उम्र भर रोते हैं वे माँ की ज़ियारत के लिए
जिन के आते ही जहाँ से ख़ुद चली जाती है माँ
ज़िंदगी उनकी भटकती रूह की मानिंद है
उनको हर आँसू के क़तरे में नज़र आती है माँ
शब्दार्थ : ज़ियारत-दर्शन , रूह-आत्मा, मानिंद-समान ,
@ शिखा जी ! आपके जज़्बात अच्छे हैं । हम इनकी क़द्र करते हैं लेकिन हर चीज़ ख़ुदा से कम है चाहे माँ हो , बाप हो या कोई गुरू , पीर और पैग़ंबर हो । इंसान को यह सच हमेशा अपने सामने रखना चाहिए तभी वह भटकने से बच सकता है।
pyarimaan.blogspot.com
पर शिखा कौशिक की एक रचना पर एक 'अटल सत्य' व्यक्त करते हुए।
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Hamesha ki tarah aapse sahmat hun.
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