Thursday, May 15, 2014

“सफलता के सात आध्यात्मिक नियम”

डा.दीपक चोपड़ा
जीवन में सफलता हासिल करने का वैसे तो कोई निश्चित फार्मूला नहीं है लेकिन मनुष्य सात आध्यात्मिक नियमों को अपनाकर कामयाबी के शिखर को छू सकता है।

ला जोला कैलीफोर्निया में “द चोपड़ा सेंटर फार वेल बीइंग” के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी डा.दीपक चोपड़ा ने अपनी पुस्तक “सफलता के सात आध्यात्मिक नियम” में सफलता के लिए जरूरी बातों का उल्लेख करते हुए बताया है कि कामयाबी हासिल करने के लिए अच्छा स्वास्थ्य, ऊर्जा, मानसिक स्थिरता, अच्छा बनने की समझ और मानसिक शांति आवश्यक है।

“एजलेस बाडी, टाइमलेस माइंड” और “क्वांटम हीलिंग” जैसी 26 लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक डा.चोपड़ा के अनुसार सफलता हासिल करने के लिए व्यक्ति में विशुद्ध सामर्थ्य, दान, कर्म, अल्प प्रयास, उद्देश्य और इच्छा, अनासक्ति और धर्म का होना आवश्यक है।

पहला नियम: 

विशुद्ध सामर्थ्य का पहला नियम इस तथ्य पर आधारित है कि व्यक्ति मूल रूप से विशुद्ध चेतना है, जो सभी संभावनाओं और असंख्य रचनात्मकताओं का कार्यक्षेत्र है। इस क्षेत्र तक पहुंचने का एक ही रास्ता है. प्रतिदिन मौन. ध्यान और अनिर्णय का अभ्यास करना। व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय के लिए मौन.बोलने की प्रकिया से दूर. रहना चाहिए और दिन में दो बार आधे घंटे सुबह और आधे घंटे शाम अकेले बैठकर ध्यान लगाना चाहिए।

इसी के साथ उसे प्रतिदिन प्रकृति के साथ सम्पर्क स्थापित करना चाहिए और हर जैविक वस्तु की बौद्धिक शक्ति का चुपचाप अवलोकन करना चाहिए। शांत बैठकर सूर्यास्त देखें. समुद्र या लहरों की आवाज सुनें तथा फूलों की सुगंध को महसूस करें ।

विशुद्ध सामर्थ्य को पाने की एक अन्य विधि अनिर्णय का अभ्यास करना है। सही और गलत, अच्छे और बुरे के अनुसार वस्तुओं का निरंतर मूल्यांकन है –“निर्णय’ । व्यक्ति जब लगातार मूल्यांकन, वर्गीकरण और विश्लेषण में लगा रहता है, तो उसके अन्तर्मन में द्वंद्व उत्पन्न होने लगता है जो विशुद्ध सामर्थ्य और व्यक्ति के बीच ऊर्जा के प्रवाह को रोकने का काम करता है। चूंकि अनिर्णय की स्थिति दिमाग को शांति प्रदान करती है. इसलिए व्यक्ति को अनिर्णय का अभ्यास करना चाहिए। अपने दिन की शुरुआत इस वक्तव्य से करनी चाहिए- “आज जो कुछ भी घटेगा, उसके बारे में मैं कोई निर्णय नहीं लूंगा और पूरे दिन निर्णय न लेने का ध्यान रखूंगा।” दूसरा नियम: 
सफलता का दूसरा आध्यात्मिक नियम है.- देने का नियम। इसे लेन- देन का नियम भी कहा जा सकता है। पूरा गतिशील ब्रह्मांड विनियम पर ही आधारित है। लेना और देना- संसार में ऊर्जा प्रवाह के दो भिन्न- भिन्न पहलू हैं । व्यक्ति जो पाना चाहता है, उसे दूसरों को देने की तत्परता से संपूर्ण विश्व में जीवन का संचार करता रहता है।

देने के नियम का अभ्यास बहुत ही आसान है। यदि व्यक्ति खुश रहना चाहता है तो दूसरों को खुश रखे और यदि प्रेम पाना चाहता है तो दूसरों के प्रति प्रेम की भावना रखे। 

यदि वह चाहता है कि कोई उसकी देखभाल और सराहना करे तो उसे भी दूसरों की देखभाल और सराहना करना सीखना चाहिए । यदि मनुष्य भौतिक सुख-समृद्धि हासिल करना चाहता है तो उसे दूसरों को भी भौतिक सुख- समृद्धि प्राप्त करने में मदद करनी चाहिए।

तीसरा नियम: 

सफलता का तीसरा आध्यात्मिक नियम, कर्म का नियम है। कर्म में क्रिया और उसका परिणाम दोनों शामिल हैं। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है- “कर्म मानव स्वतंत्रता की शाश्वत घोषणा है.. हमारे विचार, शब्द और कर्म. वे धागे हैं, जिनसे हम अपने चारों ओर एक जाल बुन लेते हैं। .. वर्तमान में जो कुछ भी घट रहा है. वह व्यक्ति को पसंद हो या नापसंद, उसी के चयनों का परिणाम है जो उसने कभी पहले किये होते हैं।

कर्म, कारण और प्रभाव के नियम पर इन बातों पर ध्यान देकर आसानी से अमल किया जा सकता है... आज से मैं हर चुनाव का साक्षी रहूंगा और इन चुनावों के प्रति पूर्णतः साक्षीत्व को अपनी चेतन जागरूकता तक ले जाऊंगा। जब भी मैं चुनाव करूंगा तो स्वयं से दो प्रश्न पूछूंगा.. जो चुनाव मैं करने जा रहा हूं. उसके नतीजे क्या होंगे और क्या यह चुनाव मेरे और इससे प्रभावित होने वाले लोगों के लिए लाभदायक और इच्छा की पूर्ति करने वाला होगा। यदि चुनाव की अनुभूति सुखद है तो मैं यथाशीघ्र वह काम करूंगा लेकिन यदि अनुभूति दुखद होगी तो मैं रुककर अंतर्मन में अपने कर्म के परिणामों पर एक नजर डालूंगा। इस प्रकार मैं अपने तथा मेरे आसपास के जो लोग हैं. उनके लिए सही निर्णय लेने में सक्षम हो सकूंगा।.
चौथा नियम: 

सफलता का चौथा नियम “अल्प प्रयास का नियम” है। यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति प्रयत्न रहित सरलता और अत्यधिक आजादी से काम करती है। यही अल्प प्रयास यानी विरोध रहित प्रयास का नियम है। 

प्रकृति के काम पर ध्यान देने पर पता चलता है कि उसमें सब कुछ सहजता से गतिमान है। घास उगने की कोशिश नहीं करती, स्वयं उग आती है। मछलियां तैरने की कोशिश नहीं करतीं, खुद तैरने लगती हैं, फूल खिलने की कोशिश नहीं करते, खुद खिलने लगते हैं और पक्षी उडने की कोशिश किए बिना स्वयं ही उडते हैं। यह उनकी स्वाभाविक प्रकृति है। इसी तरह मनुष्य की प्रकृति है कि वह अपने सपनों को बिना किसी कठिन प्रयास के भौतिक रूप दे सकता है।

मनुष्य के भीतर कहीं हल्का सा विचार छिपा रहता है जो बिना किसी प्रयास के मूर्त रूप ले लेता है। इसी को सामान्यतः चमत्कार कहते हैं लेकिन वास्तव में यह अल्प प्रयास का नियम है। अल्प प्रयास के नियम का जीवन में आसानी से पालन करने के लिए इन बातों पर ध्यान देना होगा..-  मैं स्वीकृति का अभ्यास करूंगा। आज से मैं घटनाओं, स्थितियों, परिस्थितियों और लोगों को जैसे हैं. वैसे ही स्वीकार करूंगा, उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार ढालने की कोशिश नहीं करूंगा। मैं यह जान लूंगा कि यह क्षण जैसा है, वैसा ही होना था क्योंकि सम्पूर्ण ब्रह्मांड ऐसा ही है । मैं इस क्षण का विरोध करके पूरे ब्रह्मांड से संघर्ष नहीं करूंगा, मेरी स्वीकृति पूर्ण होगी। मैं उन स्थितियों का, जिन्हें मैं समस्या समझ रहा था, उनका उत्तरदायित्व स्वयं पर लूंगा। किसी दूसरे को अपनी स्थिति के लिए दोषी नहीं ठहराऊंगा। मैं यह समझूंगा कि प्रत्येक समस्या में सुअवसर छिपा है और यही सावधानी मुझे जीवन में स्थितियों का लाभ उठाकर भविष्य संवारने का मौका देगी।.. ..मेरी आज की जागृति आगे चलकर रक्षाहीनता में बदल जाएगी। मुझे अपने विचारों का पक्ष लेने की कोई जरूरत नहीं पडेगी। अपने विचारों को दूसरों पर थोपने की जरूरत भी महसूस नहीं होगी । मैं सभी विचारों के लिए अपने आपको स्वतंत्र रखूंगा ताकि एक विचार से बंधा नहीं रहूं। ..


