कि गेहूं की ख़रीदारी के लिए क़ीमतों को इस बुनियाद पर तय किया जाए कि क़िस्म में कितना प्रोटीन पाया जाता है। उन्होंने बताया कि एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट ग़ल्ले के कुछ बाज़ारों में प्रोटीन जांच की एक सेवा शुरू करेगा और जब इत्मीनान बक्श तथ्य जमा हो जाएंगे तब यह पैमाना (creterion) क़ीमत तय करने की नीति में शामिल किया जा सकेगा। ग़ल्ले की मात्रा को बढ़ाने और उसकी क़िस्म (quality) को बेहतर बनाने के दोतरफ़ा काम को नस्ली तौर इस तरह जोड़ा जा सकता है कि ज़्यादा फ़सल देने वाले और ज़्यादा बेहतर क़िस्म के अनाज, बाजरे और दालों की खेती की जाए। बौद्धिक बौनेपन (intellectual dwarfism) का जो ख़तरा हमारे सामने खड़ा है, उसका मुक़ाबला करने का यह सबसे कम ख़र्च और फ़ौरन क़ाबिले अमल तरीक़ा है। (स्टेट्समैन, दिल्ली, 4 सितम्बर 1967)
डाक्टर स्वामीनाथन के उपरोक्त बयान के प्रकाशन के बाद विभिन्न अख़बारों और पत्रिकाओं में इसकी समीक्षा की गई। नई दिल्ली के अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस (7 सितम्बर 1967) ने अपने संपादकीय में जो कुछ लिखा था, उसका अनुवाद यहां दिया जा रहा है-
‘इंडस्ट्री की तरह कृषि में भी हमेशा यह मुमकिन नहीं होता कि एक क्रियान्वित नीति के नतीजों का शुरू ही में अन्दाज़ा किया जा सके। इस तरह जब केन्द्र की सरकार ने अनाज की क़ीमत के सिलसिले में समर्थन नीति अख्तियार करने का फ़ैसला किया तो मुश्किल ही से यह सन्देह किया जा सकता था कि ग़ल्ले की बहुतायत के बावजूद प्रोटीन के फ़ाक़े (protein hunger) का मसला सामने आ जाएगा-जैसा कि इंडियन एग्रीकल्चरल इंस्टीच्यूट के डायरेक्टर डाक्टर स्वामीनाथन ने निशानदेही की है। ग़ल्लों पर ज़्यादा ऐतबार की ऐसी स्थिति पैदा होगी जिससे अच्छे खाते-पीते लोग भी कुपोषण (malnutrition) में मुब्तिला हो जाएंगे। जो लोग प्रोटीन के फ़ाक़े से पीड़ित होंगे , शारीरिक कष्टों के अलावा उनके दिमाग़ पर भी बुरे प्रभाव पड़ेंगे। डाक्टर स्वामीनाथन के बयान के मुताबिक़ यह होगा कि बच्चों की बौद्धिक क्षमता पूरी तरह विकसित न हो पाएगी। क्योंकि इनसानी दिमाग़ अपने वज़न का 80 प्रतिशत से लेकर 90 प्रतिशत तक 4 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते पूरा कर लेता है, इसलिए इस कमी के नतीजे में एक बड़ा नुक्सान मौजूदा बरसों में ही हो चुका होगा। जिसका नतीजा यह होगा कि हमारे देश में बौद्धिक बौनापन (intellectual dwarfism) वजूद में आ जाएगा। इस चीज़ को देखते हुए मौजूदा कृषि नीति पर पुनर्विचार ज़रूरी है।
मगर वे पाबंदियां (limitations) भी बहुत ज़्यादा हैं जिनमें सरकार को अमल करना होगा। सबसे पहले यह कि कृषि पैदावार को जानवरों से मिलने वाले प्रोटीन में बदलना बेहद महंगा है। सरकार ने हालांकि संतुलित आहार (balanced diet) और मांस, अंडे और मछली के ज़्यादा मुहिम चलाई है लेकिन उसके बावजूद जनता आहार संबंधी अपनी आदतों (food habits) को बदलने में बहुत सुस्त है।
आम तौर पर भूख का मसला, जानवरों को पालने की मुहिम चलाने में ख़र्च का मसला और लोगों की आहार संबंधी आदतों (food habits) को बदलने की कठिनाई वे कारण हैं जिनकी वजह से सरकार को कृषि की बुनियाद पर अपनी नीति बनानी पड़ती है, लेकिन निकट भविष्य को देखते हुए ऐसा मालूम होता है कि सरकार स्वामीनाथन की चेतावनी को नज़रअन्दाज़ न कर सकेगी। ऐसा मालूम होता है कि दूरगामी परिणाम के ऐतबार से कृषि नीति की कठिनाईयों को अर्थशास्त्र के बजाय विज्ञान हल करेगा। अनुभव से पता चला है कि अनाज ख़ास तौर पर गेहूं को प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाती है।

इसके बावजूद यह बात संदिग्ध है कि सिर्फ़ ग़ल्ले की पैदावार के तरीक़े में तब्दीली इस समस्या का समाधान साबित हो पाएगी। जब तक प्रोटीन की उत्तम क़िस्में रखने वाले गेहूं न खोज लिए जाएं। जब तक ऐसा न हो सरकार को चाहिए कि दालों और पशुपालन को इसी तरह प्रोत्साहित करे जिस तरह वह अनाज को प्रोत्साहित करती है।‘ (इंडियन एक्सप्रेस, 7 सितम्बर 1967)
जैसा कि मालूम है कि भारत को अगले बीस बरसों में एक नया और बहुत भयानक ख़तरा पेश आने वाला है। यह ख़तरा कृषि केन्द्र के डायरेक्टर के अल्फ़ाज़ में ‘बौद्धिक बौनेपन‘ का ख़तरा है। इसका मतलब यह है कि हमारी आने वाली नस्लें जिस्मानी ऐतबार से ज़ाहिरी तौर पर तो बराबर होंगी लेकिन बौद्धिक योग्यता के ऐतबार हम दुनिया की दूसरी सभ्य जातियों से पस्त हो चुके होंगे।
यह ख़तरा जो हमारे सामने है, उसकी वजह डाक्टर स्वामीनाथन के अल्फ़ाज़ में यह है कि हमारा आहार में प्रोटीन की मा़त्रा बहुत कम होती है। यहां की आबादी एक तरह के प्रोटीन के फ़ाक़े में मुब्तिला होती जा रही है। प्रोटीन भोजन का एक तत्व है जो इनसानी जिस्म के समुचित विकास के लिए अनिवार्य है। यह प्रोटीन अपने सर्वोत्तम रूप में मांस से हासिल होता है। मांस का प्रोटीन न सिर्फ़ क्वालिटी में सर्वोत्तम होता है बल्कि वह अत्यंत भरपूर मात्रा में दुनिया में मौजूद है और सस्ता भी है।

