Sunday, November 18, 2012

धन और ताकत से नहीं मिलती खुशी -Dalai Lama

हम पैसे या ताकत से खुशी नहीं खरीद सकते। जो जितना शक्तिशाली है, उसके अंदर उतनी ही ज्यादा चिंता और भय है। यह भय और चिंता ही हमारे दुखों की वजह है। मानसिक सुख आपकी शारीरिक पीड़ा को हल्का कर सकता है लेकिन भौतिक सुख आपकी मानसिक पीड़ा को कम नहीं कर सकता।
वह तिब्बतियों के 14वें धर्मगुरु हैं, लेकिन लगभग पूरी दुनिया उन्हें किसी शासनाध्यक्ष की तरह ही सम्मान देती है। यह दलाई लामा की मेहनत ही है, जिसने तिब्बत की आजादी के सवाल को कभी मरने नहीं दिया। आज नोबेल पुरस्कार विजेता दलाई लामा को मानवता का सबसे बड़ा हिमायती माना जाता है। आयरलैंड की लिमरिक यूनिवर्सिटी में भाषण देते हुए दलाई लामा ने कहा कि दुनिया में शांति के लिए मानवीय मूल्यों को प्रोत्साहित करना होगा। पेश हैं, भाषण के अंश:
मानवता पर विचार
मैं यहां खड़ा होकर बोलूंगा, ताकि आप सबको देख सकूं। सबसे पहले मैं आप सबको एक बात समझाना चाहता हूं कि हम सब इंसान हैं। हम सब एक जैसे हैं, हमारी भावनाएं एक हैं, हमारे एहसास समान हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस धर्म के हैं, किस जाति के हैं और किस देश के हैं। पूरी दुनिया में मानवता एक है। आज हमारे बीच में जो भी समस्याएं हैं, उनकी  वजह यह है कि हम इंसानियत को भूल जाते हैं। मैं भी एक साधारण इंसान हूं, मैं आपसे अलग नहीं हूं। हमें दूसरों को समझना होगा, उन्हें तवज्जो देनी होगी। आप चाहे जितने अमीर हों, चाहे जितने शक्तिशाली हों, आप इंसान ही रहेंगे। इंसानियत से ऊपर कुछ नहीं है। हम इंसानियत को नजरअंदाज नहीं कर सकते।
‘मैं’ की भावना
ज्यादातर लोग ‘मैं’ और ‘मेरा’ के भ्रम में पड़े रहते हैं। पर कोई नहीं जानता कि ‘मैं’ क्या है? ‘मेरा’ से उनका क्या आशय है? कई बार हमारे अंदर मौजूद यह ‘मैं’ की भावना दर्द की वजह बन जाती है। अगर हम सब ‘मैं’ की बजाय एक-दूसरे के बारे में सोचें, तो हमारे दुखों का अंत आसानी से हो जाएगा। ‘मैं’ की भावना हमारे अंदर स्वार्थ की भावना पैदा करती है और हम दूसरों के दर्द को समझ नहीं पाते हैं। हमें अपने बारे में जरूर सोचना चाहिए, पर साथ ही दूसरों के बारे में भी विचार करना चाहिए, ताकि हम बेहतर समाज बना सकें।
सच्ची खुशी
सच्ची खुशी का रास्ता हमारे अंदर है। हम पैसे या ताकत से खुशी नहीं खरीद सकते। सच तो यह है कि जो जितना शक्तिशाली है, उसके अंदर उतना ही ज्यादा भय व चिंता है। पैसों के बल पर आप शांति व प्रेम हासिल नहीं कर सकते। सच्ची खुशी तभी मिलती है, जब हम दूसरों का भरोसा जीत पाते हैं। आपसी विश्वास के बल पर ही हम दूसरों से दोस्ती व सहयोग का रिश्ता बना पाते हैं। सच्ची खुशी पाने के लिए दोस्ती, सहयोग व प्रेम जरूरी है। पैसे व ताकत के साथ ही हमारे अंदर अविश्वास व डर की भावना गहरी हो जाती है और हम दुखी हो जाते हैं।
दया की भावना
हम दूसरों के दुखों को नजरअंदाज करके खुश नहीं रह सकते, इसलिए अपने स्वार्थो से ऊपर उठकर दूसरों के बारे में विचार करें, उनकी मदद करें। यह आप तभी कर पाएंगे, जब आपके मन में दया का भाव होगा। यकीन कीजिए, हम सबके अंदर जन्म से ही दया, प्यार व लगाव की भावना है, पर स्वार्थ में पड़कर हम इन भावनाओं को नजरअंदाज कर देते हैं। हमें इससे ऊपर उठना होगा। हम सिर्फ अपने बारे में नहीं सोच सकते, हमें दूसरों के बारे में भी सोचना होगा, उनकी चिंता करनी होगी, उनकी मदद करनी होगी।
गुस्से से नुकसान
एक और अहम बात। गुस्सा हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के लिए ठीक नहीं है। हम जितने शांत रहेंगे, हमारी सेहत उतनी ही अच्छी रहेगी और जीवन सुखमय होगा। गुस्सा हमारे जीवन को अशांत बनाता है। हमारे चारों तरफ के माहौल को खराब करता है। अगर हम शांत रहेंगे, तो बड़ी से बड़ी समस्या आने पर भी आसानी से उसका हल खोज लेंगे। अशांत मन समस्याओं को और गंभीर बना देता है। हमें गुस्से पर काबू रखना होगा। इसके लिए हमें शांत रहने, दूसरों से प्रेम करने व दूसरों के प्रति दया का भाव पैदा करना होगा। अगर हमारे मन में दूसरों के प्रति दया व प्रेम होगा, तो सकारात्मक दिशा में पहल कर पाएंगे। दूसरों की मदद का एहसास मन को शांत करेगा और हम गुस्से से छुटकारा पा सकेंगे।
जीवन के मूल्य
तमाम लोगों को मैंने देखा है वे खुद को खुश करने के लिए या तो टीवी से चिपके रहेंगे या फिर संगीत सुनेंगे। इससे मन की शांति नहीं मिलने वाली है। मन की शांति के लिए खुद के अंदर झांकना जरूरी है। अगर हम खुद को पहचानने की कोशिश करेंगे, तो हमें अपार शांति  मिलेगी। एक बात याद रखिए, मन की शांति भौतिककष्ट को कम सकती है, पर भौतिक सुख आपके मन के दुख को कम नहीं कर सकता। मन की शांति के लिए हमें नैतिक मूल्यों पर जोर देना होगा। हमें अपने बच्चों को नैतिकता के प्रति जागरूक बनाना होगा, ताकि बड़े होकर वे सही राह पर चल सकें। खुद को खुश करने के लिए हम दूसरों को दुखी नहीं कर सकते, बल्कि यदि आप दूसरों को खुशी देने की कोशिश करेंगे, तो आपको मन की शांति के साथ ही सुख का भी एहसास होगा।
सभी धर्मों का सम्मान
हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने का अधिकार है। लेकिन हमारे मन में दूसरों के धर्म के प्रति भी सम्मान होना चाहिए। न केवल धर्मो के प्रति, बल्कि हमें उनका भी सम्मान करना चाहिए, जो किसी धर्म में विश्वास नहीं रखते हैं, जो नास्तिक हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हम सब इंसान हैं और हमें एक-दूसरे से प्रेमभाव रखना है। यह भावना पूरी दुनिया में धार्मिक सौहार्द के लिए बहुत जरूरी है। अगर हम दुनिया में शांति चाहते हैं, तो हमें धार्मिक भाईचारे और सौहार्द की भावना विकसित करनी होगी।