पांचवा नियम:

सफलता का पांचवां आध्यात्मिक नियम “उद्देश्य और इच्छा का नियम” बताया गया है। यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति में ऊर्जा और ज्ञान हर जगह विद्यमान है। सत्य तो यह है कि क्वांटम क्षेत्र में ऊर्जा और ज्ञान के अलावा और कुछ है ही नहीं। यह क्षेत्र विशुद्ध चेतना और सामर्थ्य का ही दूसरा रूप है. जो उद्देश्य और इच्छा से प्रभावित रहता है।

ऋग्वेद में उल्लेख है.. प्रारंभ में सिर्फ इच्छा ही थी जो मस्तिष्क का प्रथम बीज थी। मुनियों ने अपने मन पर ध्यान केन्द्रित किया और उन्हें अर्न्तज्ञान प्राप्त हुआ कि प्रकट और अप्रकट एक ही है। उद्देश्य और इच्छा के नियम का पालन करने के लिए व्यक्ति को इन बातों पर ध्यान देना होगा.. उसे अपनी सभी इच्छाओं को त्यागकर उन्हें रचना के गर्त के हवाले करना होगा और विश्वास कायम रखना होगा कि यदि इच्छा पूरी नहीं होती है तो उसके पीछे भी कोई उचित कारण होगा । हो सकता है कि प्रकृति ने उसके लिए इससे भी अधिक कुछ सोच रखा हो। व्यक्ति को अपने प्रत्येक कर्म में वर्तमान के प्रति सतर्कता का अभ्यास करना होगा और उसे ज्यों का त्यों स्वीकार करना होगा लेकिन उसे साथ ही अपने भविष्य को उपयुक्त इच्छाओं ओर दृढ उद्देश्यों से संवारना होगा।

छठवां नियम: 

सफलता का छठा आध्यात्मिक नियम अनासक्ति का नियम है। इस नियम के अनुसार व्यक्ति को भौतिक संसार में कुछ भी प्राप्त करने के लिए वस्तुओं के प्रति मोह त्यागना होगा। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने उद्देश्यों को ही छोड दे । उसे केवल परिणाम के प्रति मोह को त्यागना है। व्यक्ति जैसे ही परिणाम के प्रति मोह छोड देता है. उसी वह अपने एकमात्र उद्देश्य को अनासक्ति से जोड लेता है। तब वह जो कुछ भी चाहता है. उसे स्वयमेव मिल जाता है।

अनासक्ति के नियम का पालन करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना होगा.. आज मैं अनासक्त रहने का वायदा करता हूं। मैं स्वयं को तथा आसपास के लोगों को पूर्ण रूप से स्वतंत्र रहने की आजादी दूंगा। चीजों को कैसा होना चाहिए. इस विषय पर भी अपनी राय किसी पर थोपूंगा नहीं। मैं जबरदस्ती समस्याओं के समाधान खोजकर नयी समस्याओं को जन्म नहीं दूंगा। मैं चीजों को अनासक्त भाव से लूंगा। सब कुछ जितना अनिश्चित होगा. मैं उतना ही अधिक सुरक्षित महसूस करूंगा क्योंकि अनिश्चितता ही मेरे लिए स्वतंत्रता का मार्ग सिद्ध होगी। अनिश्चितता को समझते हुए मैं अपनी सुरक्षा की खोज करूंगा।.. 

सातवां नियम: 

सफलता का सातवां आध्यात्मिक नियम. धर्म का नियम. है। संस्कृत में धर्म का शाब्दिक अर्थ..जीवन का उद्देश्य बताया गया है। धर्म या जीवन के उद्देश्य का जीवन में आसानी से पालन करने के लिए व्यक्ति को इन विचारों पर ध्यान देना होगा.. ..मैं अपनी असाधारण योग्यताओं की सूची तैयार करूंगा और फिर इस असाधारण योग्यता को व्यक्त करने के लिए किए जाने वाले उपायों की भी सूची बनाऊंगा। अपनी योग्यता को पहचानकर उसका इस्तेमाल मानव कल्याण के लिए करूंगा और समय की सीमा से परे होकर अपने जीवन के साथ दूसरों के जीवन को भी सुख.समृद्धि से भर दूंगा। हर दिन खुद से पूछूंगा..मैं दूसरों का सहायक कैसे बनूं और किस प्रकार मैं दूसरों की सहायता कर सकता हूं। इन प्रश्नों के उत्तरों की सहायता से मैं मानव मात्र की प्रेमपूर्वक सेवा करूंगा।..
source: https://www.facebook.com/notes/pyramid-meditation-delhi/%E0%A4%B8%E0%A4%AB%E0%A4%B2%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A4-%E0%A4%86%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE-%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%AA%E0%A4%95-%E0%A4%9A%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A5%9C%E0%A4%BE/10151613709118743