समापन
हिस्ट्री ऑफ़ थॉट का अध्ययन बताता है कि विचार के ऐतबार से इनसानी इतिहास के दो दौर हैं। एक विज्ञान पूर्व युग (pre-scientific era) और दूसरा विज्ञान के बाद का युग(post-scientific era)। विज्ञान पूर्व युग में लोगों को चीज़ों की हक़ीक़त मालूम न थी, इसलिए महज़ अनुमान और कल्पना के तहत चीज़ों के बारे में राय क़ायम कर ली गई। इसलिए विज्ञान पूर्व युग को अंधविश्वास का युग (age of superstition) कहा जाता है। उपरोक्त ऐतराज़ दरअस्ल उसी प्राचीन युग की यादगार है। यह ऐतराज़ दरअस्ल अंधविष्वासपूर्ण विचारों की कंडिशनिंग के तहत पैदा हुआ, जो परम्परागत रूप से अब तक चला आ रहा है।

अंधविश्वास के पुराने दौर में बहुत से ऐसे विचार लोगों में प्रचलित हो गए जो हक़ीक़त के ऐतबार से बेबुनियाद थे। विज्ञान का युग आने के बाद इन विचारों का अंत हो चुका है। मस्लन सौर मण्डल बारे में पुरानी जिओ-सेन्ट्रिक थ्योरी ख़त्म हो गई और उसकी जगह हेलिओ-सेन्ट्रिक थ्योरी आ गई। इसी तरह मॉडर्न केमिस्ट्री के आने के बाद पुरानी अलकैमी ख़त्म हो गई। इसी तरह मॉडर्न एस्ट्रोनोमी के आने के बाद पुरानी एस्ट्रोलोजी का ख़ात्मा हो गया, वग़ैरह वग़ैरह। उपरोक्त ऐतराज़ भी इसी क़िस्म का एक ऐतराज़ है और अब यक़ीनी तौर पर उसका ख़ात्मा हो जाना चाहिए।

गैलीलियो 17वीं षताब्दी का इटैलियन साइंटिस्ट था। उसने पुराने टॉलमी नज़रिये से मतभेद करते हुए यह कहा कि ज़मीन सौर मण्डल का केन्द्र नहीं है, बल्कि ज़मीन एक ग्रह है जो लगातार सूरज के गिर्द घूम रहा है। यह नज़रिया मसीही चर्च के अक़ीदे के खि़लाफ़ था। उस वक़्त चर्च को पूरे यूरोप में प्रभुत्व हासिल था। सो मसीही अदालत में गैलीलियो को बुलाया गया और सुनवाई के बाद उसे सख़्त सज़ा दी गई। बाद में उसकी सज़ा में रियायत करते हुए उसे अपने घर में नज़रबंद कर दिया गया। गैलीलियो उसी हाल में 8 साल तक रहा, यहां तक कि वह 1642 ई. में मर गया।

इस वाक़ये के तक़रीबन 400 साल बाद मसीही चर्च ने अपने अक़ीदे पर पुनर्विचार किया। उसे महसूस हुआ कि गैलीलियो का नज़रिया सही था और मसीही चर्च का अक़ीदा ग़लत था। इसके बाद मसीही चर्च ने साइंटिफ़िक कम्युनिटी से माफ़ी मांगी और अपनी ग़लती का ऐलान कर दिया। यही काम उन लोगों को करना चाहिए जो अतिवादी रूप से वेजिटेरियनिज़्म के समर्थक बने हुए हैं। यह नज़रिया अब साइंटिफ़िक रिसर्च के बाद ग़लत साबित हो चुका है। अब इन लोगों को चाहिए कि वे अपनी ग़लती स्वीकार करते हुए अपने नज़रिये को त्याग दें, वर्ना उनके बारे में कहा जाएगा कि वे विज्ञान के युग में भी अंधविष्वासी बने हुए हैं।
इसे पढने के लिए यहाँ क्लिक करें 

The message of Eid-ul- adha विज्ञान के युग में कुर्बानी पर ऐतराज़ क्यों ?,

अन्धविश्वासी सवालों के वैज्ञानिक जवाब ! - Maulana Wahiduddin Khan (Part-2)

Wednesday, June 15, 2011

निगमानंद का ख़ून मौजूद है ब्लॉग महोत्सव में मिलने वाले मोमेंटो पर, निशंक जी के कारण



‘निगमानंद के निधन के लिए निशंक सरकार दोषी’
नई दिल्ली ! गंगा में अवैध खनन के विरोध में अनशन की भेंट चढ़े हरिद्वार के स्वामी निगमानंद की मौत का मामला राजनीतिक तूल पकड़ता जा रहा है। केंद्रीय पर्यावरण व वन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयराम रमेश ने स्वामी के दुखद निधन के लिए उत्तराखंड की भाजपा सरकार को दोषी ठहराया है। जयराम ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को डेढ़ साल पहले इस मसले पर पत्र लिखा था लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।

आज समाचार पत्रों में यह चर्चा आम है। राजनेता तो राजनीति करेंगे ही। गाय मरे या सन्यासी ये लोग अपनी राजनीति का मौक़ा ढूंढते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि एक ब्लॉगर हर जगह अपने ब्लॉग के लिए एक पोस्ट ढूंढ लेता है। न तो राजनीति गंदी है और न ही ब्लॉगिंग कोई बुरी बात है। बुरी बात यह है कि ब्लॉगर्स का मक़सद सच को सामने लाने के बजाय महज़ ईनाम बांटना और बटोरना ही रह जाए बिल्कुल उधार की चीनी की तरह।
दिल्ली में जिस समय उत्तराखंड के मुख्यमंत्री दिल्ली के ब्लॉगोत्सव 2010 के समारोह में हिंदी ब्लॉगर्स को ईनाम का लॉलीपॉप बांट रहे थे। उस समय स्वामी निगमानंद जी अनशन पर थे। मुख्यमंत्री को उस समय होना चाहिए था स्वामी जी के पास और वह हॉल में बैठे ‘कलाकारों का नाटक‘ देख रहे थे। 
मुख्यमंत्री की लापरवाही निगमानंद जी के प्राण जाने का कारण बनी। निगमानंद का ख़ून निशंक जी के हाथों पर है, इसमें किसी को कोई भी शंका नहीं है। 
ब्लॉगर्स को इन्हीं के ‘हाथों‘ ईनाम मिले हैं। सो अगर आप ग़ौर से देखेंगे तो हरेक मोमेंटो पर निगमानंद के ख़ून के धब्बे आपको ज़रूर मिलेंगे।
अब यही हिंदी ब्लॉगर हरेक जगह अफ़सोस जता रहे हैं और एक बूढ़े जनवादी महोदय उन्हें ‘शहीद‘ क़रार दे रहे हैं और यह स्वीकारते ही नहीं हैं कि उनके मर्डर में एक हिस्सा हम ईनामख़ोर ब्लॉगर्स का भी है।
अब जब भी आपकी नज़र दिल्ली में मिले उस मोमेंटो और मुख्यमंत्री निशंक पर जाएगी तो आपको निगमानंद का ख़ून हमेशा वहां नज़र आएगा। अब यह मोमेंटो किसी ब्लॉगर की उपलब्धि की याद के साथ साथ निगमानंद के ख़ून की याद भी सदा दिलाता रहेगा। इस मोमेंटो को कूड़े के ढेर पर फेंक दे, ऐसा कोई ब्लॉगर इन ईनाम के लालचियों में है नहीं।
यही है हिंदी ब्लॉगर्स का भ्रष्टाचार। ख़ुद भ्रष्ट हैं और दूसरों को नियम-क़ानून बता रहे हैं।
आदमी ज़मीर बेच डाले तो फिर कुछ ही करता फिरे।
सुना है कि ऐसा ही ब्लॉगोत्सव दोबारा फिर होने वाला है।
ख़ुदा ख़ैर करे, देखिए इस बार ‘हाथ किसके और कैसे होंगे ?

