Monday, April 2, 2012

रोल मॉडल ने बदली जीवन की दिशा - N. R. Nayaynana



  • इंफोसिस के संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति की गिनती दुनिया के एक दर्जन सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में होती है। उन्होंने पूरी दुनिया में भारत को एक नई पहचान दी। पेश है न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के छात्रों के सामने दिया गया उनका एक भाषण: मैं यहां आपके साथ अपने जीवन के कुछ अनुभव बांटना चाहता हूं। उम्मीद है कि ये अनुभव जीवन के संघर्ष में आपके लिए मददगार साबित होंगे। मेरे जीवन के ये वे अहम क्षण थे, जिन्होंने मेरे भविष्य की दिशा तय की। बात वर्ष 1968 की है। वह रविवार की एक खूबसूरत सुबह थी। उस समय मैं आईआईटी कानपुर में था। उस दिन मुझे अमेरिका की एक जानी-मानी यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर वैज्ञानिक से मिलने का मौका मिला। वह वैज्ञानिक कंप्यूटर साइंस के क्षेत्र में हो रहे क्रांतिकारी विकास के बारे में बात कर रहे थे। मुझे लगा कि उनकी बातों में दम है। मैं उनके तर्क से प्रभावित था। उस दिन नाश्ता करने के बाद मैं सीधे लाइब्रेरी गया। मैंने कंप्यूटर साइंस से संबंधित चार-पांच पेपर पढ़े और फैसला किया कि मैं कंप्यूटर साइंस ही पढ़ूंगा। मित्रो, आज जब मैं पलटकर देखता हूं, तो पाता हूं कि कैसे एक रोल मॉडल किसी युवा छात्र का भविष्य बदल सकता है। मैंने अनुभव किया है कि एक अच्छी सलाह आपके लिए तरक्की के नए दरवाजे खोल सकती है। यह मेरे साथ हुआ।
    उद्यमिता से ही दूर होगी गरीबी
    दूसरी घटना वर्ष 1974 की है। जब मैं साइबेरिया और बुल्गारिया के बीच निस रेलवे स्टेशन पहुंचा, उस समय रात के नौ बज रहे थे। रेस्तरां बंद हो चुका था। बैंक भी बंद थे। मेरे पास स्थानीय मुद्रा नहीं थी, इसलिए मैं खाना नहीं खरीद सका। मैं रात में रेलवे प्लेटफॉर्म पर ही सोया। अगले दिन मैं सोफिया एक्सप्रेस में सवार हुआ। उस डिब्बे में एक लड़की और एक लड़का बैठे थे। मैं उस लड़की से फ्रेंच भाषा में बात करने लगा। वह उस देश में रहने वाले लोगों की पीड़ा पर बात करने लगी। इस बीच एक पुलिस वाले ने हमें रोका। दरअसल उसे लगा था कि हम बुल्गारिया की कम्युनिस्ट सरकार की आलोचना कर रहे हैं। लड़की को छोड़ दिया गया, पर मेरा सामान जब्त कर लिया गया। मुझे एक छोटे कमरे में बंद कर दिया गया। मैं उस छोटे-से कमरे में 72 घंटों तक बिना कुछ खाए-पिए रहा। मुझे उम्मीद नहीं थी कि अब मैं कभी दोबारा बाहर की दुनिया देख पाऊंगा। अगले दिन कमरे का दरवाजा खुला और मुझे घसीटकर बाहर लाया गया। मुझे एक ट्रेन के डिब्बे में बंद कर दिया गया और कहा गया कि मुझे इस्तांबुल में बीस घंटे के बाद रिहा कर दिया जाएगा। ट्रेन के गार्ड ने कहा, तुम मित्र देश भारत से हो, इसलिए हम तुम्हें जाने दे रहे हैं। वे शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं। इस्तांबुल तक मैं अकेले आया। मैं भूख से बिलबिला रहा था। बुल्गारिया के उस गार्ड के उस वाक्य ने मुझे एक भ्रमित वामपंथी से दृढ़ पूंजीपति में तब्दील कर दिया। तब मैंने सोचा कि समाज में गरीबी दूर करने का एकमात्र साधन उद्यमिता है, जिसकी मदद से हम बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा कर सकते हैं। 1981 में इंफोसिस की स्थापना के साथ ही यह संकल्प पूरा हुआ। इंफोसिस के जरिये हम हजारों लोगों को बेहतरीन रोजगार देने में सफल रहे।  