भय से मुक्ति ही उपचार है -सीताराम गुप्ता

भय वस्तुत: एक कल्पना मात्र है, जो हमारे मन की उपज है। यह एक नकारात्मक विचार है। मन से भय का चिंतन समाप्त हो जाना, उसका नकारात्मक विचारों से मुक्त हो जाना ही उपचार है। व्याधि विशेष के प्रति हमारे मन में समाया हुआ डर ही उस रोग को आमंत्रित करता है। कभी न कभी किसी न किसी रूप में हमारे मन में उस रोग की चिंता या भय के बीज चले जाते हैं, जो निरंतर पल्लवित-पुष्पित होते जाते हैं। और अन्तत: हमें बीमार कर देते हैं। यदि हम उन बीजों को मन में जमने न दें अथवा उग आने पर उन्हें जड़ से उखाड़ फेंके, तो उस व्याधि से हम सदैव के लिए मुक्त हो गए समझो। रोग मन की पैदावार है, तंदुरुस्ती भी मन की फसल है। रोग हो या स्वास्थ्य, चिंता हो या प्रसन्नता -दोनों का कारण मन है। मन द्वारा ही रोग अथवा चिंता की समाप्ति संभव है तथा मन द्वारा ही अच्छे स्वास्थ्य अथवा प्रसन्नता की प्राप्ति संभव है। लेकिन मन का नियंता कौन है? आप स्वयं अपने मन के नियंता हैं। पहले अपने मन पर नियंत्रण कीजिए। मन के चिंतन को सही दिशा में ले जाइए। अच्छे स्वास्थ्य का चिंतन कीजिए। अच्छी सेहत का तसव्वुर कीजिए। स्वयं को स्वस्थ-सुंदर तथा अनेकानेक सकारात्मक गुणों से भरपूर देखिए। मन में रोग के भय के चिंतन से मुक्त हो जाइए। जब तक भय से मुक्त नहीं होंगे, तब तक बात नहीं बनेगी। रोग के भय से मुक्त होना ही रोग मुक्त होना है। आरोग्य के लिए रोग के भय से मुक्ति, समृद्धि के लिए अभाव के भय से मुक्ति, जीवन को सम्पूर्णता से जीने के लिए मृत्यु के भय से मुक्ति, ज्ञान के लिए अज्ञानता के भय से मुक्ति, प्रकाश के लिए अंधकार के भय से मुक्ति, प्रेम के लिए घृणा के भय से मुक्ति, विजय के लिए पराजय के भय से मुक्ति, पूर्णता के लिए अपूर्णता के भय से मुक्ति, विश्वास के लिए अविश्वास के भय से मुक्ति, सत्य के लिए असत्य के भय से मुक्ति -भय से मुक्त होना ही सर्वांगीण विकास का एकमात्र मार्ग है। भय से मुक्ति मन के नियंत्रण तथा उचित दिशा निर्देश द्वारा संभव है। नेपोलियन ने कहा है, 'जिसे पराजित होने का भय है उसकी हार निश्चित है।' आपके मन की स्थिति के कारण ही न जाने कितने रज्जुरूपी महासर्प फुफकार रहे हैं, आपको भयभीत कर रहे हैं, आपका मार्ग अवरुद्ध कर रहे हैं, आपको पीछे हटने पर विवश कर रहे हैं। आपकी चेतना का हरण कर और जड़ बना रहे हैं। आदि शंकराचार्य कहते हैं:.. रज्जुसर्पवदात्मानं जीवोज्ञात्वा भयंवहेत। नाहं जीव: परात्मेति ज्ञातश्चेन्निर्भयो भवेत्।। अर्थात् जब जीव भ्रमवश रस्सी को समझता है सांप, तब प्रतीत होता है उसको भय। परंतु जब उसे बोध हो मैं जीव नहीं, 'हूँ परमात्मा' तब हो जाता है वह निर्भय। जोसफ मर्फी ने अपनी एक पुस्तक में एक घटना का वर्णन किया है। एक कैंसर रोगी को जब ये बताया गया कि उसकी रिपोर्ट तो किसी और कैंसर के रोगी व्यक्ति की है, जो गलती से तुम्हारी मान ली गई, तो वह व्यक्ति जो मृतप्राय हो कर बिस्तर पर पड़ा था, अचानक उठकर खड़ा हो गया और क्योंकि उसके मन ने मान लिया कि वह कैंसर का रोगी है ही नहीं, तो कुछ ही दिनों में सामान्य उपचार और देख-भाल के बाद ठीक भी हो गया। वह एक सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन व्यतीत करने लगा। इस प्रकार सकारात्मक विश्वास द्वारा दृढ़तापूर्वक मन को प्रभावित कर किसी व्याधि अथवा किसी समस्या का उपचार करना ही 'मन द्वारा उपचार' कहलाता है। और यह उपचार 'आध्यात्मिक उपचार' की श्रेणी में आता है। मन की इसी शक्ति को उर्दू शायर 'बहाद' लखनवी' ने अपने एक शेर में इस प्रकार व्यक्त किया है : ऐ जबा-ए-दिल गर तू चाहे हर चीज मु.काबिल आ जाए, मालि के लिए दो गाम चलूँ और सामने मालि आ जाए। ( लेखक की पुस्तक 'मन द्वारा उपचार' से उद्धृत)

रख-रखाव: एक बेहतर उपचार पद्धति -सीताराम गुप्ता

उर्दू शायर निदा फाजली साहिब का एक शेर है: 
अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए। 
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए। 
जी हां बिखरी हुई चीजों को सजाना-संवारना बेहद जरूरी है क्योंकि यह एक संपूर्ण उपचार पद्धति है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि आपके कार्यस्थल अथवा घर पर चीजें अस्त-व्यस्त या बेतरतीब पड़ी हैं तो उन्हें व्यवस्थित कीजिए ,इससे आपके मन के अंदर भी कोई सही चीज हो जाएगी। वास्तव में आपके कार्यस्थल तथा घर की स्थिति का आपके मन पर गहरा असर होता है। बिखरी हुई चीजें या अव्यवस्था आपके मन द्वारा आपके व्यक्तित्व में बिखराव पैदा कर देती हैं। जब आप बार-बार अपने आसपास के वातावरण में अव्यवस्था तथा बिखराव देखते हैं तो अंदर ही अंदर एक संवाद चलता है , ' सब कुछ कितना बेतरतीब कितना अस्त-व्यस्त है। यह संवाद आपके मन में अंकित हो जाता है। आपके मस्तिष्क की इसके लिए कंडीशनिंग हो जाती है। आपके मस्तिष्क की कोशिकाएं इसी दिशा में सक्रिय होकर आपके शरीर को प्रभावित कर आपके परिवेश के अनुसार ही आपका व्यक्तित्व बना देती हैं। 
मेज पर या कभी-कभी टीवी पर भी यदि कंघी जूते साफ करने का ब्रश चाबियां पेन घडि़यां ,पैसे दवाएं पुराने अखबार तथा उन्हीं के बीच बिजली-पानी तथा टेलीफोन के बिल रुमाल आदि सब एक साथ पड़े हैं और उन्हीं के ऊपर पड़ा है टेलीफोन तो यह किस बात का परिचायक है ?पुराने अखबार न पहनने योग्य पुराने कपड़े तथा जूते पुराने रिकॉर्ड गत्ते के डिब्बे टूटे-फूटे बर्तन जंग लगा टॉर्च.. आखिर क्यों इन्हें आपने अपने मन पर बोझ बना रखा है इस बोझ से छुटकारा पाइए। उपयोगी चीजों को उनके उचित स्थान पर रखिए अन्यथा वे उपयोगी नहीं रहेंगी। 
अनुपयोगी चीजों को अलविदा कह दीजिए। बेकार की चीजों को कबाड़ी को बेच दीजिए कुछ पैसे भी मिल जाएंगे अन्यथा ये चीजें आपके मन को कबाड़खाना बना देंगी। सोचकर देखिए जो चीज पिछले पांच या दस सालों में एक बार भी प्रयोग नहीं हुई क्या वह कबाड़ नहीं है क्या भविष्य में उसके प्रयोग की संभावना है चीजों को यथास्थान करीने से रखिए सही तरीके से रखिए। इससे आपके अंदर आपके मन में भी कोई चीज संवर जाएगी अर्थात आपके व्यक्तित्व में एक सुसंगतता पैदा हो जाएगी। 
जब घर में तथा कार्यस्थल पर वस्तुएं व्यवस्थित होंगी तो हमें जीवन में बहुत सुविधा हो जाएगी। चीजें यथास्थान होंगी तो आसानी से उपलब्ध भी होंगी। उनको खोजने में समय का अपव्यय नहीं होगा अत: आप झुंझलाहट तथा खीझ से बचेंगे तनाव समाप्त हो जाएगा। वस्तुओं को सजी-संवरी तथा यथास्थान देखते ही मन में एक खुशी की लहर दौड़ जाएगी। आशंका भय ,चिंता क्रोध तनाव उदासी ग्लानि कुंठा सुस्ती आदि निराशाजनक स्थितियों की अपेक्षा चुस्ती-फुर्ती खुशी विश्वास प्रेम करुणा सहयोग एकाग्रता सुसंगतता आराम आदि आशावादी स्थितियां उत्पन्न होंगी। प्रसन्नता की स्थिति में मन में सकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं ,जिससे शरीर में एण्डोर्फिन जैसे रसायन उत्पन्न होते हैं जो आपको पुन: प्रसन्नता प्रदान करते हैं। ये हॉर्मोन्स पूरे शरीर की अरबों-खरबों कोशिकाओं के साथ संवाद करते हैं तथा उन्हें उत्साह प्रदान करते हैं। यह सारी प्रक्रिया आपको रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है तथा व्याधियों से मुक्त भी करती है। इस प्रकार हमारी जीवनशैली का हमारे स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। 
आशावादी व्यक्ति के मस्तिष्क में एण्डोर्फिन नामक हॉर्मोन अधिक पाया जाता है। शांति की मन:स्थिति में न्यूरोपैप्टाइड नामक हॉर्मोन में वृद्धि होती है जिससे हम प्राकृतिक एवं मानसिक सुख-शांति का अनुभव करते हैं। तनाव वाले विचार रोग प्रतिरोधक शक्ति कम करते हैं अत: तनाव पैदा करने वाले विचारों स्थितियों तथा परिवेश से बचिए। 
कई बार देखने में आता है कि बच्चे पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं अथवा परीक्षा में फेल हो जाते हैं। इसका कारण भी होता है चीजों को सही तरीके से न रखना अर्थात सभी विषयों का व्यवस्थित अध्ययन न करना। जब उन्हें इसका आभास हो जाता है तो वे सही तरीके से कार्य करते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं। सफलता की खुशी से वे अधिक स्वस्थ भी हो जाते हैं। अधिक स्वस्थ होंगे तो आगे और अधिक अध्ययन कर सकेंगे ज्यादा सफलता प्राप्त करेंगे अधिक खुशी प्राप्त होगी और स्वास्थ्य में असाधारण सकारात्मक परिवर्तन होगा। आरोग्य अच्छा स्वास्थ्य तथा अच्छा कैरियर इससे बढ़कर और क्या सफलता हो सकती है ?