Saturday, June 11, 2011

सबसे ज़्यादा ईमान वाला कौन ?

अल्लाह के रसूल सल्-लल्लाहु वसल्लम ने फ़रमाया , 'सबसे ज़्यादा ईमान वाला शख़्स वह है जो अपनी औरत के साथ नर्मी और मुहब्बत का बर्ताव करे और तुम में बेहतर वह शख़्स वह है जो अपनी औरत के साथ बेहतर हो।'
किताब - मियाँ बीवी के हुक़ूक़ पृ. 24 लेखक : हज़रत मौलाना अब्दुल ग़नी , जसीम बुक डिपो दिल्ली

Saturday, June 4, 2011

सच्ची सुंदरता क्या है ? Real Beauty - Dr. Anwer Jamal

डा. अनवर जमाल और BK संगीता जी आध्यात्मिक चर्चा करते हुए 
ख़ूबसूरत चेहरा और सुंदर शरीर किसे नहीं भाता लेकिन ज़्यादातर यह एक क़ुदरती तौर पर ही लोगों को मिलता है। किसी के हाथ में नहीं है कि वह चाहे तो अपनी लंबाई बढ़ा ले। मॉडलिंग करने वाले औरत-मर्द पैदाइशी तौर पर ही ख़ूबसूरत होते हैं। वे तो सिर्फ़ उसकी देखभाल करके उसे निखारते भर हैं। जो चीज़ आदमी के अपने बस में न हो, वह उसकी ख़ूबसूरती जांचने का सही पैमाना नहीं हो सकती, ख़ासकर तब जबकि इंसान मात्र शरीर ही नहीं होता। उसमें मन-बुद्धि और आत्मा जैसी हक़ीक़तें भी पोशीदा होती हैं।
सुंदर व्यक्तित्व कहलाने का हक़दार वही हो सकता है, जिसके विचार और और कर्म अच्छे हों। जिसके विचार सकारात्मक हैं, उसका कर्म भी सार्थक होगा, यह तय है। ऐसा इंसान प्रेम, शांति, सहयोग और उपकार के गुणों से युक्त होता है। दुख भोग रही दुनिया के दुखों को अपनी हद भर कोशिश करता है। दूसरों की भलाई के लिए और अपने देश की रक्षा में अपनी जान देने वाले इंसान इन्हीं लोगों में से होते हैं।

इंसान के मन में प्रायः चार प्रकार के विचार पाए जाते हैं
1.ज़रूरी विचार- अपने वुजूद को बाक़ी रखने के लिए इंसान को खाने-पीने, मकान-लिबास, शिक्षा और इलाज की ज़रूरत होती है। इन्हें पाने के लिए जो विचार होते हैं। वे ज़रूरी विचार की श्रेणी में आते हैं।
2. व्यर्थ विचार- अपने अतीत और अपने भविष्य के बारे में अत्यधिक सोचना इसका उदाहरण है।
3. नकारात्मक विचार- ग़ुस्सा, अहंकार, जलन और लालच इंसान को नकारात्मकता से भर देते हैं।
4. सकारात्मक विचार- नकारात्मक विचारों के विपरीत प्रेम, शांति और परोपकार के विचार सकारात्मक विचार कहलाते हैं। इंसान की कामयाबी की बुनियाद और सभ्यता के विकास का आधार यही विचार होते हैं। सकारात्मक विचार ही इंसान को सबके लिए उपयोगी बनाते हैं और समाज में लोकप्रियता दिलाते हैं।
अपने विचारों को जानने और संवारने की यह कला ‘थॉट मैनेजमेंट‘ कहलाती है। इस कला के माध्यम से आदमी अपने मन को सुमन बना सकता है। एक सुंदर व्यक्तित्व कहलाने का हक़दार वास्तव में वही है जिसने अपने मन को सुमन बना लिया है।

Saturday, May 28, 2011

डा. राम मनोहर लोहिया की जन्मशती के मौक़े पर बयान एक अटल सत्य का -Dr. Anwer Jamal


 
जब आदमी को अपनी पैदाइश का असली मक़सद और उसे पाने का सही ज्ञान नहीं होगा तो चाहे उसकी नीयत कितनी भी नेक क्यों न हो ?
जीवन भर वह ख़ुद भी भटकेगा और दूसरों को भी भटकाएगा।इस्लाम में दीक्षित होना एक निंदनीय सा कर्म मान लिया जाता है और धर्म जो दे सकता था, उसे छोड़कर अपनी समझ से अपनी सुविधानुसार बहुत से दर्शन गढ़ लिए जाते हैं और अफ़सोस यह कि फिर उनका पालन करना भी वे अनिवार्य नहीं मानते। इंसान को सोचने-समझने की आज़ादी है और उसकी यही आज़ादी उसके लिए जी का जंजाल है क्योंकि इंसान इसका इस्तेमाल मालिक के हुक्म के मुताबिक़ न करके अपने मन के मुताबिक़ करता है। हरेक का मन और उसका चिंतन अलग है, सो रास्ते और दिशाएं भी अलग हो जाते हैं और उनके फ़ायदे और मक़सद भी। इस श्राप से मुक्ति दिला सके ऐसा कोई दर्शन दुनिया में न तो था और न है और न ही होगा।
कल्याण केवल धर्म में है, इस्लाम में है।
जो मानना चाहे मान ले, सत्य तो यही है।

यह पक्तियां लोकसंघर्ष पत्रिका के एक लेख को देखकर कहनी पड़ीं।
लोग भटकते रहें और हम देखते रहें, हमसे ऐसा होता भी तो नहीं।
इस लिंक पर जाकर आप भी उस लेख को देखिए जिसमें डा. लोहिया के चिंतन और उनकी कार्यप्रणाली का एक संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी विचारधारा के विरोधाभास और उसकी नाकामी को रेखांकित किया गया है।

Thursday, May 26, 2011

दुखद यह है कि इंसान ने अपनी शक्ति ख़ुदा का हुक्म भुलाकर इस्तेमाल की और दुनिया में तबाही फैल गई


ख़ुदा ने यह दुनिया इसलिए नहीं बनाई है कि इंसान यहां सदा रहे बल्कि उसने यह दुनिया अपने किसी बड़े मक़सद के लिए बनाई है और इंसान को भी उसने उसी बड़े मक़सद के लिए तैयार करने के लिए इस दुनिया में अस्थायी रूप से छोड़ रखा है। उसने इंसान को शक्ति दी और अपना हुक्म दिया। इंसान ने अपनी शक्ति उसका हुक्म भुलाकर इस्तेमाल की और दुनिया में तबाही फैल गई। दुखद यह है कि इंसान आज भी यही कर रहा है। अपनी तबाही का ज़िम्मेदार इंसान ख़ुद है कि इंसान वह करने के लिए तैयार नहीं है जिसे करने के लिए उसे पैदा किया गया और इस दुनिया में उसे रखा गया।
यह पंक्तियाँ श्री महेश बार्माटे  'माही' जी की पोस्ट पढ़कर लिखनी पडीं , जिसका लिंक यह है :

