भाई अख्तर खान साहब ! अपनी बीवी के पैर सिर्फ़ मैं ही नहीं दबाता बल्कि मेरे दोस्तों की लंबी चौड़ी फ़ौज का हरेक वह जवान दबाता है जो कि आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी साहब (लेखक : अगर अब भी न जागे तो ...) के संपर्क में रह चुका है । उनकी शिक्षा यही थी और वे खुद भी ऐसा ही करते थे । ऐसा वे इसलिए करते थे क्योंकि उन्होंने इसलाम में औरतों के हरेक रूप की सेवा और सम्मान का ही हुक्म पाया था । इसलाम के इसी बोध और चिंतन को आम करने में उन्होंने अपना सारा जीवन खपा दिया और अब यही काम मैं कर रहा हूँ । मौलाना उस्मानी इतने अच्छे थे कि जो लोग मुझे बुरा कहते हैं वे भी उनके बेहतरीन आचरण की तारीफ करते हैं । 'बोले तो बिंदास' वाले ब्लॉग के भाई रोहित जी उनसे मिल चुके हैं । वे इसकी गवाही देते हैं। मैं उन जैसा न बन सका और न ही बन पाऊंगा। लेकिन फिर भी प्रयास जारी रखे हुए हूँ। अपनी बीवी के पैर दबाना ख़ुद में तब्दीली लाने का बेहतरीन ज़रिया है । इससे अहंकार की नकारात्मकता कमजोर पड़ती है , दिल में नर्मी और हमदर्दी का जज़्बा बढ़ता है और आदमी घरेलू हिंसा महिला अधिनियम और दहेज उत्पीड़न एक्ट की चपेट में आने से जीवन भर सुरक्षित रहता है।
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