Sunday, November 18, 2012

धन और ताकत से नहीं मिलती खुशी -Dalai Lama

हम पैसे या ताकत से खुशी नहीं खरीद सकते। जो जितना शक्तिशाली है, उसके अंदर उतनी ही ज्यादा चिंता और भय है। यह भय और चिंता ही हमारे दुखों की वजह है। मानसिक सुख आपकी शारीरिक पीड़ा को हल्का कर सकता है लेकिन भौतिक सुख आपकी मानसिक पीड़ा को कम नहीं कर सकता।
वह तिब्बतियों के 14वें धर्मगुरु हैं, लेकिन लगभग पूरी दुनिया उन्हें किसी शासनाध्यक्ष की तरह ही सम्मान देती है। यह दलाई लामा की मेहनत ही है, जिसने तिब्बत की आजादी के सवाल को कभी मरने नहीं दिया। आज नोबेल पुरस्कार विजेता दलाई लामा को मानवता का सबसे बड़ा हिमायती माना जाता है। आयरलैंड की लिमरिक यूनिवर्सिटी में भाषण देते हुए दलाई लामा ने कहा कि दुनिया में शांति के लिए मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहित करना होगा। पेश हैं, भाषण के अंश:
मानवता पर विचार
मैं यहां खड़ा होकर बोलूंगा, ताकि आप सबको देख सकूं। सबसे पहले मैं आप सबको एक बात समझाना चाहता हूं कि हम सब इंसान हैं। हम सब एक जैसे हैं, हमारी भावनाएं एक हैं, हमारे एहसास समान हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस धर्म के हैं, किस जाति के हैं और किस देश के हैं। पूरी दुनिया में मानवता एक है। आज हमारे बीच में जो भी समस्याएं हैं, उनकी  वजह यह है कि हम इंसानियत को भूल जाते हैं। मैं भी एक साधारण इंसान हूं, मैं आपसे अलग नहीं हूं। हमें दूसरों को समझना होगा, उन्हें तवज्जो देनी होगी। आप चाहे जितने अमीर हों, चाहे जितने शक्तिशाली हों, आप इंसान ही रहेंगे। इंसानियत से ऊपर कुछ नहीं है। हम इंसानियत को नजरअंदाज नहीं कर सकते।
‘मैं’ की भावना
ज्यादातर लोग ‘मैं’ और ‘मेरा’ के भ्रम में पड़े रहते हैं। पर कोई नहीं जानता कि ‘मैं’ क्या है? ‘मेरा’ से उनका क्या आशय है? कई बार हमारे अंदर मौजूद यह ‘मैं’ की भावना दर्द की वजह बन जाती है। अगर हम सब ‘मैं’ की बजाय एक-दूसरे के बारे में सोचें, तो हमारे दुखों का अंत आसानी से हो जाएगा। ‘मैं’ की भावना हमारे अंदर स्वार्थ की भावना पैदा करती है और हम दूसरों के दर्द को समझ नहीं पाते हैं। हमें अपने बारे में जरूर सोचना चाहिए, पर साथ ही दूसरों के बारे में भी विचार करना चाहिए, ताकि हम बेहतर समाज बना सकें।
सच्ची खुशी
सच्ची खुशी का रास्ता हमारे अंदर है। हम पैसे या ताकत से खुशी नहीं खरीद सकते। सच तो यह है कि जो जितना शक्तिशाली है, उसके अंदर उतना ही ज्यादा भय व चिंता है। पैसों के बल पर आप शांति व प्रेम हासिल नहीं कर सकते। सच्ची खुशी तभी मिलती है, जब हम दूसरों का भरोसा जीत पाते हैं। आपसी विश्वास के बल पर ही हम दूसरों से दोस्ती व सहयोग का रिश्ता बना पाते हैं। सच्ची खुशी पाने के लिए दोस्ती, सहयोग व प्रेम जरूरी है। पैसे व ताकत के साथ ही हमारे अंदर अविश्वास व डर की भावना गहरी हो जाती है और हम दुखी हो जाते हैं।
दया की भावना
हम दूसरों के दुखों को नजरअंदाज करके खुश नहीं रह सकते, इसलिए अपने स्वार्थो से ऊपर उठकर दूसरों के बारे में विचार करें, उनकी मदद करें। यह आप तभी कर पाएंगे, जब आपके मन में दया का भाव होगा। यकीन कीजिए, हम सबके अंदर जन्म से ही दया, प्यार व लगाव की भावना है, पर स्वार्थ में पड़कर हम इन भावनाओं को नजरअंदाज कर देते हैं। हमें इससे ऊपर उठना होगा। हम सिर्फ अपने बारे में नहीं सोच सकते, हमें दूसरों के बारे में भी सोचना होगा, उनकी चिंता करनी होगी, उनकी मदद करनी होगी।
गुस्से से नुकसान
एक और अहम बात। गुस्सा हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के लिए ठीक नहीं है। हम जितने शांत रहेंगे, हमारी सेहत उतनी ही अच्छी रहेगी और जीवन सुखमय होगा। गुस्सा हमारे जीवन को अशांत बनाता है। हमारे चारों तरफ के माहौल को खराब करता है। अगर हम शांत रहेंगे, तो बड़ी से बड़ी समस्या आने पर भी आसानी से उसका हल खोज लेंगे। अशांत मन समस्याओं को और गंभीर बना देता है। हमें गुस्से पर काबू रखना होगा। इसके लिए हमें शांत रहने, दूसरों से प्रेम करने व दूसरों के प्रति दया का भाव पैदा करना होगा। अगर हमारे मन में दूसरों के प्रति दया व प्रेम होगा, तो सकारात्मक दिशा में पहल कर पाएंगे। दूसरों की मदद का एहसास मन को शांत करेगा और हम गुस्से से छुटकारा पा सकेंगे।
जीवन के मूल्य
तमाम लोगों को मैंने देखा है वे खुद को खुश करने के लिए या तो टीवी से चिपके रहेंगे या फिर संगीत सुनेंगे। इससे मन की शांति नहीं मिलने वाली है। मन की शांति के लिए खुद के अंदर झांकना जरूरी है। अगर हम खुद को पहचानने की कोशिश करेंगे, तो हमें अपार शांति  मिलेगी। एक बात याद रखिए, मन की शांति भौतिककष्ट को कम सकती है, पर भौतिक सुख आपके मन के दुख को कम नहीं कर सकता। मन की शांति के लिए हमें नैतिक मूल्यों पर जोर देना होगा। हमें अपने बच्चों को नैतिकता के प्रति जागरूक बनाना होगा, ताकि बड़े होकर वे सही राह पर चल सकें। खुद को खुश करने के लिए हम दूसरों को दुखी नहीं कर सकते, बल्कि यदि आप दूसरों को खुशी देने की कोशिश करेंगे, तो आपको मन की शांति के साथ ही सुख का भी एहसास होगा।
सभी धर्मों का सम्मान
हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने का अधिकार है। लेकिन हमारे मन में दूसरों के धर्म के प्रति भी सम्मान होना चाहिए। न केवल धर्मो के प्रति, बल्कि हमें उनका भी सम्मान करना चाहिए, जो किसी धर्म में विश्वास नहीं रखते हैं, जो नास्तिक हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हम सब इंसान हैं और हमें एक-दूसरे से प्रेमभाव रखना है। यह भावना पूरी दुनिया में धार्मिक सौहार्द के लिए बहुत जरूरी है। अगर हम दुनिया में शांति चाहते हैं, तो हमें धार्मिक भाईचारे और सौहार्द की भावना विकसित करनी होगी।