प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी

http://www.livehindustan.com/news/editorial/aapkitaarif/article1-story-57-65-281953.html

Saturday, September 15, 2012

नास्तिकता निराशा से भर देती है Nastik

आज हिंदुस्तान (अंक दिनांक 15 सितंबर 2012) में ख़ुशवंत सिंह जी का लेख पढ़ा। ज़िंदगी की ऐश लेने के लिए जितनी भी ज़रूरी चीज़ें हैं वे सब उनके पास हैं। इसके बावजूद वह ज़िंदगी से आजिज़ आ चुके हैं। वह लिखते हैं-
अब मैं अपनी जिंदगी से आजिज आ गया हूं
खुशवंत सिंह, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार
पिछले 15 अगस्त को मैं 98 साल का हो गया। फिलहाल मेरी सेहत का बुरा हाल है। इसलिए यह कॉलम लिखना बहुत मुश्किल हो गया है। मैं पिछले सत्तर साल से लगातार लिखता रहा हूं। लेकिन अब तो सच यह है कि मैं मरना चाहता हूं। मैंने बहुत जी लिया। अब मैं जिंदगी से आजिज आ गया हूं। आगे देखने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं जो भी जिंदगी में करना चाहता था, उसे कर चुका हूं। तब जिंदगी में घिसटते रहने का क्या मतलब है? वह भी तब, जब करने को कुछ भी न बचा हो। मुझे तो इस दौर में एक ही राहत नजर आती है कि अपनी पुरानी खुशनुमा यादों में खो जाऊं। यों ही फैज याद आते हैं-रात दिल में यूं तेरी खोई हुई याद आए।जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए।जैसे सहराओं में हौले से चले बादे नसीमजैसे बीमार को बेवजह करार आ जाए।मैं सोचता हूं कि किसी लाइलाज शख्स का इलाज क्या है? इसका जवाब है: एक लाश जैसे शरीर के लिए अपनी जिंदगी से विदा हो चुकी महबूबाओं को याद करना। शायद !
निराशा और पीड़ा भरे ये शब्द उनके मुंह से क्यों निकल रहे हैं ?
...क्योंकि उन्होंने ज़िंदगी को अपने तरीक़े से जिया न कि उस तरीक़े से जैसे कि ज़िंदगी देने वाले ने बताया है। अपने तरीक़े से ज़िंदगी जीने वाले की सबसे बड़ी नाकामी यह होती है कि वह कभी नहीं जान पाता कि मौत की सरहद के पार उसके साथ क्या होने वाला है ?
यही चीज़ इंसान को निराशा से भर देती है। नास्तिकता निराशा से भर देती है
ध्यान रहे कि ख़ुशवंत सिंह जी ख़ुद को नास्तिक बताते हैं।