Sunday, May 15, 2011

अल्लामा इक़बाल की शायरी और जीवन संदेश Art of living

अल्लामा इक़बाल की शायरी को मैं इसलिए पसंद करता हूँ कि उसमें निराशा के लिए कोई जगह नहीं है. 
अल्लामा के बाज़ शेर तो सोने से लिखे जाने के लायक हैं . ऐसा ही एक शेर यह भी है . 
अल्लामा इकबाल फ़रमाते हैं कि


बादे मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब

ये हवाएं तुझे ऊँचा उठाने के लिए हैं


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शब्दार्थ ,
बादे मुख़ालिफ़-विपरीत हवा , उक़ाब-बाज़, एक परिंदा

आदमी को विपरीत हालात में भी अपनी सकारात्मकता बनाए रखनी चाहिए ।
अगर आदमी ऐसा कर पाए तो वह देखेगा कि मुश्किल बीत जाने के बाद उसमें 'कुछ गुण और कुछ ख़ूबियाँ' ऐसी उभर आई हैं जो पहले दबी हुई थीं । यही ख़ूबियाँ आदमी को समाज में ऊँचा उठाती हैं और सम्मान दिलाती हैं ।
महापुरूषों का आदर हम उनके उन गुणों के कारण ही करते हैं जो कि मुश्किल हालात में उनके अंदर हम देखते हैं और प्रेरणा पाते हैं।
इस बात को ढंग से जान लेने के बाद निराशा , पलायन और आत्महत्या जैसे भाव और कर्म के लिए कोई गुंजाइश बाक़ी नहीं बचती ।
हमारे देश और हमारे समाज के लिए आज ऐसी सोच की शदीद ज़रूरत है ।

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इस शेर को एक और एंगल से भी हमने आज ही बयान किया है बल्कि सच यह है कि पहले वही लिखा था , इसे बाद में लिखा है .
आप देखिये इस लिंक पर 

Friday, May 6, 2011

किस काम का अंजाम क्या होता है ?

जिस राष्ट्र में दूसरों का हक़ मारने और किसी अन्य के हक़ पर क़ब्ज़ा करने का चलन आम हो जाय, उसमें अल्लाह दुश्मन का ख़ौफ़ डाल देता है। जिस राष्ट्र में व्यभिचार फैल जाए वह विनाश को पहुंच जाता है। जहां नाप-तौल में बेईमानी हो वहां कमाई की बरकत ख़त्म हो जाती है। जहां ग़लत और जबरन फ़ैसले हों वहां ख़ून-ख़राबा होता है और जो क़ौम वायदे तोड़ती है, उस पर दुश्मन का क़ब्ज़ा हो जाता है।

Monday, May 2, 2011

...ज़रा सोचिये कि क्या आप वास्तव में 'मार्ग' पर हैं ? The Path

इंसान के जीवन का मकसद वही देगा जो जिसने उसे जीवन दिया. इंसान और अन्य जीवों को खाने की ज़रुरत है  तो हम देखते हैं कि भोजन हमारे लिए उपलब्ध है. हमें पीने की आवश्यकता है. और हमारे लिए पानी उपलब्ध है. हमें सांस लेने की ज़रुरत है, और हमारे लिए काफी वायु उपलब्ध है. लेकिन एक चीज़ हे जिसमें हम अन्य जीवों से भिन्न हैं. और वो है  हमारी सोचने की क्षमता, जवाबों की तलाश है. अब ज़ाहिर सी बात हे, अगर हमारी भौतिक आवश्यकताओं के लिए सब कुछ उपलब्ध हे, तो हमारी मानसिक और आध्यात्मिक ज़रूरतों के लिए भी कुछ उपलब्ध होना चाहिए. यही ज़रुरत वही के ज़रिये पूरी होती है.

इस सच को कहा है हमारे भाई मुशफिक ने इस पोस्ट पर

जीवन का एक मक़सद है, उसे पूरा कीजिए ताकि आपका जन्म सफल हो


Wednesday, April 27, 2011

अपनी बात रखने का एक तरीका यह भी है Usefull Knowledge

आज हमें एक कमेन्ट मिला 'अंत में भला किन लोगों का होता है ?'
 पर . इसमें काफी मालूमात भरी हैं . आप इसे देखिये . मैं इसे रिकॉर्ड के लिए यहाँ महफूज़ कर रहा हूँ .

अपनी बात रखने का एक तरीका यह भी तो है आप अपनी अच्‍छी बातें हमें पढवाओ, ऐसे


कुछ अकली तर्क- मुहम्‍मद सल्‍ल. के ईशदूत और संदेशवाहक होने की सत्यता पर 


पैगंबर की गैरमुस्लिमों पर दयालुता के कुछ उदाहरण 


हज़रत मुहम्मदके विषय में संक्षिप्त वर्णन Yusuf Estes


मुहम्मद सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम :जन्म और पालन-पोषण 


मुहम्मद-उन पर शांति एवं आशीर्वाद हो-की कुछ शिक्षाएं 


मुहम्मद-शांति हो उन के व्यवहार के विषय में कुछ शब्द: 


पैगंबर मुहम्मद ने क्या आदेश दिया ? Yusuf Estes


सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे में गवाहियाँ comments


अल्‍लाह के पैग़म्बर के कुछ शिष्टाचार (आदाबे जि़न्‍दगी) 


मुहम्मद सल्ल. की -ईश्दूतत्व की पुष्टि करने वाले मूलग्रंथों से कुछ प्रमाण 


हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बीवियाँ 


मुहम्‍मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जीवन के परिणाम
 

Thursday, April 14, 2011

ईमान वाले बंदों की ज़िम्मेदारी है बुराई का ख़ात्मा करना

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-
'तुम में से जो आदमी किसी बुराई को देखे, उसे अपने हाथ (ताकत) से बदल दे, अगर यह भी मुमकिन न हो सके तो ज़ुबान से उसे बदलने की कोशिश करे, अगर यह भी मुमकिन न हो तो दिल ही से सही और यह ईमान का सबसे कमज़ोर दर्जा है।' -मुस्लिम

Wednesday, April 13, 2011

'सारी दुनिया कुछ दिन का सामान है और इस दुनिया में सबसे अच्छी चीज़ नेक बीवी है।'

दुनिया की इस हक़ीक़त को समझाया है प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने। सारी सभ्यता की बुनियाद औरत और मर्द के आपसी रिश्ते पर ही है । सभ्यता के संतुलन के लिए लाज़िमी है कि औरत और मर्द के क़ुदरती रिश्ते में कोई बिगाड़ न आने पाए। यह रिश्ता बना रहे और मानव सृष्टि चलती रहे , ईश्वर यही चाहता है । यही वजह है कि ईश्वर ने औरत और मर्द के दरम्यान स्वाभाविक आकर्षण भी रखा और अपनी वाणी के द्वारा इस रिश्ते को क़ायम करने और इसे अदा करने का तरीक़ा भी बताया। ईश्वर की वाणी की पहचान भी यही है कि उसमें इस रिश्ते को अच्छे ढंग से निभाने की शिक्षा दी गई होगी और इससे पलायन करने को वर्जित ठहराया होगा। जो लोग पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते में दोष बताएं और सोचें कि घर-गृहस्थी के पचड़े में पड़ने से क्या फ़ायदा ?
अब इसके बाद वे जो भी करेंगे , उसमें संतुलन का पहलू नहीं पाया जाएगा । इनमें से कुछ लोग अपनी मौज-मस्ती के लिए आज़ाद यौन संबंध बनाते हैं और समाज में यौन रोग फैलाते हैं और अवैध संतानों को जन्म देकर उन्हें लावारिस छोड़ देते हैं और कुछ लोग सन्यास ले लेते हैं। ये लोग घरों से निकल खड़े होते हैं अपने बूढ़े माँ-बाप को बेसहारा छोड़कर। जिनसे इन्होंने जन्म लिया , उनकी भी सेवा ये लोग नहीं करते और न ही आगे किसी को जन्म देते हैं । वास्तव में ये दोनों ही लोग मनुष्य शरीर और जीवन के बारे में उस रचनाकार प्रभु की योजना को समझ नहीं पाए।
व्याभिचार और सन्यास, इस्लाम में दोनों ही हराम हैं और विवाह करना और औलाद की अच्छी परवरिश करना अनिवार्य है , अगर किसी के साथ कोई मजबूरी हो तो वह अपवाद है।
नेक बीवी भी दुनिया की सबसे बड़ी पूंजी है और नेक औलाद भी और यह पूंजी तभी मिलती है जबकि आदमी ईश्वर के आदेश का पालन करे, धर्म का मर्म भी यही है ।
यह हदीस 'मुस्लिम' में है ।