प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी

http://www.livehindustan.com/news/editorial/aapkitaarif/article1-story-57-65-281953.html

Saturday, September 15, 2012

नास्तिकता निराशा से भर देती है Nastik

आज हिंदुस्तान (अंक दिनांक 15 सितंबर 2012) में ख़ुशवंत सिंह जी का लेख पढ़ा। ज़िंदगी की ऐश लेने के लिए जितनी भी ज़रूरी चीज़ें हैं वे सब उनके पास हैं। इसके बावजूद वह ज़िंदगी से आजिज़ आ चुके हैं। वह लिखते हैं-
अब मैं अपनी जिंदगी से आजिज आ गया हूं
खुशवंत सिंह, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार
पिछले 15 अगस्त को मैं 98 साल का हो गया। फिलहाल मेरी सेहत का बुरा हाल है। इसलिए यह कॉलम लिखना बहुत मुश्किल हो गया है। मैं पिछले सत्तर साल से लगातार लिखता रहा हूं। लेकिन अब तो सच यह है कि मैं मरना चाहता हूं। मैंने बहुत जी लिया। अब मैं जिंदगी से आजिज आ गया हूं। आगे देखने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं जो भी जिंदगी में करना चाहता था, उसे कर चुका हूं। तब जिंदगी में घिसटते रहने का क्या मतलब है? वह भी तब, जब करने को कुछ भी न बचा हो। मुझे तो इस दौर में एक ही राहत नजर आती है कि अपनी पुरानी खुशनुमा यादों में खो जाऊं। यों ही फैज याद आते हैं-रात दिल में यूं तेरी खोई हुई याद आए।जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए।जैसे सहराओं में हौले से चले बादे नसीमजैसे बीमार को बेवजह करार आ जाए।मैं सोचता हूं कि किसी लाइलाज शख्स का इलाज क्या है? इसका जवाब है: एक लाश जैसे शरीर के लिए अपनी जिंदगी से विदा हो चुकी महबूबाओं को याद करना। शायद !
निराशा और पीड़ा भरे ये शब्द उनके मुंह से क्यों निकल रहे हैं ?
...क्योंकि उन्होंने ज़िंदगी को अपने तरीक़े से जिया न कि उस तरीक़े से जैसे कि ज़िंदगी देने वाले ने बताया है। अपने तरीक़े से ज़िंदगी जीने वाले की सबसे बड़ी नाकामी यह होती है कि वह कभी नहीं जान पाता कि मौत की सरहद के पार उसके साथ क्या होने वाला है ?
यही चीज़ इंसान को निराशा से भर देती है। नास्तिकता निराशा से भर देती है
ध्यान रहे कि ख़ुशवंत सिंह जी ख़ुद को नास्तिक बताते हैं।

Wednesday, August 29, 2012

7 Habits जो बना सकती हैं आपको Super Successful

Er. Prabhakar Pandey
The 7 Habits of Highly Effective People, या अतिप्रभावकारी लोगों की 7 आदतें, Stephen R. Covey द्वारा लिखी गयी ये किताब आपने ज़रूर देखी, पढ़ी, या सुनी होगी. आज Thebhaskar.Com पर मैं आपको इसी best seller book का सार Hindi में share कर रहा हूँ. यह पढकर यदि आपको लगता है कि वाकई करोड़ों लोगों की तरह आप भी इससे लाभान्वित हो सकते हैं तो बिना किसी झिझक के इस book को ज़रूर खरीदें. यह book Hindi में भी उपलब्ध है.
यह Post थोड़ी लंबी  है. लगभग 2750 शब्दों की, इसलिए यदि आप चाहें तो Thebhaskar.com को Bookmark या Favouritesमें list कर लें . ताकि यदि आप एक बार में पूरी post  न पढ़ पायें तो आसानी से फिर इस पेज पर आ सकें. वैसे Google में thebhaskar.com search  करने पर भी आप दुबारा इस Page पर आ सकते हैं.

7 Habits जो बना सकतीं हैं आपको  Super Successful

आपकी ज़िन्दगी बस यूँ ही नहीं घट जाती. चाहे आप जानते हों या नहीं, ये आपही के द्वारा डिजाईन की जाती है. आखिरकार आप ही अपने विकल्प चुनते हैं. आप खुशियाँ चुनते हैं . आप दुःख चुनते हैं.आप निश्चितता चुनते हैं. आप अपनी अनिश्चितता चुनते हैं.आप अपनी सफलता चुनते हैं. आप अपनी असफलता चुनते हैं.आप साहस चुनते हैं.आप डर चुनते हैं.इतना याद रखिये कि हर एक क्षण, हर एक परिस्थिति आपको एक नया विकल्प देती है.और ऐसे में आपके पास हमेशा ये opportunity होती है कि आप चीजों को अलग तेरीके से करें और अपने लिए और positive result produce  करें.

Habit 1 : Be Proactive / प्रोएक्टिव बनिए

Proactive  होने का मतलब है कि अपनी life के लिए खुद ज़िम्मेदार बनना. आप हर चीज केलिए अपने parents  या grandparents  को नही blame कर सकते. Proactive  लोग इस बात को समझते हैं कि वो “response-able” हैं . वो अपने आचरण के लिए जेनेटिक्स , परिस्थितियों, या परिवेष को दोष नहीं देते हैं.उन्हें पता होताहै कि वो अपना व्यवहार खुद चुनते हैं. वहीँ दूसरी तरफ जो लोग reactive  होते हैं वो ज्यादातर अपने भौतिक वातावरण से प्रभावितहोते हैं. वो अपने behaviour  के लिए बाहरी चीजों को दोष देते हैं. अगर मौसम अच्छा है, तोउन्हें अच्छा लगता है.और अगर नहीं है तो यह उनके attitude और  performance  को प्रभावित करता है, और वो मौसम को दोष देते हैं. सभी बाहरी ताकतें एक उत्तेजना  की तरह काम करती हैं , जिन पर हम react करते हैं. इसी उत्तेजना और आप उसपर जो प्रतिक्रिया करते हैं के बीच में आपकी सबसे बड़ी ताकत छिपी होती है- और वो होती है इस बात कि स्वतंत्रता कि आप  अपनी प्रतिक्रिया का चयन स्वयम कर सकते हैं. एक बेहद महत्त्वपूर्ण चीज होती है कि आप इस बात का चुनाव कर सकते हैं कि आप क्या बोलते हैं.आप जो भाषा प्रयोग करते हैं वो इस बात को indicate  करती है कि आप खुद को कैसे देखते हैं.एक proactive व्यक्ति proactive भाषा का प्रयोग करता है.–मैं कर सकता हूँ, मैं करूँगा, etc. एक reactive  व्यक्ति reactive  भाषा का प्रयोग करता है- मैं नहीं कर सकता, काश अगर ऐसा होता, etc. Reactive  लोग  सोचते हैं कि वो जो कहते और करते हैं उसके लिए वो खुद जिम्मेदार नहीं हैं-उनके पास कोई विकल्प नहीं है.

