हमारे वालिद साहब बताते हैं कि ज़ैतून का तेल 120 बीमारियों से शिफ़ा है । यह बात सही है। इसे आप भी आसानी से जान सकते हैं। अगर आप जवान और सेहतमंद मर्दों जैसी ताक़त पाना चाहते हैं तो आप ज़ैतून के तेल में अंडों का ऑमलेट बनाकर रोज़ाना खाएं । बहुत आसान प्रयोग है ।
मेरे ब्लॉग 'आर्य भोजन' पर भी आप
'भारतीय वैद्य और हकीमों के अचूक नुस्ख़े घोड़े जैसी ताक़त के लिए '
देखकर अपने वैवाहिक जीवन को सफल और सुखी बना सकते हैं । आपका लाइफ़ पार्टनर आपसे संतुष्ट रहेगा और आप जीवन का सच्चा आनंद ले सकेंगे।
Sunday, March 13, 2011
Saturday, March 12, 2011
ज़लज़लों और क़ुदरती तबाहियों के बारे में अल्लाह की नीति The punishment
सबका पैदा करने वाला सच्चा बादशाह कहता है कि
...और (हर चीज़ में)संतुलन स्थापित किया ; कि तुम भी तुला में सीमा का उल्लंघन न करो । - क़ुरआन, 55, 7-8 अंततः हमने हरेक को उसके अपने पाप के कारण पकड़ लिया। फिर उनमें से कुछ पर तो हमने पथराव करने वाली हवा भेजी और उनमें से कुछ को एक प्रचण्ड कड़क ने आ लिया। और उनमें से कुछ को हमने धरती में धंसा दिया। और उनमें से कुछ को हमने डुबो दिया। अल्लाह तो ऐसा न था कि उन पर ज़ुल्म करता, लेकिन वे ख़ुद अपने आप पर ज़ुल्म कर रहे थे। - क़ुरआन, 29, 40
फिर तुमसे पहले जो नस्लें गुज़र चुकी हैं उनमें ऐसे भले-समझदार लोग क्यों न हुए जो धरती में बिगाड़ से रोकते, उन थोड़े से लोगों के सिवा जिनको उनमें से हमने बचा लिया। अत्याचारी लोग तो उसी सुख-सामग्री के पीछे पड़े रहे, जिसमें वे रखे गए थे। वे तो थे ही अपराधी। तुम्हारा रब ऐसा नहीं है कि बस्तियों को अकारण नष्ट कर दे, जबकि वहाँ के निवासी बनाव और सुधार में लगे हों । - क़ुरआन, 11, 116-117
ये बस्तियों के कुछ हालात हैं, जो हम तुम्हें सुना रहे हैं। इनमें से कुछ तो खड़ी हैं और कुछ की फ़सल कट चुकी है। हमने उन पर ज़ुल्म नहीं किया, बल्कि उन्होंने ख़ुद अपने आप पर ज़ुल्म किया। फिर जब तेरे रब का हुक्म आ गया तो उनके वे पूज्य, जिन्हें वे अल्लाह से हटकर पुकारा करते थे, उनके कुछ भी काम न आ सके। उन्होंने विनाश के अलावा उनके लिए किसी और चीज़ में बढ़ोतरी नहीं की। तेरे रब की पकड़ ऐसी ही होती है, जब वह किसी ज़ालिम बस्ती को पकड़ता है। निःसंदेह उसकी पकड़ बड़ी दुखद , अत्यंत कठोर होती है। निश्चय ही इसमें उस व्यक्ति के लिए एक निशानी है जो आख़िरत (परलोक) की यातना से डरता हो। वह एक ऐसा दिन होगा, जिसमें सारे ही लोग इकट्ठा किए जाएँगे और वह एक ऐसा दिन होगा , जिसमें सब कुछ आँखों के सामने होगा।
-क़ुरआन, 11, 100-103
और अपने रब से माफ़ी माँगो फिर उसकी तरफ़ पलट आओ ; बेशक मेरा रब बड़ा दयावन्त, बहुत प्रेम करने वाला है। - क़ुरआन, 11, 90
जब आदमी यह भूल जाता है कि वह अपनी मर्ज़ी से नहीं बल्कि इस कायनात के मालिक की मर्ज़ी से पैदा हुआ है और उसे वह अपने कर्मों का हिसाब देने के लिए ज़िम्मेदार है तो उसकी इच्छाएं असंतुलित हो जाती हैं । अब वह जैसे जैसे अपनी ये असंतुलित इच्छाएं पूरी करने की कोशिश करता है तो उसका जीवन भी असंतुलित होने लगता है और जब दुनिया के ज़्यादातर लोगों का कर्म असंतुलित हो जाता है तो वे जिन चीजों को इस्तेमाल करते हैं , उनमें भी वे हद से गुज़र जाते हैं । इस तरह चीज़ों में और पर्यावरण में जो संतुलन इनके बनाने वाले ने क़ायम किया है , वह नष्ट हो जाता है और तरह तरह की बीमारियाँ, जंग और क़ुदरती तबाहियाँ मानव जाति को घेर कर नष्ट करने लगती हैं । यह असंतुलन तब तक दूर नहीं हो सकता जब तक कि मानव जाति अपने मालिक को अपना हाकिम न माने और उसके ख़िलाफ अपनी बग़ावत के अमल न छोड़ दे।