Wednesday, August 29, 2012

7 Habits जो बना सकती हैं आपको Super Successful

Er. Prabhakar Pandey
The 7 Habits of Highly Effective People, या अतिप्रभावकारी लोगों की 7 आदतें, Stephen R. Covey द्वारा लिखी गयी ये किताब आपने ज़रूर देखी, पढ़ी, या सुनी होगी. आज Thebhaskar.Com पर मैं आपको इसी best seller book का सार Hindi में share कर रहा हूँ. यह पढकर यदि आपको लगता है कि वाकई करोड़ों लोगों की तरह आप भी इससे लाभान्वित हो सकते हैं तो बिना किसी झिझक के इस book को ज़रूर खरीदें. यह book Hindi में भी उपलब्ध है.
यह Post थोड़ी लंबी  है. लगभग 2750 शब्दों की, इसलिए यदि आप चाहें तो Thebhaskar.com को Bookmark या Favouritesमें list कर लें . ताकि यदि आप एक बार में पूरी post  न पढ़ पायें तो आसानी से फिर इस पेज पर आ सकें. वैसे Google में thebhaskar.com search  करने पर भी आप दुबारा इस Page पर आ सकते हैं.

7 Habits जो बना सकतीं हैं आपको  Super Successful

आपकी ज़िन्दगी बस यूँ ही नहीं घट जाती. चाहे आप जानते हों या नहीं, ये आपही के द्वारा डिजाईन की जाती है. आखिरकार आप ही अपने विकल्प चुनते हैं. आप खुशियाँ चुनते हैं . आप दुःख चुनते हैं.आप निश्चितता चुनते हैं. आप अपनी अनिश्चितता चुनते हैं.आप अपनी सफलता चुनते हैं. आप अपनी असफलता चुनते हैं.आप साहस चुनते हैं.आप डर चुनते हैं.इतना याद रखिये कि हर एक क्षण, हर एक परिस्थिति आपको एक नया विकल्प देती है.और ऐसे में आपके पास हमेशा ये opportunity होती है कि आप चीजों को अलग तेरीके से करें और अपने लिए और positive result produce  करें.

Habit 1 : Be Proactive / प्रोएक्टिव बनिए

Proactive  होने का मतलब है कि अपनी life के लिए खुद ज़िम्मेदार बनना. आप हर चीज केलिए अपने parents  या grandparents  को नही blame कर सकते. Proactive  लोग इस बात को समझते हैं कि वो “response-able” हैं . वो अपने आचरण के लिए जेनेटिक्स , परिस्थितियों, या परिवेष को दोष नहीं देते हैं.उन्हें पता होताहै कि वो अपना व्यवहार खुद चुनते हैं. वहीँ दूसरी तरफ जो लोग reactive  होते हैं वो ज्यादातर अपने भौतिक वातावरण से प्रभावितहोते हैं. वो अपने behaviour  के लिए बाहरी चीजों को दोष देते हैं. अगर मौसम अच्छा है, तोउन्हें अच्छा लगता है.और अगर नहीं है तो यह उनके attitude और  performance  को प्रभावित करता है, और वो मौसम को दोष देते हैं. सभी बाहरी ताकतें एक उत्तेजना  की तरह काम करती हैं , जिन पर हम react करते हैं. इसी उत्तेजना और आप उसपर जो प्रतिक्रिया करते हैं के बीच में आपकी सबसे बड़ी ताकत छिपी होती है- और वो होती है इस बात कि स्वतंत्रता कि आप  अपनी प्रतिक्रिया का चयन स्वयम कर सकते हैं. एक बेहद महत्त्वपूर्ण चीज होती है कि आप इस बात का चुनाव कर सकते हैं कि आप क्या बोलते हैं.आप जो भाषा प्रयोग करते हैं वो इस बात को indicate  करती है कि आप खुद को कैसे देखते हैं.एक proactive व्यक्ति proactive भाषा का प्रयोग करता है.–मैं कर सकता हूँ, मैं करूँगा, etc. एक reactive  व्यक्ति reactive  भाषा का प्रयोग करता है- मैं नहीं कर सकता, काश अगर ऐसा होता, etc. Reactive  लोग  सोचते हैं कि वो जो कहते और करते हैं उसके लिए वो खुद जिम्मेदार नहीं हैं-उनके पास कोई विकल्प नहीं है.

ऐसी परिस्थितियां जिन पर बिलकुल भी नहीं या थोड़ा-बहुत control किया जा सकता है , उसपर react या चिंता करने के बजाये proactive  लोग अपना time और  energy  ऐसी चीजों में लगाते हैं जिनको वो  control  कर सकें. हमारे सामने जो भी समस्याएं ,चुनतिया या अवसर होते हैं उन्हें हम दो क्षेत्रों में बाँट सकते हैं:

1)Circle of Concern ( चिंता का क्षेत्र )
2)Circle of Influence. (प्रभाव का क्षेत्र )


Proactive  लोग अपना प्रयत्न Circle of Influence पर केन्द्रित करते हैं.वो ऐसी चीजों पर काम करते हैं जिनके बारे में वो कुछ कर सकते हैं: स्वास्थ्य , बच्चे , कार्य क्षेत्र कि समस्याएं. Reactive  लोग अपना प्रयत्न Circle of Concern पर केन्द्रित करते हैं: देश पर ऋण, आतंकवाद, मौसम. इसबात कि जानकारी होना कि हम अपनी energy किन चीजों में खर्च करते हैं, Proactive  बनने की दिशा में एक बड़ा कदम है.