ऐसी परिस्थितियां जिन पर बिलकुल भी नहीं या थोड़ा-बहुत control किया जा सकता है , उसपर react या चिंता करने के बजाये proactive  लोग अपना time और  energy  ऐसी चीजों में लगाते हैं जिनको वो  control  कर सकें. हमारे सामने जो भी समस्याएं ,चुनतिया या अवसर होते हैं उन्हें हम दो क्षेत्रों में बाँट सकते हैं:

1)Circle of Concern ( चिंता का क्षेत्र )
2)Circle of Influence. (प्रभाव का क्षेत्र )


Proactive  लोग अपना प्रयत्न Circle of Influence पर केन्द्रित करते हैं.वो ऐसी चीजों पर काम करते हैं जिनके बारे में वो कुछ कर सकते हैं: स्वास्थ्य , बच्चे , कार्य क्षेत्र कि समस्याएं. Reactive  लोग अपना प्रयत्न Circle of Concern पर केन्द्रित करते हैं: देश पर ऋण, आतंकवाद, मौसम. इसबात कि जानकारी होना कि हम अपनी energy किन चीजों में खर्च करते हैं, Proactive  बनने की दिशा में एक बड़ा कदम है.

Habit 2: Begin with the End in Mind  अंत को ध्यान में रख कर शुरुआत करें. तो, आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं? शायद यह सवाल थोड़ा अटपटा लगे,लेकिन आप इसके बारे में एक क्षण के लिए सोचिये. क्या आप अभी वो हैं जो आप बनना चाहते थे, जिसका सपना आपने देखा था, क्या आप वो कर रहे हैं जो आप हमेशा से करना चाहते थे. इमानदारी से सोचिये. कई बार ऐसा होता है कि लोग खुद को ऐसी जीत हांसिल करते हुए देखते हैं जो दरअसल खोखली होती हैं–ऐसी सफलता, जिसके बदले में उससे कहीं बड़ी चीजों को  गवाना पड़ा. यदि आपकी सीढ़ी सही दीवार पर नहीं लगी है तो आप जो भी कदम उठाते हैं वो आपको गलत जगह पर लेकर जाता है.

Habit 2  आपके imagination या  कल्पना  पर आधारित है– imagination , 

यानि आपकी वो क्षमता जो आपको अपने दिमाग में उन चीजों को दिखा सके जो आप अभी अपनी आँखों से नहीं देख सकते. यह इस सिधांत पर आधारित है कि हर एक चीज का निर्माण दो बार होता है. पहला mental creation, और दूसरा physical creation. जिस तरह blue-print तैयार होने केबाद मकान बनता है, उसी प्रकार mental  creation  होने के बाद ही physical creation होती है. अगर आप खुद  visualize  नहीं करते हैं कि आप क्या हैं और क्या बनना चाहते हैं तो आप, आपकी life कैसी होगी इस बात का फैसला औरों पर और परिस्थितियों पर छोड़ देते हैं. Habit 2  इस बारे में है कि आप किस तरह से अपनी विशेषता को पहचानते हैं,और फिर अपनी personal, moral और  ethical  guidelines के अन्दर खुद को खुश रख सकते और पूर्ण कर सकते हैं.अंत को ध्यान में रख कर आरम्भ करने का अर्थ है, हर दिन ,काम या project  की शुरआत एक clear vision  के साथ करना कि हमारी क्या दिशा और क्या मंजिल होनी चाहिए, और फिर proactively  उस काम को पूर्ण करने में लग जाना.

Habit 2  को practice मेंलाने का सबसे अच्छा तरीका है कि अपना खुद का एक Personal Mission Statement बनाना. इसका फोकस इस बात पर होगा कि आप क्या बनना चाहते हैं और क्या करना चाहते हैं.ये success के लिए की गयी आपकी planning है.ये इस बात की पुष्टिकरता है कि आप कौन हैं,आपके goals को focus  में रखता है, और आपके ideas  को इस दुनिया में लाता है. आपका Mission Statement आपको अपनी ज़िन्दगी का leader बनाता है. आप अपना भाग्य खुद बनाते हैं, और जो सपने आपने देखे हैं उन्हें साकार करते हैं.

Habit 3 : Put First Things First प्राथमिक चीजों को वरीयता दें

एक balanced life  जीने के लिए, आपको इस बात को समझना होगा कि आप इस ज़िन्दगीमें हर एक चीज नहीं कर सकते. खुद को अपनी क्षमता से अधिक कामो में व्यस्त करने की ज़रुरत नहीं है. जब ज़रूरी हो तो “ना” कहने में मत हिचकिये, और फिर अपनी important priorities पर focus  कीजिये.
Habit 1  कहती है कि, ” आप in charge हैं .आप creator हैं”. Proactive होना आपकी अपनी choice है. Habit 2 पहले दिमाग में चीजों को visualize करने के बारे में है. अंत को ध्यान में रख कर शुरआत करना vision से सम्बंधित है. Habit 3  दूसरी creation , यानि  physical creation  के बारे में है. इस habit में Habit 1 और Habit 2  का समागम होता है. और यह हर समय हर क्षण होता है. यह Time Management  से related कई प्रश्नों को deal  करता है.

लेकिन यह सिर्फ इतना ही नहीं है. Habit 3  life management  के बारे में भी है—आपका purpose, values, roles ,और priorities. “प्राथमिक चीजें क्या हैं?  प्राथमिक चीजें वह हैं , जिसको आप व्यक्तिगत रूप से सबसे मूल्यवान मानते हों. यदि आप प्राथमिक कार्यों को तरजीह देने का मतलब है कि , आप अपना समय , अपनी उर्जा Habit 2  में अपने द्वारा set की गयीं priorities पर लगा रहे हैं.

Habit 4: Think Win-Win  हमेशा जीत के बारे में सोचें

Think Win-Win अच्छा होने के बारे में नहीं है, ना ही यह कोईshort-cut है. यहcharacter पर आधारित एक कोड है जो आपको बाकी लोगों सेinteract और सहयोग करने के लिए है.

हममे से ज्यादातर लोग अपना मुल्यांकन दूसरों सेcomparison और competition  के आधार पर करते हैं. हम अपनी सफलता दूसरों की असफलता में देखते हैं—यानि अगर मैं जीता, तो तुम हारे, तुम जीते तो मैं हारा. इस तरह life एकzero-sum game बन जाती है. मानो एक ही रोटी हो, और अगर दूसरा बड़ा हिस्सा ले लेता है तो मुझे कम मिलेगा, और मेरी कोशिश होगी कि दूसरा अधिक ना पाए. हम सभी येgame  खेलते हैं, लेकिन आप ही सोचिये कि इसमें कितना मज़ा है?

Win -Win ज़िन्दगी कोco-operation की तरह देखती है, competition कीतरह नहीं.Win-Win दिल और दिमाग की ऐसी स्थिति है जो हमेंलगातार सभी काहित सोचने के लिए प्रेरित करती है.Win-Win का अर्थ है ऐसे समझौते और समाधान जो सभी के लिए लाभप्रद और संतोषजनक हैं. इसमें सभी   खाने को मिलती है, और वो काफी अच्छाtaste  करती है.

एक व्यक्ति या संगठन जोWin-Win attitude  के साथ समस्याओं को हल करने की कोशिश करता है उसके अन्दर तीन मुख्य बातें होती हैं:

Integrity / वफादारी :अपनेvalues, commitments औरfeelings के साथ समझौता ना करना.

Maturity / परिपक्वता: अपनेideas औरfeelings  को साहस के साथ दूसरों के सामने रखना और दूसरों के विचारों और भावनाओं की भी कद्र करना.

Abundance Mentality / प्रचुरता की मानसिकता :इस बात में यकीन रखना की सभी के लिए बहुत कुछ है.

बहुत लोग either/or  केterms  में सोचते हैं: या तो आप अच्छे हैं या आप सख्त हैं. Win-Win में दोनों की आवश्यकता होती है. यह साहस और सूझबूझ के बीचbalance  करने जैसा है.Win-Win को अपनाने के लिए आपको सिर्फ सहानभूतिपूर्ण ही नहीं बल्कि आत्मविश्वाश से लबरेज़ भी होना होगा.आपको सिर्फ विचारशील और संवेदनशील ही नहीं बल्कि बहादुर भी होना होगा.ऐसा करनाकि -courage और  consideration मेंbalance  स्थापित हो, यहीreal maturity  है, और Win-Win  के लिए बेहद ज़रूरी है.