    हार से मिलती है सीख
    इंफोसिस कंपनी चलाने के दौरान मैंने कई चीजें सीखीं। सबसे पहले मैं अनुभव से मिलने वाली सीख की बात करूंगा। अनुभव से हम बहुत कुछ सीखते हैं। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम कैसे व क्या सीखते हैं। अगर सीखने की गुणवत्ता बहुत अधिक है, तो हम वह हासिल कर सकते हैं, जिसके बारे में हमने सोचा भी न हो। इंफोसिस इस बात का बेहतरीन उदाहरण है। मेरा मानना है कि जीत की बजाय हम हार से ज्यादा सीखते हैं। हारने पर हम गहराई से हार की वजह पर गौर करते हैं और अपने आपको सुधार पाते हैं। जाहिर है, जब हम खुद को सुधारते हैं, तो हमारे लिए तरक्की के रास्ते खुलते हैं। दूसरी तरफ, जीत से हमारे पुराने सभी कार्यों को समर्थन मिलता है और हमें लगता है कि हमने जो किया, सही किया।  
    बदलाव की क्षमता
    मेरी राय में बेहतरीन लीडर वह है, जो खुद बदलाव के लिए तैयार रहे और अपनी टीम के लोगों में भी सकारात्मक बदलाव की क्षमता रखे। सफल लीडर वह है, जो अपनी टीम के सदस्यों में नई उम्मीदें जा सके, उन्हें बदलाव के लिए तैयार करे और उनके अंदर मौजूद नकारात्मक भावना खत्म कर सके। सफलता के लिए  उम्मीदें जरूरी हैं। इसलिए उम्मीदों को बढ़ावा मिलना चाहिए। अपनी टीम को सपने देखने दीजिए। उनके अंदर विश्वास पैदा करिए, ताकि वे आगे बढ़कर नई ऊंचाइयां हासिल कर सकें।  
    मूल्यों से समझौता नहीं
    जीवन में सच्ची सफलता पाने के लिए जरूरी है कि आप अपने मूल्यों पर डटे रहें। आप जो कहें, उसे पूरा करें। ऐसा करने से ही लोगों के बीच आपकी विश्वसनीयता बनती है। यह जरूरी है। बिना मूल्यों के आप लंबी दूरी नहीं तय कर सकते। किसी भी क्षेत्र में तरक्की के लिए सिद्धांतों का पालन होना चाहिए। जरूरी है कि जब आप कोई फैसला करें, तो आपका अंत:करण उसके लिए राजी हो। अंतरात्मा के खिलाफ किए गए कार्यों से कभी सफलता नहीं मिल सकती।  एक और बात मैंने सीखी है कि हरेक के जीवन में मौके आते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि हम उन मौकों को कैसे लेते हैं। हम उन मौकों को यूं ही जाने देते हैं या फिर पूरे उत्साह के साथ उनका फायदा उठाते हुए अपने लिए नए रास्ते तलाशते हैं।
     अंतिम बात
    जब आपको लगे कि आप जो चाहते थे, आपने उसे हासिल कर लिया है, तो ध्यान रखें कि आप उस संपत्ति के अस्थायी संरक्षक हैं। चाहे वह संपत्ति आर्थिक हो, बौद्धिक हो या फिर भावनात्मक। आप किसी संपत्ति के स्थायी संरक्षक नहीं हो सकते। इसलिए यह आपकी जिम्मेदारी है कि उस संपत्ति को दूसरों के साथ बांटें। ऐसे लोगों के साथ, जो कमजोर हैं और किन्हीं वजहों से पीछे रह गए हैं।
    प्रस्तुति - मीना त्रिवेदी   Source : http://www.livehindustan.com/news/editorial/aapkitaarif/article1-story-57-65-226016.html

    2 comments:

    1. ये वे बातें हैं जो किसी व्यक्ति का दर्जा उद्योगपति से कहीं ऊपर उठाती हैं। ये मुनाफेखोरी के सूत्र नहीं,मानव-मूल्यों को संरक्षित रखने के प्रयास भी हैं।

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    2. बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति

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