Habit 2: Begin with the End in Mind  अंत को ध्यान में रख कर शुरुआत करें. तो, आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं? शायद यह सवाल थोड़ा अटपटा लगे,लेकिन आप इसके बारे में एक क्षण के लिए सोचिये. क्या आप अभी वो हैं जो आप बनना चाहते थे, जिसका सपना आपने देखा था, क्या आप वो कर रहे हैं जो आप हमेशा से करना चाहते थे. इमानदारी से सोचिये. कई बार ऐसा होता है कि लोग खुद को ऐसी जीत हांसिल करते हुए देखते हैं जो दरअसल खोखली होती हैं–ऐसी सफलता, जिसके बदले में उससे कहीं बड़ी चीजों को  गवाना पड़ा. यदि आपकी सीढ़ी सही दीवार पर नहीं लगी है तो आप जो भी कदम उठाते हैं वो आपको गलत जगह पर लेकर जाता है.

Habit 2  आपके imagination या  कल्पना  पर आधारित है– imagination , 

यानि आपकी वो क्षमता जो आपको अपने दिमाग में उन चीजों को दिखा सके जो आप अभी अपनी आँखों से नहीं देख सकते. यह इस सिधांत पर आधारित है कि हर एक चीज का निर्माण दो बार होता है. पहला mental creation, और दूसरा physical creation. जिस तरह blue-print तैयार होने केबाद मकान बनता है, उसी प्रकार mental  creation  होने के बाद ही physical creation होती है. अगर आप खुद  visualize  नहीं करते हैं कि आप क्या हैं और क्या बनना चाहते हैं तो आप, आपकी life कैसी होगी इस बात का फैसला औरों पर और परिस्थितियों पर छोड़ देते हैं. Habit 2  इस बारे में है कि आप किस तरह से अपनी विशेषता को पहचानते हैं,और फिर अपनी personal, moral और  ethical  guidelines के अन्दर खुद को खुश रख सकते और पूर्ण कर सकते हैं.अंत को ध्यान में रख कर आरम्भ करने का अर्थ है, हर दिन ,काम या project  की शुरआत एक clear vision  के साथ करना कि हमारी क्या दिशा और क्या मंजिल होनी चाहिए, और फिर proactively  उस काम को पूर्ण करने में लग जाना.

Habit 2  को practice मेंलाने का सबसे अच्छा तरीका है कि अपना खुद का एक Personal Mission Statement बनाना. इसका फोकस इस बात पर होगा कि आप क्या बनना चाहते हैं और क्या करना चाहते हैं.ये success के लिए की गयी आपकी planning है.ये इस बात की पुष्टिकरता है कि आप कौन हैं,आपके goals को focus  में रखता है, और आपके ideas  को इस दुनिया में लाता है. आपका Mission Statement आपको अपनी ज़िन्दगी का leader बनाता है. आप अपना भाग्य खुद बनाते हैं, और जो सपने आपने देखे हैं उन्हें साकार करते हैं.

Habit 3 : Put First Things First प्राथमिक चीजों को वरीयता दें

एक balanced life  जीने के लिए, आपको इस बात को समझना होगा कि आप इस ज़िन्दगीमें हर एक चीज नहीं कर सकते. खुद को अपनी क्षमता से अधिक कामो में व्यस्त करने की ज़रुरत नहीं है. जब ज़रूरी हो तो “ना” कहने में मत हिचकिये, और फिर अपनी important priorities पर focus  कीजिये.
Habit 1  कहती है कि, ” आप in charge हैं .आप creator हैं”. Proactive होना आपकी अपनी choice है. Habit 2 पहले दिमाग में चीजों को visualize करने के बारे में है. अंत को ध्यान में रख कर शुरआत करना vision से सम्बंधित है. Habit 3  दूसरी creation , यानि  physical creation  के बारे में है. इस habit में Habit 1 और Habit 2  का समागम होता है. और यह हर समय हर क्षण होता है. यह Time Management  से related कई प्रश्नों को deal  करता है.

लेकिन यह सिर्फ इतना ही नहीं है. Habit 3  life management  के बारे में भी है—आपका purpose, values, roles ,और priorities. “प्राथमिक चीजें क्या हैं?  प्राथमिक चीजें वह हैं , जिसको आप व्यक्तिगत रूप से सबसे मूल्यवान मानते हों. यदि आप प्राथमिक कार्यों को तरजीह देने का मतलब है कि , आप अपना समय , अपनी उर्जा Habit 2  में अपने द्वारा set की गयीं priorities पर लगा रहे हैं.

Habit 4: Think Win-Win  हमेशा जीत के बारे में सोचें

Think Win-Win अच्छा होने के बारे में नहीं है, ना ही यह कोईshort-cut है. यहcharacter पर आधारित एक कोड है जो आपको बाकी लोगों सेinteract और सहयोग करने के लिए है.

हममे से ज्यादातर लोग अपना मुल्यांकन दूसरों सेcomparison और competition  के आधार पर करते हैं. हम अपनी सफलता दूसरों की असफलता में देखते हैं—यानि अगर मैं जीता, तो तुम हारे, तुम जीते तो मैं हारा. इस तरह life एकzero-sum game बन जाती है. मानो एक ही रोटी हो, और अगर दूसरा बड़ा हिस्सा ले लेता है तो मुझे कम मिलेगा, और मेरी कोशिश होगी कि दूसरा अधिक ना पाए. हम सभी येgame  खेलते हैं, लेकिन आप ही सोचिये कि इसमें कितना मज़ा है?

