Wednesday, April 13, 2011

'सारी दुनिया कुछ दिन का सामान है और इस दुनिया में सबसे अच्छी चीज़ नेक बीवी है।'

दुनिया की इस हक़ीक़त को समझाया है प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने। सारी सभ्यता की बुनियाद औरत और मर्द के आपसी रिश्ते पर ही है । सभ्यता के संतुलन के लिए लाज़िमी है कि औरत और मर्द के क़ुदरती रिश्ते में कोई बिगाड़ न आने पाए। यह रिश्ता बना रहे और मानव सृष्टि चलती रहे , ईश्वर यही चाहता है । यही वजह है कि ईश्वर ने औरत और मर्द के दरम्यान स्वाभाविक आकर्षण भी रखा और अपनी वाणी के द्वारा इस रिश्ते को क़ायम करने और इसे अदा करने का तरीक़ा भी बताया। ईश्वर की वाणी की पहचान भी यही है कि उसमें इस रिश्ते को अच्छे ढंग से निभाने की शिक्षा दी गई होगी और इससे पलायन करने को वर्जित ठहराया होगा। जो लोग पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते में दोष बताएं और सोचें कि घर-गृहस्थी के पचड़े में पड़ने से क्या फ़ायदा ?
अब इसके बाद वे जो भी करेंगे , उसमें संतुलन का पहलू नहीं पाया जाएगा । इनमें से कुछ लोग अपनी मौज-मस्ती के लिए आज़ाद यौन संबंध बनाते हैं और समाज में यौन रोग फैलाते हैं और अवैध संतानों को जन्म देकर उन्हें लावारिस छोड़ देते हैं और कुछ लोग सन्यास ले लेते हैं। ये लोग घरों से निकल खड़े होते हैं अपने बूढ़े माँ-बाप को बेसहारा छोड़कर। जिनसे इन्होंने जन्म लिया , उनकी भी सेवा ये लोग नहीं करते और न ही आगे किसी को जन्म देते हैं । वास्तव में ये दोनों ही लोग मनुष्य शरीर और जीवन के बारे में उस रचनाकार प्रभु की योजना को समझ नहीं पाए।
व्याभिचार और सन्यास, इस्लाम में दोनों ही हराम हैं और विवाह करना और औलाद की अच्छी परवरिश करना अनिवार्य है , अगर किसी के साथ कोई मजबूरी हो तो वह अपवाद है।
नेक बीवी भी दुनिया की सबसे बड़ी पूंजी है और नेक औलाद भी और यह पूंजी तभी मिलती है जबकि आदमी ईश्वर के आदेश का पालन करे, धर्म का मर्म भी यही है ।
यह हदीस 'मुस्लिम' में है ।

2 comments:

  1. anvr bhaai bhut achchi nsihat or khudaa kaa shukr hai ke aap or me to is mamle me khushqismat hain khudaa nzar nhin lgaaye .......akhtar khan akela kota rajsthan

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  2. मुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है. मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.

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