Monday, April 11, 2011

जुल्म और लालच Save Yourself

अल्लाह के रसूल (स.) ने फ़रमाया-
‘ज़ुल्म से बचते रहो, क्योंकि ज़ुल्म क़ियामत के दिन अंधेरे के रूप में ज़ाहिर होगा और लालच से भी बचते रहो, क्योंकि तुम से पहले के लोगों की बर्बादी लालच से हुई है। लालच की वजह ही से उन्होंने इन्सानों का खून बहाया और उनकी जिन चीज़ों को अल्लाह ने हराम किया था, उन्हें हलाल कर लिया।‘  -मुस्लिम

इस हदीस में पहले ज़ुल्म से बचने को कहा गया है और बताया गया है कि ज़ुल्म आखि़रत में बहुत से अंधेरों का रूप इख्तियार करेगा और ज़ालिम इंसान अंधेरों में भटकता हुआ जहन्नम में जा गिरेगा। इसके बाद लालच से बचने की ताकीद की गई है। क्योंकि दुनिया और मालो जायदाद का लालच ही बेशुमार गुनाहों की जड़ है। इसी से इंसान आखि़रत को भूल जाता है और दीन के रास्ते में कुरबानी देने से कतराता है। लोगों के हक़ मारता है और इंसानों पर ज़ुल्म करता है। इतना ही नहीं, वह उनके माल और इज़्ज़त पर भी हाथ डालता है और वह खून-ख़राबा भी करने लगता है। एक दूसरी हदीस में है-

‘जिस किसी ने अपने भाई पर कोई ज़ुल्म किया हो, उसे चाहिए कि आज ही अपने लिए राह निकाल ले यानि हक़ अदा कर दे या माफ़ करा ले। इससे पहले-पहले कि वह दिन आए जब कि न दीनार होगा और न दिरहम। अगर नेकियां होंगी तो उसके किए हुए जुल्मों के मुताबिक़ उस से ले ली जाएंगी और अगर नेकियां न होंगी तो जिन पर ज़ुल्म हुआ है, उनके गुनाह उस पर डाल दिए जाएंगे। जिसका नतीजा यह होगा कि वह जहन्नम में जा पड़ेगा।‘ -बुख़ारी


Friday, April 8, 2011

बोलने से पहले खूब सोच लेने से आदमी बहुत सी बुराईयों से बच जाता है The Word

अल्लाह के रसूल स. को मैराज की रात कर्मों के फल मिलने को प्रतीक रूप में दिखाया गया । उनमें से एक वाक़या यह है :
मैराज के दौरान अल्लाह के रसूल स. बड़े डील डौल वाले बैल के पास से गुज़रे। आपने देखा कि वह एक छोटे सूराख़ से निकलता है , फिर वह चाहता है कि वह वापस जाए मगर वह वापस नहीं जा सकता। आप को बताया गया कि यह उस इंसान की मिसाल है जो एक बात कहता है , फिर उस पर शर्मिन्दा होता है । वह चाहता है कि वह अपनी बात को वापस ले ले मगर वह उसे वापस लेने पर क़ादिर नहीं होता ।

बहवाला फ़तहुल बारी , खंड 7 , पृ. 63 , बाब हदीस उल इसरा

अलरिसाला, उर्दू मासिक , दिसंबर 2010 , पृष्ठ 11

Tuesday, April 5, 2011

नर्मी Softness

अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया-
‘जिसे नर्मी न मिली उसे भलाई न मिली।‘ -बुख़ारी
एक दूसरी हदीस में है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया-‘अल्लाह नर्म आदत का है, वह नर्मी को पसंद करता है और नर्मी पर वह कुछ देता है जो सख्ती पर या किसी और चीज़ पर नहीं देता।‘
मालूम हुआ कि जहां तक हो सके, सुलूक नर्मी का होना चाहिए। यह और बात है कि कभी सख्ती करना पड़ जाए।

किताब-चालीस हदीस, लेखक-सय्यद हामिद अली 

Sunday, April 3, 2011

गुस्सा Anger


अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया- ‘दूसरों को पछाड़ने वाला ताक़तवर नहीं है। ताक़तवर तो वह है जो गुस्सा आने पर अपने को क़ाबू में रखे।‘
                                 -बुख़ारी, मुस्लिम
गुस्सा अनेक बुराईयों की जड़ है। गुस्से की हालत में इन्सान अपने होश और हवास खो बैठता है। उसे यह पता ही नहीं चलता कि उस के मुंह से क्या निकल रहा है और जो कुछ वह कर रहा है उसका नतीजा क्या होगा ?
तलाक़, क़त्ल, और ख़ानदानों और बस्तियों की बर्बादी आमतौर से गुस्से ही की हालत में होती है। कभी-कभी गुस्से में इंसान अपनी दुनिया और आखि़रत दोनों तबाह कर लेता है।

‘एक आदमी ने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से अर्ज़ किया कि ‘मुझे नसीहत कीजिए।‘ तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा, ‘गुस्सा न करो।‘ उस आदमी ने कई बार नसीहत के लिए कहा और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हर बार जवाब में यही कहा, ‘गुस्सा न करो।‘

हदीस में गुस्सा दूर करने के बहुत से तरीक़े बताए गए हैं। जैसे-
‘गुस्सा शैतान की वजह से आता है। शैतान आग से पैदा हुआ है और आग पानी से बुझती है। तो जब किसी को गुस्सा आए तो वह वुजू कर ले (मुंह हाथ वग़ैरह धो ले)।‘ -अबू दाऊद

एक और हदीस में है कि प्यारे नबी (सल्ल.) ने फ़रमाया-
‘जब किसी को गुस्सा आए और वह खड़ा हो तो वह बैठ जाए, अगर गुस्सा जाता रहे तो ठीक है, वरना लेट जाए।‘
           -तिर्मिज़ी, अहमद
एक हदीस में गुस्सा पीने की तारीफ़ इन लफ़्ज़ों में की गई है-
‘अल्लाह के नज़्दीक सबसे अच्छा घूंट वह गुस्सा है, जिसे कोई बंदा अल्लाह की खुशी के लिए पी जाए।‘ -अहमद
लेखक - सय्यद हामिद अली, किताब - चालीस हदीसें 