इस पर्यावरण में ही नहीं बल्कि हरेक चीज़ में फिर से संतुलन क़ायम करने का तरीक़ा इसके सिवा कुछ और नहीं है कि अब सामूहिक रूप से हरेक चीज़ को केवल अपने रब की नीति के अनुसार ही बरता जाय।
दयालु पालनहार अपनी वाणी क़ुरआन में यही बताता है और सुरक्षा देने के लिए अपने संरक्षण में बुलाता है ।
आईये , प्रभु के प्रति समर्पण कीजिए , अपने कल्याण के लिए।
Friday, March 11, 2011
हर चीज़ खुदा का निशान है , उसके गुणों का परिचय है और यह कि रचना कभी अपने रचनाकार के बराबर नहीं होती The praise
उम्र भर रोते हैं वे माँ की ज़ियारत के लिए
जिन के आते ही जहाँ से ख़ुद चली जाती है माँ
ज़िंदगी उनकी भटकती रूह की मानिंद है
उनको हर आँसू के क़तरे में नज़र आती है माँ
शब्दार्थ : ज़ियारत-दर्शन , रूह-आत्मा, मानिंद-समान ,
@ शिखा जी ! आपके जज़्बात अच्छे हैं । हम इनकी क़द्र करते हैं लेकिन हर चीज़ ख़ुदा से कम है चाहे माँ हो , बाप हो या कोई गुरू , पीर और पैग़ंबर हो । इंसान को यह सच हमेशा अपने सामने रखना चाहिए तभी वह भटकने से बच सकता है।
pyarimaan.blogspot.com
पर शिखा कौशिक की एक रचना पर एक 'अटल सत्य' व्यक्त करते हुए।
जिन के आते ही जहाँ से ख़ुद चली जाती है माँ
ज़िंदगी उनकी भटकती रूह की मानिंद है
उनको हर आँसू के क़तरे में नज़र आती है माँ
शब्दार्थ : ज़ियारत-दर्शन , रूह-आत्मा, मानिंद-समान ,
@ शिखा जी ! आपके जज़्बात अच्छे हैं । हम इनकी क़द्र करते हैं लेकिन हर चीज़ ख़ुदा से कम है चाहे माँ हो , बाप हो या कोई गुरू , पीर और पैग़ंबर हो । इंसान को यह सच हमेशा अपने सामने रखना चाहिए तभी वह भटकने से बच सकता है।
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पर शिखा कौशिक की एक रचना पर एक 'अटल सत्य' व्यक्त करते हुए।
Wednesday, March 9, 2011
एक आसान इसलामी उपाय , जिससे हरेक शादीशुदा आदमी घरेलू हिंसा महिला अधिनियम और दहेज उत्पीड़न एक्ट की चपेट में आने से जीवन भर सुरक्षित रहता है The most usefull advice
भाई अख्तर खान साहब ! अपनी बीवी के पैर सिर्फ़ मैं ही नहीं दबाता बल्कि मेरे दोस्तों की लंबी चौड़ी फ़ौज का हरेक वह जवान दबाता है जो कि आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी साहब (लेखक : अगर अब भी न जागे तो ...) के संपर्क में रह चुका है । उनकी शिक्षा यही थी और वे खुद भी ऐसा ही करते थे । ऐसा वे इसलिए करते थे क्योंकि उन्होंने इसलाम में औरतों के हरेक रूप की सेवा और सम्मान का ही हुक्म पाया था । इसलाम के इसी बोध और चिंतन को आम करने में उन्होंने अपना सारा जीवन खपा दिया और अब यही काम मैं कर रहा हूँ । मौलाना उस्मानी इतने अच्छे थे कि जो लोग मुझे बुरा कहते हैं वे भी उनके बेहतरीन आचरण की तारीफ करते हैं । 'बोले तो बिंदास' वाले ब्लॉग के भाई रोहित जी उनसे मिल चुके हैं । वे इसकी गवाही देते हैं। मैं उन जैसा न बन सका और न ही बन पाऊंगा। लेकिन फिर भी प्रयास जारी रखे हुए हूँ। अपनी बीवी के पैर दबाना ख़ुद में तब्दीली लाने का बेहतरीन ज़रिया है । इससे अहंकार की नकारात्मकता कमजोर पड़ती है , दिल में नर्मी और हमदर्दी का जज़्बा बढ़ता है और आदमी घरेलू हिंसा महिला अधिनियम और दहेज उत्पीड़न एक्ट की चपेट में आने से जीवन भर सुरक्षित रहता है।
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इस बातचीत की पृष्ठभूमि जानने के लिए जाएं
http://akhtarkhanakela.blogspot.com
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