Win -Win ज़िन्दगी कोco-operation की तरह देखती है, competition कीतरह नहीं.Win-Win दिल और दिमाग की ऐसी स्थिति है जो हमेंलगातार सभी काहित सोचने के लिए प्रेरित करती है.Win-Win का अर्थ है ऐसे समझौते और समाधान जो सभी के लिए लाभप्रद और संतोषजनक हैं. इसमें सभी   खाने को मिलती है, और वो काफी अच्छाtaste  करती है.

एक व्यक्ति या संगठन जोWin-Win attitude  के साथ समस्याओं को हल करने की कोशिश करता है उसके अन्दर तीन मुख्य बातें होती हैं:

Integrity / वफादारी :अपनेvalues, commitments औरfeelings के साथ समझौता ना करना.

Maturity / परिपक्वता: अपनेideas औरfeelings  को साहस के साथ दूसरों के सामने रखना और दूसरों के विचारों और भावनाओं की भी कद्र करना.

Abundance Mentality / प्रचुरता की मानसिकता :इस बात में यकीन रखना की सभी के लिए बहुत कुछ है.

बहुत लोग either/or  केterms  में सोचते हैं: या तो आप अच्छे हैं या आप सख्त हैं. Win-Win में दोनों की आवश्यकता होती है. यह साहस और सूझबूझ के बीचbalance  करने जैसा है.Win-Win को अपनाने के लिए आपको सिर्फ सहानभूतिपूर्ण ही नहीं बल्कि आत्मविश्वाश से लबरेज़ भी होना होगा.आपको सिर्फ विचारशील और संवेदनशील ही नहीं बल्कि बहादुर भी होना होगा.ऐसा करनाकि -courage और  consideration मेंbalance  स्थापित हो, यहीreal maturity  है, और Win-Win  के लिए बेहद ज़रूरी है.

Habit 5: Seek First to Understand, Then to Be Understood / पहले दूसरों को समझो फिर अपनी बात समझाओ.

Communication  लाइफ की सबसे ज़रूरी skill  है. आप अपने कई साल पढना-लिखना और बोलना सीखने में लगा देते हैं. लेकिन सुनने का क्या है? आपको ऐसी कौनसी training  मिली है, जो आपको दूसरों को सुनना सीखाती है,ताकि आप सामने वाले को सच-मुच अच्छे से समझ सकें? शायद कोई नहीं? क्यों?

अगर आप ज्यादातर लोगों की तरह हैं तो शायद आप भी पहले खुद आपनी बात समझाना चाहते होंगे. और ऐसा करने में आप दुसरे व्यक्तिको पूरी तरह ignore कर देते होंगे , ऐसा दिखाते होंगे कि आप सुन रहे हैं,पर दरअसल आप बस शब्दों को सुनते हैं परउनके असली मतलब को पूरी तरह से miss  कर जाते हैं.

सोचिये ऐसा क्यों होता है? क्योंकि ज्यादातर लोग इस intention  के साथ सुनते हैं कि उन्हें reply  करना है, समझना नहीं है.आप अन्दर ही अन्दर खुद को सुनते हैं और तैयारी  करते हैं कि आपको आगे क्या कहना है,क्या सवाल पूछने हैं, etc. आप जो कुछ भी सुनते हैं वो आपके life-experiences से छनकर आप तक पहुचता है.

आप जो सुनते हैं उसे अपनी आत्मकथा से तुलना कर देखते हैं कि ये सही है या गलत. और इस वजह से आप दुसरे की बात ख़तम होने से पहले ही अपने मन में एक धारणा बना लेते हैं कि अगला क्या कहना चाहता है.  क्या ये वाक्य कुछ सुने-सुने से लगते है?

अरे, मुझे पता है कि तुम कैसा feel  कर रहे हो.मुझे भी ऐसा ही लगा था. मेरे साथ भी भी ऐसा ही हुआ था.” ” मैं तुम्हे बताता हूँ कि ऐसे वक़्तमें मैंने क्या किया था.” चूँकि आप अपने जीवन के अनुभवों के हिसाब से ही दूसरों को सुनते हैं. आप इन चारों में से किसी एक तरीके से ज़वाब देते हैं:

Evaluating/ मूल्यांकन:पहले आप judge करते हैं उसके बाद सहमत या असहमत होते हैं.
Probing / जाँच :आप अपने हिसाब से सवाल-जवाब करते हैं.
Advising/ सलाह :आप सलाह देते हैं और उपाय सुझाते हैं.
Interpreting/ व्याख्या :आप दूसरों के मकसद और व्यवहार को अपने
experience के हिसाब से analyze करते हैं.

शायदआप सोच रहे हों कि, अपनेexperience के हिसाब से किसी सेrelate करने में बुराई क्याहै?कुछsituations में ऐसा करना उचित हो सकत है, जैसे कि जब कोई आपसे आपके अनुभवों के आधार पर कुछ बतानेके लिए कहे, जब आप दोनों के बीच एकtrust कीrelationship हो. पर हमेशा ऐसा करना उचित नहीं है.

Habit 6: Synergize / ताल-मेल बैठाना


सरल शब्दों में समझें तो , “दो दिमाग एक से बेहतर हैं ” Synergize करने का अर्थ है रचनात्मक सहयोग देना. यह team-work है. यह खुले दिमाग से पुरानी समस्याओं के नए निदान ढूँढना है.