Saturday, April 2, 2011

नाते रिश्ते का ख़याल Healty Relationship लेखक-सय्यद हामिद अली

अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया-
‘(नाते-रिश्ते को) काटने वाला जन्नत में नहीं जाएगा।‘
                  -बुख़ारी, मुस्लिम
कुरआन पाक में अल्लाह की बंदगी पर ज़ोर देने के फ़ौरन बाद आमतौर से बंदों के हक़ अदा करने पर ज़ोर दिया गया है और उसकी शुरूआत माँ-बाप और नातेदारों के हक़ से की गई है। जैसे कि फ़रमाया-
‘और अल्लाह की बन्दगी करो, उसके साथ किसी को साझी न बनाओ और माँ-बाप के साथ अच्छा सुलूक करो और रिश्तेदारों के साथ, यतीमों के साथ, ग़रीबों के साथ, नातेदार पड़ोसी के साथ, अजनबी पड़ोसी के साथ, मुसाफ़िर के साथ और अपने गुलामों के साथ अच्छा सुलूक करो।‘
हदीस में नातेदारों के हक़ और अधिकारों को बहुत अहमियत दी गई है और बताया गया है कि जो आदमी नातेदारों से नाता तोड़ लेता है और उनके हक़ अदा नहीं करता, वह जन्नत में न जा सकेगा। रिश्तेदारों के हक़ पर ज़ोर देते हुए और उसे स्पष्ट करते हुए अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया-
‘रिश्तों-नातों को जोड़ने वाला वह नहीं है जो बदले में रिश्ते जोड़ता है, बल्कि वह है कि जब उसके नातेदार उससे नाता तोड़ लें और उसके हक़ अदा न करें तो वह उन से ताल्लुक़ जोड़े और उनके हक़ अदा करे।‘
किताब-चालीस हदीसें, लेखक-सय्यद हामिद अली

Friday, April 1, 2011

हज़रत इमाम हसन (रज़ियाल्लाहु अन्हु) ने कहा

http://www.tebyan.net/islam_features/prophet/ahl_al-bayt/imam_hassan_as/2007/9/25/46834.html
1. तत्वदर्शिता में ऊंचे दर्जे की तत्वदर्शिता तक़वा और कमज़ोरियों में सबसे बड़ी कमज़ोरी बदअख़लाक़ी और बदआमाली है ।

2. मोमिन वह है जो आख़िरत के लिए अच्छे आमाल जमा करे और क़ाफ़िर वह है जो दुनिया के मज़े उड़ाने में लगा रहे।

3. बहादुर वह है जो मुसीबत के वक़्त सब्र और बर्दाश्त से काम ले और आड़े वक्त में पड़ोसी की मदद करे।

4. वह शख़्स सबसे बेहतरीन ज़िंदगी बसर करता है जो अपनी ज़रूरतों के लिए किसी ग़ैर पर भरोसा नहीं रखता।

5. 'करम' का अर्थ है माँगने से पहले देना और मौका और वक्त पर अहसानो सुलूक करना। 
राष्ट्रीय सहारा उर्दू पृष्ठ 7 दिनाँक 31 मार्च 2011

Sunday, March 13, 2011

हकीम वैद्य बहुत पहले से जानते हैं Erectile disfunction का इलाज

हमारे वालिद साहब बताते हैं कि ज़ैतून का तेल 120 बीमारियों से शिफ़ा है । यह बात सही है। इसे आप भी आसानी से जान सकते हैं। अगर आप जवान और सेहतमंद मर्दों जैसी ताक़त पाना चाहते हैं तो आप ज़ैतून के तेल में अंडों का ऑमलेट बनाकर रोज़ाना खाएं । बहुत आसान प्रयोग है ।
मेरे ब्लॉग 'आर्य भोजन' पर भी आप
'भारतीय वैद्य और हकीमों के अचूक नुस्ख़े घोड़े जैसी ताक़त के लिए '
देखकर अपने वैवाहिक जीवन को सफल और सुखी बना सकते हैं । आपका लाइफ़ पार्टनर आपसे संतुष्ट रहेगा और आप जीवन का सच्चा आनंद ले सकेंगे।

Saturday, March 12, 2011

ज़लज़लों और क़ुदरती तबाहियों के बारे में अल्लाह की नीति The punishment

सबका पैदा करने वाला सच्चा बादशाह कहता है कि
...और (हर चीज़ में)संतुलन स्थापित किया ; कि तुम भी तुला में सीमा का उल्लंघन न करो । - क़ुरआन, 55, 7-8
अंततः हमने हरेक को उसके अपने पाप के कारण पकड़ लिया। फिर उनमें से कुछ पर तो हमने पथराव करने वाली हवा भेजी और उनमें से कुछ को एक प्रचण्ड कड़क ने आ लिया। और उनमें से कुछ को हमने धरती में धंसा दिया। और उनमें से कुछ को हमने डुबो दिया। अल्लाह तो ऐसा न था कि उन पर ज़ुल्म करता, लेकिन वे ख़ुद अपने आप पर ज़ुल्म कर रहे थे। - क़ुरआन, 29, 40
फिर तुमसे पहले जो नस्लें गुज़र चुकी हैं उनमें ऐसे भले-समझदार लोग क्यों न हुए जो धरती में बिगाड़ से रोकते, उन थोड़े से लोगों के सिवा जिनको उनमें से हमने बचा लिया। अत्याचारी लोग तो उसी सुख-सामग्री के पीछे पड़े रहे, जिसमें वे रखे गए थे। वे तो थे ही अपराधी। तुम्हारा रब ऐसा नहीं है कि बस्तियों को अकारण नष्ट कर दे, जबकि वहाँ के निवासी बनाव और सुधार में लगे हों । - क़ुरआन, 11, 116-117
ये बस्तियों के कुछ हालात हैं, जो हम तुम्हें सुना रहे हैं। इनमें से कुछ तो खड़ी हैं और कुछ की फ़सल कट चुकी है। हमने उन पर ज़ुल्म नहीं किया, बल्कि उन्होंने ख़ुद अपने आप पर ज़ुल्म किया। फिर जब तेरे रब का हुक्म आ गया तो उनके वे पूज्य, जिन्हें वे अल्लाह से हटकर पुकारा करते थे, उनके कुछ भी काम न आ सके। उन्होंने विनाश के अलावा उनके लिए किसी और चीज़ में बढ़ोतरी नहीं की। तेरे रब की पकड़ ऐसी ही होती है, जब वह किसी ज़ालिम बस्ती को पकड़ता है। निःसंदेह उसकी पकड़ बड़ी दुखद , अत्यंत कठोर होती है। निश्चय ही इसमें उस व्यक्ति के लिए एक निशानी है जो आख़िरत (परलोक) की यातना से डरता हो। वह एक ऐसा दिन होगा, जिसमें सारे ही लोग इकट्ठा किए जाएँगे और वह एक ऐसा दिन होगा , जिसमें सब कुछ आँखों के सामने होगा।
-क़ुरआन, 11, 100-103
और अपने रब से माफ़ी माँगो फिर उसकी तरफ़ पलट आओ ; बेशक मेरा रब बड़ा दयावन्त, बहुत प्रेम करने वाला है। - क़ुरआन, 11, 90

