नई दिल्ली ! गंगा में अवैध खनन के विरोध में अनशन की भेंट चढ़े हरिद्वार के स्वामी निगमानंद की मौत का मामला राजनीतिक तूल पकड़ता जा रहा है। केंद्रीय पर्यावरण व वन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयराम रमेश ने स्वामी के दुखद निधन के लिए उत्तराखंड की भाजपा सरकार को दोषी ठहराया है। जयराम ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को डेढ़ साल पहले इस मसले पर पत्र लिखा था लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
‘निगमानंद के निधन के लिए निशंक सरकार दोषी’
आज समाचार पत्रों में यह चर्चा आम है। राजनेता तो राजनीति करेंगे ही। गाय मरे या सन्यासी ये लोग अपनी राजनीति का मौक़ा ढूंढते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि एक ब्लॉगर हर जगह अपने ब्लॉग के लिए एक पोस्ट ढूंढ लेता है। न तो राजनीति गंदी है और न ही ब्लॉगिंग कोई बुरी बात है। बुरी बात यह है कि ब्लॉगर्स का मक़सद सच को सामने लाने के बजाय महज़ ईनाम बांटना और बटोरना ही रह जाए बिल्कुल उधार की चीनी की तरह।
दिल्ली में जिस समय उत्तराखंड के मुख्यमंत्री दिल्ली के ब्लॉगोत्सव 2010 के समारोह में हिंदी ब्लॉगर्स को ईनाम का लॉलीपॉप बांट रहे थे। उस समय स्वामी निगमानंद जी अनशन पर थे। मुख्यमंत्री को उस समय होना चाहिए था स्वामी जी के पास और वह हॉल में बैठे ‘कलाकारों का नाटक‘ देख रहे थे।
मुख्यमंत्री की लापरवाही निगमानंद जी के प्राण जाने का कारण बनी। निगमानंद का ख़ून निशंक जी के हाथों पर है, इसमें किसी को कोई भी शंका नहीं है।
ब्लॉगर्स को इन्हीं के ‘हाथों‘ ईनाम मिले हैं। सो अगर आप ग़ौर से देखेंगे तो हरेक मोमेंटो पर निगमानंद के ख़ून के धब्बे आपको ज़रूर मिलेंगे।
अब यही हिंदी ब्लॉगर हरेक जगह अफ़सोस जता रहे हैं और एक बूढ़े जनवादी महोदय उन्हें ‘शहीद‘ क़रार दे रहे हैं और यह स्वीकारते ही नहीं हैं कि उनके मर्डर में एक हिस्सा हम ईनामख़ोर ब्लॉगर्स का भी है।
अब जब भी आपकी नज़र दिल्ली में मिले उस मोमेंटो और मुख्यमंत्री निशंक पर जाएगी तो आपको निगमानंद का ख़ून हमेशा वहां नज़र आएगा। अब यह मोमेंटो किसी ब्लॉगर की उपलब्धि की याद के साथ साथ निगमानंद के ख़ून की याद भी सदा दिलाता रहेगा। इस मोमेंटो को कूड़े के ढेर पर फेंक दे, ऐसा कोई ब्लॉगर इन ईनाम के लालचियों में है नहीं।
यही है हिंदी ब्लॉगर्स का भ्रष्टाचार। ख़ुद भ्रष्ट हैं और दूसरों को नियम-क़ानून बता रहे हैं।
आदमी ज़मीर बेच डाले तो फिर कुछ ही करता फिरे।
सुना है कि ऐसा ही ब्लॉगोत्सव दोबारा फिर होने वाला है।
ख़ुदा ख़ैर करे, देखिए इस बार ‘हाथ किसके और कैसे होंगे ?‘
kam se kam aap ko to jana chahiye GANGA GHAT par.
ReplyDeleteहां मैं ठीक ही समझा था शीर्षक से और देखिए आलेख आपका ही निकला । कितने दूरदर्शी हैं न आप । तो इसका मतलब ये कि परिकल्पना महोत्सव में उपस्थित सारे ब्लॉगर ही निगमानंद की मौत के जिम्मेदार न सही हिस्सेदार तो बन ही गए । इंडिया टीवी की रिपोर्टें अक्सर ऐसी ही हुआ करती हैं , मगर आपका आकलन भी ..वाह क्या इत्तेफ़ाक है
ReplyDelete@ अजय कुमार झा जी ! क्या इस तरह की बात करके आप अपने दिल का बोझ हल्का कर पाएंगे ?
ReplyDeleteअनशन के दौरान किसी की भी मौत हो, वहां की सरकार जिम्मेदार होती है। निश्चित रुप से निशंक को जिम्मेदार माना जाना चाहिए...
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