पर ये युहीं बस अपने आप ही नहीं हो जाता. यह एक process है , और उसी process से, लोग अपनेexperience और expertise को उपयोग में ला पाते हैं .अकेले की अपेक्षा वो एक साथ कहीं अच्छाresult दे पाते हैं. Synergy से हम एक साथ ऐसा बहुत कुछ खोज पाते हैं जो हमारे अकेले खोजने पर शायद ही कभी मिलता. ये वो idea है जिसमे the whole is greater than the sum of the parts. One plus one equals three, or six, or sixty–या उससे भी ज्यादा.

जब लोग आपस में इमानदारी से interact करने लगते हैं, और एक दुसरे से प्रभावित होने के लिए खुले होते हैं , तब उन्हें नयी जानकारीयाँ मिलना प्रारम्भ हो जाता है. आपस में मतभेद नए तरीकों के आविष्कार की क्षमता कई गुना बढ़ा देते हैं.

मतभेदों को महत्त्व देना synergy का मूल है. क्या आप सच-मुच लोगों के बीच जो mental, emotional, और psychological differences होते हैं, उन्हें महत्त्व देते हैं? या फिर आप ये चाहते हैं कि सभी लोग आपकी बात मान जायें ताकि आप आसानी से आगे बढ़ सकें? कई लोग एकरूपता को एकता समझ लेते हैं.

आपसी मतभेदों को weakness नहीं strength के रूप में देखना चाहिए. वो हमारे जीवन में उत्साह भरते हैं.

Habit 7: Sharpen the Saw कुल्हाड़ी को तेज करें

Sharpen the Saw का मतलब है अपने सबसे बड़ी सम्पत्ति यानि खुद को सुरक्षित रखना. इसका अर्थ है अपने लिए एक प्रोग्राम डिजाईन करना जो आपके जीवन के चार क्षेत्रों physical, social/emotional, mental, and spiritual में आपका नवीनीकरण करे. नीचे ऐसी कुछ activities केexample दिए गए हैं:

§ Physical / शारीरिक :अच्छा खाना, व्यायाम करना, आराम करना
§ Social/Emotional /:सामजिक/भावनात्मक :औरों के ससाथ सामाजिक और

अर्थपूर्ण सम्बन्ध बनाना.


§ Mental / मानसिक :पढना-लिखना, सीखना , सीखना.
§ Spiritual / आध्यात्मिक :प्रकृति के साथ समय बीताना , ध्यान करना, सेवा करना.

आप जैसे -जैसे हर एक क्षेत्र में खुद को सुधारेंगे, आप अपने जीवन में प्रगति और बदलाव लायेंगे.Sharpen the Saw आपको fresh रखता है ताकि आप बाकी की six habits अच्छे से practice कर सकें. ऐसा करने से आप challenges face करने की अपनी क्षमता को बढ़ा लेते हैं. बिना ऐसा किये आपका शरीर कमजोर पड़ जाता है , मस्तिष्क बुद्धिरहित हो जाता है, भावनाए ठंडी पड़ जाती हैं,स्वाभाव असंवेदनशील हो जाता है,और इंसान स्वार्थी हो जाता है. और यह एक अच्छी तस्वीर नहीं है, क्यों?

आप अच्छा feel करें , ऐसा अपने आप नहीं होता. एक balanced life जीने काअर्थ है खुद कोrenew करने के लिए ज़रूरी वक़्त निकालना.ये सब आपके ऊपरहै .आप खुद को आराम करकेrenew कर सकते हैं. या हर काम अत्यधिक करके खुद को जला सकते हैं . आप खुद को mentallyऔर spiritually प्यार कर सकते हैं , या फिर अपने well-being से बेखबर यूँ ही अपनी ज़िन्दगी बिता सकते हैं.आप अपने अन्दर जीवंत उर्जा का अनुभव कर सकते हैं या फिर टाल-मटोल कर अच्छे स्वास्थ्य और व्यायाम के फायदों को खो सकते हैं.

आप खुद को पुनर्जीवित कर सकते हैं और एक नए दिन का स्वागत शांति और सद्भावके साथ कर सकते हैं.या फिर आप उदासी के साथ उठकर दिन को गुजरते देख सकतेहैं. बस इतना याद रखिये कि हर दिन आपको खुद को renew करने का एक नया अवसरदेता है, अवसर देता है खुद को recharge करने का. बस ज़रुरत है
""Desire (इच्छा), Knowledge( ज्ञान) और Skills(कौशल) की"".