जब आदमी यह भूल जाता है कि वह अपनी मर्ज़ी से नहीं बल्कि इस कायनात के मालिक की मर्ज़ी से पैदा हुआ है और उसे वह अपने कर्मों का हिसाब देने के लिए ज़िम्मेदार है तो उसकी इच्छाएं असंतुलित हो जाती हैं । अब वह जैसे जैसे अपनी ये असंतुलित इच्छाएं पूरी करने की कोशिश करता है तो उसका जीवन भी असंतुलित होने लगता है और जब दुनिया के ज़्यादातर लोगों का कर्म असंतुलित हो जाता है तो वे जिन चीजों को इस्तेमाल करते हैं , उनमें भी वे हद से गुज़र जाते हैं । इस तरह चीज़ों में और पर्यावरण में जो संतुलन इनके बनाने वाले ने क़ायम किया है , वह नष्ट हो जाता है और तरह तरह की बीमारियाँ, जंग और क़ुदरती तबाहियाँ मानव जाति को घेर कर नष्ट करने लगती हैं । यह असंतुलन तब तक दूर नहीं हो सकता जब तक कि मानव जाति अपने मालिक को अपना हाकिम न माने और उसके ख़िलाफ अपनी बग़ावत के अमल न छोड़ दे।
इस पर्यावरण में ही नहीं बल्कि हरेक चीज़ में फिर से संतुलन क़ायम करने का तरीक़ा इसके सिवा कुछ और नहीं है कि अब सामूहिक रूप से हरेक चीज़ को केवल अपने रब की नीति के अनुसार ही बरता जाय।
दयालु पालनहार अपनी वाणी क़ुरआन में यही बताता है और सुरक्षा देने के लिए अपने संरक्षण में बुलाता है ।
आईये , प्रभु के प्रति समर्पण कीजिए , अपने कल्याण के लिए।

Friday, March 11, 2011

हर चीज़ खुदा का निशान है , उसके गुणों का परिचय है और यह कि रचना कभी अपने रचनाकार के बराबर नहीं होती The praise

उम्र भर रोते हैं वे माँ की ज़ियारत के लिए
जिन के आते ही जहाँ से ख़ुद चली जाती है माँ

ज़िंदगी उनकी भटकती रूह की मानिंद है
उनको हर आँसू के क़तरे में नज़र आती है माँ

शब्दार्थ : ज़ियारत-दर्शन , रूह-आत्मा, मानिंद-समान ,
@ शिखा जी ! आपके जज़्बात अच्छे हैं । हम इनकी क़द्र करते हैं लेकिन हर चीज़ ख़ुदा से कम है चाहे माँ हो , बाप हो या कोई गुरू , पीर और पैग़ंबर हो । इंसान को यह सच हमेशा अपने सामने रखना चाहिए तभी वह भटकने से बच सकता है।
pyarimaan.blogspot.com
पर शिखा कौशिक की एक रचना पर एक 'अटल सत्य' व्यक्त करते हुए।

Wednesday, March 9, 2011

एक आसान इसलामी उपाय , जिससे हरेक शादीशुदा आदमी घरेलू हिंसा महिला अधिनियम और दहेज उत्पीड़न एक्ट की चपेट में आने से जीवन भर सुरक्षित रहता है The most usefull advice

भाई अख्तर खान साहब ! अपनी बीवी के पैर सिर्फ़ मैं ही नहीं दबाता बल्कि मेरे दोस्तों की लंबी चौड़ी फ़ौज का हरेक वह जवान दबाता है जो कि आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी साहब (लेखक : अगर अब भी न जागे तो ...) के संपर्क में रह चुका है । उनकी शिक्षा यही थी और वे खुद भी ऐसा ही करते थे । ऐसा वे इसलिए करते थे क्योंकि उन्होंने इसलाम में औरतों के हरेक रूप की सेवा और सम्मान का ही हुक्म पाया था । इसलाम के इसी बोध और चिंतन को आम करने में उन्होंने अपना सारा जीवन खपा दिया और अब यही काम मैं कर रहा हूँ । मौलाना उस्मानी इतने अच्छे थे कि जो लोग मुझे बुरा कहते हैं वे भी उनके बेहतरीन आचरण की तारीफ करते हैं । 'बोले तो बिंदास' वाले ब्लॉग के भाई रोहित जी उनसे मिल चुके हैं । वे इसकी गवाही देते हैं। मैं उन जैसा न बन सका और न ही बन पाऊंगा। लेकिन फिर भी प्रयास जारी रखे हुए हूँ। अपनी बीवी के पैर दबाना ख़ुद में तब्दीली लाने का बेहतरीन ज़रिया है । इससे अहंकार की नकारात्मकता कमजोर पड़ती है , दिल में नर्मी और हमदर्दी का जज़्बा बढ़ता है और आदमी घरेलू हिंसा महिला अधिनियम और दहेज उत्पीड़न एक्ट की चपेट में आने से जीवन भर सुरक्षित रहता है।
.....
इस बातचीत की पृष्ठभूमि जानने के लिए जाएं
http://akhtarkhanakela.blogspot.com