Habit 5: Seek First to Understand, Then to Be Understood / पहले दूसरों को समझो फिर अपनी बात समझाओ.

Communication  लाइफ की सबसे ज़रूरी skill  है. आप अपने कई साल पढना-लिखना और बोलना सीखने में लगा देते हैं. लेकिन सुनने का क्या है? आपको ऐसी कौनसी training  मिली है, जो आपको दूसरों को सुनना सीखाती है,ताकि आप सामने वाले को सच-मुच अच्छे से समझ सकें? शायद कोई नहीं? क्यों?

अगर आप ज्यादातर लोगों की तरह हैं तो शायद आप भी पहले खुद आपनी बात समझाना चाहते होंगे. और ऐसा करने में आप दुसरे व्यक्तिको पूरी तरह ignore कर देते होंगे , ऐसा दिखाते होंगे कि आप सुन रहे हैं,पर दरअसल आप बस शब्दों को सुनते हैं परउनके असली मतलब को पूरी तरह से miss  कर जाते हैं.

सोचिये ऐसा क्यों होता है? क्योंकि ज्यादातर लोग इस intention  के साथ सुनते हैं कि उन्हें reply  करना है, समझना नहीं है.आप अन्दर ही अन्दर खुद को सुनते हैं और तैयारी  करते हैं कि आपको आगे क्या कहना है,क्या सवाल पूछने हैं, etc. आप जो कुछ भी सुनते हैं वो आपके life-experiences से छनकर आप तक पहुचता है.

आप जो सुनते हैं उसे अपनी आत्मकथा से तुलना कर देखते हैं कि ये सही है या गलत. और इस वजह से आप दुसरे की बात ख़तम होने से पहले ही अपने मन में एक धारणा बना लेते हैं कि अगला क्या कहना चाहता है.  क्या ये वाक्य कुछ सुने-सुने से लगते है?

अरे, मुझे पता है कि तुम कैसा feel  कर रहे हो.मुझे भी ऐसा ही लगा था. मेरे साथ भी भी ऐसा ही हुआ था.” ” मैं तुम्हे बताता हूँ कि ऐसे वक़्तमें मैंने क्या किया था.” चूँकि आप अपने जीवन के अनुभवों के हिसाब से ही दूसरों को सुनते हैं. आप इन चारों में से किसी एक तरीके से ज़वाब देते हैं:

Evaluating/ मूल्यांकन:पहले आप judge करते हैं उसके बाद सहमत या असहमत होते हैं.
Probing / जाँच :आप अपने हिसाब से सवाल-जवाब करते हैं.
Advising/ सलाह :आप सलाह देते हैं और उपाय सुझाते हैं.
Interpreting/ व्याख्या :आप दूसरों के मकसद और व्यवहार को अपने
experience के हिसाब से analyze करते हैं.

शायदआप सोच रहे हों कि, अपनेexperience के हिसाब से किसी सेrelate करने में बुराई क्याहै?कुछsituations में ऐसा करना उचित हो सकत है, जैसे कि जब कोई आपसे आपके अनुभवों के आधार पर कुछ बतानेके लिए कहे, जब आप दोनों के बीच एकtrust कीrelationship हो. पर हमेशा ऐसा करना उचित नहीं है.

Habit 6: Synergize / ताल-मेल बैठाना


सरल शब्दों में समझें तो , “दो दिमाग एक से बेहतर हैं ” Synergize करने का अर्थ है रचनात्मक सहयोग देना. यह team-work है. यह खुले दिमाग से पुरानी समस्याओं के नए निदान ढूँढना है.

पर ये युहीं बस अपने आप ही नहीं हो जाता. यह एक process है , और उसी process से, लोग अपनेexperience और expertise को उपयोग में ला पाते हैं .अकेले की अपेक्षा वो एक साथ कहीं अच्छाresult दे पाते हैं. Synergy से हम एक साथ ऐसा बहुत कुछ खोज पाते हैं जो हमारे अकेले खोजने पर शायद ही कभी मिलता. ये वो idea है जिसमे the whole is greater than the sum of the parts. One plus one equals three, or six, or sixty–या उससे भी ज्यादा.

जब लोग आपस में इमानदारी से interact करने लगते हैं, और एक दुसरे से प्रभावित होने के लिए खुले होते हैं , तब उन्हें नयी जानकारीयाँ मिलना प्रारम्भ हो जाता है. आपस में मतभेद नए तरीकों के आविष्कार की क्षमता कई गुना बढ़ा देते हैं.

मतभेदों को महत्त्व देना synergy का मूल है. क्या आप सच-मुच लोगों के बीच जो mental, emotional, और psychological differences होते हैं, उन्हें महत्त्व देते हैं? या फिर आप ये चाहते हैं कि सभी लोग आपकी बात मान जायें ताकि आप आसानी से आगे बढ़ सकें? कई लोग एकरूपता को एकता समझ लेते हैं.

आपसी मतभेदों को weakness नहीं strength के रूप में देखना चाहिए. वो हमारे जीवन में उत्साह भरते हैं.

Habit 7: Sharpen the Saw कुल्हाड़ी को तेज करें

Sharpen the Saw का मतलब है अपने सबसे बड़ी सम्पत्ति यानि खुद को सुरक्षित रखना. इसका अर्थ है अपने लिए एक प्रोग्राम डिजाईन करना जो आपके जीवन के चार क्षेत्रों physical, social/emotional, mental, and spiritual में आपका नवीनीकरण करे. नीचे ऐसी कुछ activities केexample दिए गए हैं:

§ Physical / शारीरिक :अच्छा खाना, व्यायाम करना, आराम करना
§ Social/Emotional /:सामजिक/भावनात्मक :औरों के ससाथ सामाजिक और

अर्थपूर्ण सम्बन्ध बनाना.


§ Mental / मानसिक :पढना-लिखना, सीखना , सीखना.
§ Spiritual / आध्यात्मिक :प्रकृति के साथ समय बीताना , ध्यान करना, सेवा करना.

आप जैसे -जैसे हर एक क्षेत्र में खुद को सुधारेंगे, आप अपने जीवन में प्रगति और बदलाव लायेंगे.Sharpen the Saw आपको fresh रखता है ताकि आप बाकी की six habits अच्छे से practice कर सकें. ऐसा करने से आप challenges face करने की अपनी क्षमता को बढ़ा लेते हैं. बिना ऐसा किये आपका शरीर कमजोर पड़ जाता है , मस्तिष्क बुद्धिरहित हो जाता है, भावनाए ठंडी पड़ जाती हैं,स्वाभाव असंवेदनशील हो जाता है,और इंसान स्वार्थी हो जाता है. और यह एक अच्छी तस्वीर नहीं है, क्यों?

आप अच्छा feel करें , ऐसा अपने आप नहीं होता. एक balanced life जीने काअर्थ है खुद कोrenew करने के लिए ज़रूरी वक़्त निकालना.ये सब आपके ऊपरहै .आप खुद को आराम करकेrenew कर सकते हैं. या हर काम अत्यधिक करके खुद को जला सकते हैं . आप खुद को mentallyऔर spiritually प्यार कर सकते हैं , या फिर अपने well-being से बेखबर यूँ ही अपनी ज़िन्दगी बिता सकते हैं.आप अपने अन्दर जीवंत उर्जा का अनुभव कर सकते हैं या फिर टाल-मटोल कर अच्छे स्वास्थ्य और व्यायाम के फायदों को खो सकते हैं.

आप खुद को पुनर्जीवित कर सकते हैं और एक नए दिन का स्वागत शांति और सद्भावके साथ कर सकते हैं.या फिर आप उदासी के साथ उठकर दिन को गुजरते देख सकतेहैं. बस इतना याद रखिये कि हर दिन आपको खुद को renew करने का एक नया अवसरदेता है, अवसर देता है खुद को recharge करने का. बस ज़रुरत है
""Desire (इच्छा), Knowledge( ज्ञान) और Skills(कौशल) की"".