Source : http://www.thebhaskar.com/2012/08/7-habits-super-successful.html

Monday, April 2, 2012

रोल मॉडल ने बदली जीवन की दिशा - N. R. Nayaynana



  • इंफोसिस के संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति की गिनती दुनिया के एक दर्जन सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में होती है। उन्होंने पूरी दुनिया में भारत को एक नई पहचान दी। पेश है न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के छात्रों के सामने दिया गया उनका एक भाषण: मैं यहां आपके साथ अपने जीवन के कुछ अनुभव बांटना चाहता हूं। उम्मीद है कि ये अनुभव जीवन के संघर्ष में आपके लिए मददगार साबित होंगे। मेरे जीवन के ये वे अहम क्षण थे, जिन्होंने मेरे भविष्य की दिशा तय की। बात वर्ष 1968 की है। वह रविवार की एक खूबसूरत सुबह थी। उस समय मैं आईआईटी कानपुर में था। उस दिन मुझे अमेरिका की एक जानी-मानी यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर वैज्ञानिक से मिलने का मौका मिला। वह वैज्ञानिक कंप्यूटर साइंस के क्षेत्र में हो रहे क्रांतिकारी विकास के बारे में बात कर रहे थे। मुझे लगा कि उनकी बातों में दम है। मैं उनके तर्क से प्रभावित था। उस दिन नाश्ता करने के बाद मैं सीधे लाइब्रेरी गया। मैंने कंप्यूटर साइंस से संबंधित चार-पांच पेपर पढ़े और फैसला किया कि मैं कंप्यूटर साइंस ही पढ़ूंगा। मित्रो, आज जब मैं पलटकर देखता हूं, तो पाता हूं कि कैसे एक रोल मॉडल किसी युवा छात्र का भविष्य बदल सकता है। मैंने अनुभव किया है कि एक अच्छी सलाह आपके लिए तरक्की के नए दरवाजे खोल सकती है। यह मेरे साथ हुआ।
    उद्यमिता से ही दूर होगी गरीबी
    दूसरी घटना वर्ष 1974 की है। जब मैं साइबेरिया और बुल्गारिया के बीच निस रेलवे स्टेशन पहुंचा, उस समय रात के नौ बज रहे थे। रेस्तरां बंद हो चुका था। बैंक भी बंद थे। मेरे पास स्थानीय मुद्रा नहीं थी, इसलिए मैं खाना नहीं खरीद सका। मैं रात में रेलवे प्लेटफॉर्म पर ही सोया। अगले दिन मैं सोफिया एक्सप्रेस में सवार हुआ। उस डिब्बे में एक लड़की और एक लड़का बैठे थे। मैं उस लड़की से फ्रेंच भाषा में बात करने लगा। वह उस देश में रहने वाले लोगों की पीड़ा पर बात करने लगी। इस बीच एक पुलिस वाले ने हमें रोका। दरअसल उसे लगा था कि हम बुल्गारिया की कम्युनिस्ट सरकार की आलोचना कर रहे हैं। लड़की को छोड़ दिया गया, पर मेरा सामान जब्त कर लिया गया। मुझे एक छोटे कमरे में बंद कर दिया गया। मैं उस छोटे-से कमरे में 72 घंटों तक बिना कुछ खाए-पिए रहा। मुझे उम्मीद नहीं थी कि अब मैं कभी दोबारा बाहर की दुनिया देख पाऊंगा। अगले दिन कमरे का दरवाजा खुला और मुझे घसीटकर बाहर लाया गया। मुझे एक ट्रेन के डिब्बे में बंद कर दिया गया और कहा गया कि मुझे इस्तांबुल में बीस घंटे के बाद रिहा कर दिया जाएगा। ट्रेन के गार्ड ने कहा, तुम मित्र देश भारत से हो, इसलिए हम तुम्हें जाने दे रहे हैं। वे शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं। इस्तांबुल तक मैं अकेले आया। मैं भूख से बिलबिला रहा था। बुल्गारिया के उस गार्ड के उस वाक्य ने मुझे एक भ्रमित वामपंथी से दृढ़ पूंजीपति में तब्दील कर दिया। तब मैंने सोचा कि समाज में गरीबी दूर करने का एकमात्र साधन उद्यमिता है, जिसकी मदद से हम बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा कर सकते हैं। 1981 में इंफोसिस की स्थापना के साथ ही यह संकल्प पूरा हुआ। इंफोसिस के जरिये हम हजारों लोगों को बेहतरीन रोजगार देने में सफल रहे।  
    हार से मिलती है सीख
    इंफोसिस कंपनी चलाने के दौरान मैंने कई चीजें सीखीं। सबसे पहले मैं अनुभव से मिलने वाली सीख की बात करूंगा। अनुभव से हम बहुत कुछ सीखते हैं। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम कैसे व क्या सीखते हैं। अगर सीखने की गुणवत्ता बहुत अधिक है, तो हम वह हासिल कर सकते हैं, जिसके बारे में हमने सोचा भी न हो। इंफोसिस इस बात का बेहतरीन उदाहरण है। मेरा मानना है कि जीत की बजाय हम हार से ज्यादा सीखते हैं। हारने पर हम गहराई से हार की वजह पर गौर करते हैं और अपने आपको सुधार पाते हैं। जाहिर है, जब हम खुद को सुधारते हैं, तो हमारे लिए तरक्की के रास्ते खुलते हैं। दूसरी तरफ, जीत से हमारे पुराने सभी कार्यों को समर्थन मिलता है और हमें लगता है कि हमने जो किया, सही किया।  
    बदलाव की क्षमता
    मेरी राय में बेहतरीन लीडर वह है, जो खुद बदलाव के लिए तैयार रहे और अपनी टीम के लोगों में भी सकारात्मक बदलाव की क्षमता रखे। सफल लीडर वह है, जो अपनी टीम के सदस्यों में नई उम्मीदें जा सके, उन्हें बदलाव के लिए तैयार करे और उनके अंदर मौजूद नकारात्मक भावना खत्म कर सके। सफलता के लिए  उम्मीदें जरूरी हैं। इसलिए उम्मीदों को बढ़ावा मिलना चाहिए। अपनी टीम को सपने देखने दीजिए। उनके अंदर विश्वास पैदा करिए, ताकि वे आगे बढ़कर नई ऊंचाइयां हासिल कर सकें।  
    मूल्यों से समझौता नहीं
    जीवन में सच्ची सफलता पाने के लिए जरूरी है कि आप अपने मूल्यों पर डटे रहें। आप जो कहें, उसे पूरा करें। ऐसा करने से ही लोगों के बीच आपकी विश्वसनीयता बनती है। यह जरूरी है। बिना मूल्यों के आप लंबी दूरी नहीं तय कर सकते। किसी भी क्षेत्र में तरक्की के लिए सिद्धांतों का पालन होना चाहिए। जरूरी है कि जब आप कोई फैसला करें, तो आपका अंत:करण उसके लिए राजी हो। अंतरात्मा के खिलाफ किए गए कार्यों से कभी सफलता नहीं मिल सकती।  एक और बात मैंने सीखी है कि हरेक के जीवन में मौके आते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि हम उन मौकों को कैसे लेते हैं। हम उन मौकों को यूं ही जाने देते हैं या फिर पूरे उत्साह के साथ उनका फायदा उठाते हुए अपने लिए नए रास्ते तलाशते हैं।
     अंतिम बात
    जब आपको लगे कि आप जो चाहते थे, आपने उसे हासिल कर लिया है, तो ध्यान रखें कि आप उस संपत्ति के अस्थायी संरक्षक हैं। चाहे वह संपत्ति आर्थिक हो, बौद्धिक हो या फिर भावनात्मक। आप किसी संपत्ति के स्थायी संरक्षक नहीं हो सकते। इसलिए यह आपकी जिम्मेदारी है कि उस संपत्ति को दूसरों के साथ बांटें। ऐसे लोगों के साथ, जो कमजोर हैं और किन्हीं वजहों से पीछे रह गए हैं।
    प्रस्तुति - मीना त्रिवेदी   Source : http://www.livehindustan.com/news/editorial/aapkitaarif/article1-story-57-65-226016.html