Wednesday, January 5, 2011

बेटा पाने के लिए भोजन-साधना Food for son

आप जो भी चाहती हैं उसी की प्रार्थना भगवान से करती हैं। बहुत बार वह पूरी होती है और बहुत बार वह पूरी नहीं होती। जब पूरी नहीं होती तो आपको बहुत पीड़ा होती है, निराशा होती है। तब आप भगवान से शिकायत करती हैं और बहुत बार आप सोचने लगती हैं कि ‘भगवान अन्यायी है, उसे आपकी समस्याओं से कुछ लेना-देना नहीं है। कोई मरे या जिए उसकी बला से।‘ ऐसे में कोई यह भी कह देता है कि ‘हमें भगवान ने जन्म नहीं दिया है बल्कि हमने भगवान को जन्म दिया है। भगवान एक कल्पना है। सचमुच कोई इस दुनिया का बनाने वाला है ही नहीं।‘
आपको ऐसा सोचने और कहने की नौबत आती क्यों है ?
क्या आपने कभी सोचा है इस बारे में ?
मन की मुराद कैसे पाई जाती है ?
आपको जानना चाहिए कि कोई भी चीज़ इस दुनिया में उसी को मिलती है जो कि उसका पात्र होता है, उसे पाने की कोशिश करता है और उसे पाने के लिए जो चीज़ ज़रूरी होती है उसका इंतज़ाम करता है और उसे पाने के रास्ते में जो बाधा होती है, उस बाधा को दूर करता है। इसके लिए उसे अपने विचार, अपनी आदतें और अपनी पसंद-नापसंद तक बदलनी पड़ती है। एक बड़ी पसंद की मुराद को पाने के लिए कई बार आदमी को अपनी पसंद की दूसरी चीज़ तक छोड़नी पड़ती है। इसे हम साधना का नाम देते हैं। प्रार्थना के साथ साधना भी ज़रूरी है और साधना के लिए ज्ञान भी ज़रूरी है। बिना ज्ञान के साधना संभव नहीं है और बिना साधना के आपकी प्रार्थना पूरी हो नहीं सकती।
साधना का नाम आते ही लोगों के मन में प्रायः तंत्र-मंत्र और हवन-जाप का दृश्य घूमने लगता है लेकिन साधना का अर्थ इससे कहीं ज़्यादा व्यापक है। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान ने भी आज इंसान के सामने ऐसे तथ्य प्रकट किए हैं कि आदमी उन्हें झुठला ही नहीं सकता। आधुनिका खोज के बाद जिन सच्चाईयों का पता हमारे वैज्ञानिकों ने लगाया है, उन पर भी ध्यान दिया जाए तो आपके मन की मुराद पूरी होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
मस्लन वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि ‘बेटी चाहिए तो शाकाहारी बनें।‘
इसी शीर्षक से दैनिक हिन्दुस्तान के पृष्ठ 16 (दिनांक 4 जनवरी 2011) पर आप पढ़ सकते हैं कि-
‘बेटी चाहिए तो शाकाहारी बनें।‘
लंदन। मां बनने की तैयारी कर रही महिलाएं ज़रा ग़ौर फ़रमाएं। अगर आप पहली संतान के रूप में एक ख़ूबसूरत बेटी चाहती हैं, मांस-मच्छी से तौबा कर शाकाहार अपनाएं। एक नए अध्ययन के मुताबिक़ गर्भधारण से कुछ माह पहले कैल्शियम और मैगनीशियम युक्त फल-सब्ज़ियों का सेवन करने वाली 80 फ़ीसदी महिलाएं लड़कियों को जन्म देती हैं। इससे इतर प्रेगनेंसी के दौरान पोटैशियम और सोडियम भरपूर खाद्य सामग्रियां खाने पर लड़का पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि मां की तरह गर्भस्थ शिशु के लिंग पर पिता के खान-पान का कोई असर नहीं पड़ता है।
मैसट्रिच यूनिवर्सिटी के स्त्री एवं प्रसूती रोग विशेषज्ञ लगातार पांच सालों तक 172 से अधिक गर्भवती महिलाओं के खान-पान का विश्लेषण कर इस नतीजे पर पहुंचे हैं। उन्होंने पाया कि हरी सब्ज़ियां, गाजर, सेब, पपीता, चावल, दूध-दही का नियमित सेवन करने वाली ज़्यादातर महिलाओं के घर में बेटी की किलकारियां गूंजती हैं।
इन खाद्य सामग्रियों से उनके रक्त में कैल्शियम और मैगनीशियम के स्तर में इज़ाफ़ा होता है। वहीं, गर्भावस्था में अपनी डाइट में केला और आलू शामिल करने वाली महिलाओं के शरीर में सोडियम और पोटैशियम की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे उनके बेटे को जन्म देने की गुंजाइश अधिक रहती है। प्रमुख शोधकर्ता एनेट नूरलैंडर ने खानपान पर ध्यान देने के अलावा बेटी की ख्वाहिशमंद महिलाओं को ओव्यूलेशन से तीन-चार दिन पर यौन संबंध बनाने की सलाह दी है। इसकी प्रमुख वजह मादा क्रोमोसोम से लैस शुक्राणुओं का निषेचन प्रक्रिया में ज़्यादा समय लेना है। 
                                    www.livehindustan.com पर भी आप इस ख़बर को देख सकते हैं।
 आपका कर्म सहायक भी, बाधक भी
आपकी प्रार्थना को बल आपके कर्म से मिलता है, यह वैज्ञानिक रूप से भी अब सिद्ध हो चुका है। मन की भावना का ताल्लुक़ आपके भोजन से भी है। जो आप चाहती हैं, उसे पाने में भी आपका भोजन या तो सहायक है या फिर बाधक।
आप क्या चाहती हैं लड़का या लड़की ?
इसका संबंध दूसरी चीज़ों के अलावा इस बात से भी है कि आप क्या करती हैं शाकाहार या मांसाहार ?
जो औरतें बेटी चाहती हैं उनके लिए तो शाकाहार ठीक है लेकिन अगर आप भगवान से बेटा पाने की प्रार्थना कर रही हैं तो फिर आपको उन तत्वों को भी अपने शरीर में पहुंचाना होगा जिन्हें कि भगवान बेटा बनाने में इस्तेमाल करता है।
प्रार्थना तो भगवान से की जाए बेटा पाने की और भोजन खाया जाए बेटी पाने वाला, तब भगवान आपको बेटा देगा या बेटी ?
यह तरीक़ा अज्ञानियों का है और फिर अपनी ग़लती का दोष भी भगवान को दे दिया जाए कि भगवान हमारी नहीं सुनता। यह भी अज्ञानियों का ही तौर-तरीक़ा है।
भगवान भी तो आपसे कुछ कह रहा है कि नहीं ?
आपने कभी सुनी उसकी ?
अज्ञानियों का मार्ग और उनकी पहचान
आप सुन रहे हैं सन्यासियों की, जिन्हें न तो बेटी चाहिए और न ही बेटा।
बल्कि जो पहले से ही उनके घर में बेटे-बेटियां थीं, उन्हें भी वे छोड़कर निकल गए और उन मां-बाप को भी उन्होंने छोड़ दिया जिनके कि वे खुद बेटे थे। बच्चों को भी भगवान का रूप कहा जाता है और मां-बाप को भी। ईश्वर तक पहुंचाने वाली सीढ़ियां भी यही हैं। जहां भगवान की प्राप्ति होनी थी जब उन्हीं को त्याग दिया, अपनी सीढ़ी ही तोड़ दी तो अब उसे भगवान कहां मिलेगा ?
जब उसे भगवान कहीं नहीं मिलेगा तो या तो वह कह देगा कि भगवान है ही नहीं या फिर खुद को ही भगवान घोषित कर देगा। यह सरासर अज्ञानता है।
यही अज्ञानी लोग आज गुरू बनकर लोगों को भटका रहे हैं। ‘जीने की कला‘ सिखा रहे हैं।
यही अज्ञानी लोग गर्भवती औरतों को ‘पुत्रवती होने का आशीर्वाद‘ दे रहे हैं और साथ ही शाकाहार अपनाने की सलाह भी दे रहे हैं।
बहरहाल वैज्ञानिक शोध आपके सामने है। आप क्या पाना चाहती हैं और आप क्या खाना चाहती हैं ?
यह आपको ही तय करना है लेकिन प्लीज़ अगर आप अपनी ग़लतियों को नहीं सुधारना चाहती हैं तो न सुधारें लेकिन अपनी ग़लतियों के बदले में नाकामी ही आपको मिलेगी, इसके लिए भी खुद को तैयार रखिए और उसका दोष भगवान को मत दीजिए क्योंकि भगवान पवित्र है और सदा सुनने वाला है।
दरअस्ल हम और आप ही उसकी कल्याणकारी बातों को नहीं सुनते। उसके बनाए नियमों को नहीं मानते।
नया साल आया, नई सोच लाया है
नए साल के अवसर पर भगवान आपको अपनी सोच बदलने की शक्ति दे, सच्ची भक्ति दे, अच्छा फल दे, काम आने वाला ज्ञान दे, अज्ञानियों से मुक्ति दे और हर वह चीज़ आपको दे जो कि आप उससे चाहती हैं  और मेरे लिए भी ऐसा ही हो। हरेक भाई-बहन के लिए ऐसा ही हो, इससे भी बेहतर हो।
आमीन !
तथास्तु !!
 अटल सत्य
यह लेख भी उपयोगी है गर्भवती औरतों के लिए
http://pregnancy.amuchbetterway.com/prevent-preeclampsia-diet-nutrition/