Source : http://www.thebhaskar.com/2012/08/7-habits-super-successful.html

Monday, April 2, 2012

रोल मॉडल ने बदली जीवन की दिशा - N. R. Nayaynana



  • इंफोसिस के संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति की गिनती दुनिया के एक दर्जन सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में होती है। उन्होंने पूरी दुनिया में भारत को एक नई पहचान दी। पेश है न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के छात्रों के सामने दिया गया उनका एक भाषण: मैं यहां आपके साथ अपने जीवन के कुछ अनुभव बांटना चाहता हूं। उम्मीद है कि ये अनुभव जीवन के संघर्ष में आपके लिए मददगार साबित होंगे। मेरे जीवन के ये वे अहम क्षण थे, जिन्होंने मेरे भविष्य की दिशा तय की। बात वर्ष 1968 की है। वह रविवार की एक खूबसूरत सुबह थी। उस समय मैं आईआईटी कानपुर में था। उस दिन मुझे अमेरिका की एक जानी-मानी यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर वैज्ञानिक से मिलने का मौका मिला। वह वैज्ञानिक कंप्यूटर साइंस के क्षेत्र में हो रहे क्रांतिकारी विकास के बारे में बात कर रहे थे। मुझे लगा कि उनकी बातों में दम है। मैं उनके तर्क से प्रभावित था। उस दिन नाश्ता करने के बाद मैं सीधे लाइब्रेरी गया। मैंने कंप्यूटर साइंस से संबंधित चार-पांच पेपर पढ़े और फैसला किया कि मैं कंप्यूटर साइंस ही पढ़ूंगा। मित्रो, आज जब मैं पलटकर देखता हूं, तो पाता हूं कि कैसे एक रोल मॉडल किसी युवा छात्र का भविष्य बदल सकता है। मैंने अनुभव किया है कि एक अच्छी सलाह आपके लिए तरक्की के नए दरवाजे खोल सकती है। यह मेरे साथ हुआ।
    उद्यमिता से ही दूर होगी गरीबी
    दूसरी घटना वर्ष 1974 की है। जब मैं साइबेरिया और बुल्गारिया के बीच निस रेलवे स्टेशन पहुंचा, उस समय रात के नौ बज रहे थे। रेस्तरां बंद हो चुका था। बैंक भी बंद थे। मेरे पास स्थानीय मुद्रा नहीं थी, इसलिए मैं खाना नहीं खरीद सका। मैं रात में रेलवे प्लेटफॉर्म पर ही सोया। अगले दिन मैं सोफिया एक्सप्रेस में सवार हुआ। उस डिब्बे में एक लड़की और एक लड़का बैठे थे। मैं उस लड़की से फ्रेंच भाषा में बात करने लगा। वह उस देश में रहने वाले लोगों की पीड़ा पर बात करने लगी। इस बीच एक पुलिस वाले ने हमें रोका। दरअसल उसे लगा था कि हम बुल्गारिया की कम्युनिस्ट सरकार की आलोचना कर रहे हैं। लड़की को छोड़ दिया गया, पर मेरा सामान जब्त कर लिया गया। मुझे एक छोटे कमरे में बंद कर दिया गया। मैं उस छोटे-से कमरे में 72 घंटों तक बिना कुछ खाए-पिए रहा। मुझे उम्मीद नहीं थी कि अब मैं कभी दोबारा बाहर की दुनिया देख पाऊंगा। अगले दिन कमरे का दरवाजा खुला और मुझे घसीटकर बाहर लाया गया। मुझे एक ट्रेन के डिब्बे में बंद कर दिया गया और कहा गया कि मुझे इस्तांबुल में बीस घंटे के बाद रिहा कर दिया जाएगा। ट्रेन के गार्ड ने कहा, तुम मित्र देश भारत से हो, इसलिए हम तुम्हें जाने दे रहे हैं। वे शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं। इस्तांबुल तक मैं अकेले आया। मैं भूख से बिलबिला रहा था। बुल्गारिया के उस गार्ड के उस वाक्य ने मुझे एक भ्रमित वामपंथी से दृढ़ पूंजीपति में तब्दील कर दिया। तब मैंने सोचा कि समाज में गरीबी दूर करने का एकमात्र साधन उद्यमिता है, जिसकी मदद से हम बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा कर सकते हैं। 1981 में इंफोसिस की स्थापना के साथ ही यह संकल्प पूरा हुआ। इंफोसिस के जरिये हम हजारों लोगों को बेहतरीन रोजगार देने में सफल रहे।  
    हार से मिलती है सीख
    इंफोसिस कंपनी चलाने के दौरान मैंने कई चीजें सीखीं। सबसे पहले मैं अनुभव से मिलने वाली सीख की बात करूंगा। अनुभव से हम बहुत कुछ सीखते हैं। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम कैसे व क्या सीखते हैं। अगर सीखने की गुणवत्ता बहुत अधिक है, तो हम वह हासिल कर सकते हैं, जिसके बारे में हमने सोचा भी न हो। इंफोसिस इस बात का बेहतरीन उदाहरण है। मेरा मानना है कि जीत की बजाय हम हार से ज्यादा सीखते हैं। हारने पर हम गहराई से हार की वजह पर गौर करते हैं और अपने आपको सुधार पाते हैं। जाहिर है, जब हम खुद को सुधारते हैं, तो हमारे लिए तरक्की के रास्ते खुलते हैं। दूसरी तरफ, जीत से हमारे पुराने सभी कार्यों को समर्थन मिलता है और हमें लगता है कि हमने जो किया, सही किया।  
    बदलाव की क्षमता
    मेरी राय में बेहतरीन लीडर वह है, जो खुद बदलाव के लिए तैयार रहे और अपनी टीम के लोगों में भी सकारात्मक बदलाव की क्षमता रखे। सफल लीडर वह है, जो अपनी टीम के सदस्यों में नई उम्मीदें जा सके, उन्हें बदलाव के लिए तैयार करे और उनके अंदर मौजूद नकारात्मक भावना खत्म कर सके। सफलता के लिए  उम्मीदें जरूरी हैं। इसलिए उम्मीदों को बढ़ावा मिलना चाहिए। अपनी टीम को सपने देखने दीजिए। उनके अंदर विश्वास पैदा करिए, ताकि वे आगे बढ़कर नई ऊंचाइयां हासिल कर सकें।  
    मूल्यों से समझौता नहीं
    जीवन में सच्ची सफलता पाने के लिए जरूरी है कि आप अपने मूल्यों पर डटे रहें। आप जो कहें, उसे पूरा करें। ऐसा करने से ही लोगों के बीच आपकी विश्वसनीयता बनती है। यह जरूरी है। बिना मूल्यों के आप लंबी दूरी नहीं तय कर सकते। किसी भी क्षेत्र में तरक्की के लिए सिद्धांतों का पालन होना चाहिए। जरूरी है कि जब आप कोई फैसला करें, तो आपका अंत:करण उसके लिए राजी हो। अंतरात्मा के खिलाफ किए गए कार्यों से कभी सफलता नहीं मिल सकती।  एक और बात मैंने सीखी है कि हरेक के जीवन में मौके आते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि हम उन मौकों को कैसे लेते हैं। हम उन मौकों को यूं ही जाने देते हैं या फिर पूरे उत्साह के साथ उनका फायदा उठाते हुए अपने लिए नए रास्ते तलाशते हैं।
     अंतिम बात
    जब आपको लगे कि आप जो चाहते थे, आपने उसे हासिल कर लिया है, तो ध्यान रखें कि आप उस संपत्ति के अस्थायी संरक्षक हैं। चाहे वह संपत्ति आर्थिक हो, बौद्धिक हो या फिर भावनात्मक। आप किसी संपत्ति के स्थायी संरक्षक नहीं हो सकते। इसलिए यह आपकी जिम्मेदारी है कि उस संपत्ति को दूसरों के साथ बांटें। ऐसे लोगों के साथ, जो कमजोर हैं और किन्हीं वजहों से पीछे रह गए हैं।
    प्रस्तुति - मीना त्रिवेदी   Source : http://www.livehindustan.com/news/editorial/aapkitaarif/article1-story-57-65-226016.html