    Saturday, March 24, 2012

    जियो तो ऐसे जियो ,जैसे हर दिन आखरी हो

    "जब मैं 17 साल का था तो मैंने  पढ़ा था जो कुछ ऐसा था ,' अगर आप हर दिन को इस  तरह जिए कि मानो वह आपका आखिरी दिन है तो एक दिन आप बिलकुल सही जगह होगे .'
    इस वाक्य ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला और उसके बाद से यह मेरा नियम हो गया कि मैं हर दिन अपना चेहरा आईने में देखता हूँ और अपने आप से पूंछता हूँ ,अगर आज मेरी जिंदगी का आखरी दिन हो तो क्या मैं वह करना चाहूँगा जो मैं आज करने वाला हूँ और लगातार कई दिनों तक जब इसका जबाब नहीं होता है तो मैं समझ जाता हूँ कि मुझे कुछ बदलने की जरूरत है.
    कोई भी मरना नहीं चाहता. यहाँ तक कि जिन लोगो को पता है कि स्वर्ग में जायेंगे , वो भी नहीं. फिर भी मृत्यु वो गंतव्य है , जो हम सभी के हिस्से में आती है . कोई कभी इससे बच नहीं सका है . यह सब वैसा ही है जैसा उसे होना चाहिए क्योंकि मृत्यु जीवन का एकमात्र सर्वोतम अविष्कार है. यह जीवन को बदलने वाला तत्व है. यह नए के लिया रास्ता बनाने के लिए पुराने को साफ़ करता है .
    आपका समय बहुत सिमित है , इसलिए किसी दुसरे के जिन्दगी जीने में उसे बर्बाद न करे . मान्यताओं के शिकंजे में न फंसे - जिसमें आप उन परिणामों के साथ जीते है , जिसके बारे में दुसरे सोचते है . दुसरे के मत और विचारों के शोर से अपने अन्दर की आवाज को दबने न दे और सबसे महत्वपूर्ण बात, अपने दिल और पूर्वाभासों का अनुसरण करने का सहस रखे .ये दोनों किसी तरह पहले से ही जानते है की आप सच में क्या बनना चाहते है . बाकि सब बांते अप्रधान है."

    (पैनक्रियाज के कैंसर से लडाई में  जित  हासिल करके लौटने के तुरंत बाद स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सन 2005 में एप्पल इंक के सी .इ .ओ. स्टीव जाब्स के कुछ शब्द )

    Tuesday, March 6, 2012

    अच्छा सोचिए, सेहतमंद बनिए

    जिनकी सोच पॉजिटिव वे किसी भी महफिल में छा जाते हैं
    लाइफ में जैसे-जैसे भौतिक सुविधाएं बढ़ती जा रही हैं, वैसे-वैसे नेगेटिव सोच बढ़ती जा रही है। निगेटिव थिंकिंग का ही आलम है कि हर तरफ निराशा, हिंसा का वातावरण बनता जा रहा है। आइए जानें पॉजिटिव थिंकिंग के फायदे : काउंसलर के अनुसार,सकारात्मक सोच से आदमी के अंदर ऊर्जा आती है। मुश्किल वक्त भी कट जाता है।

    साइकोलॉजिस्ट बताते हैं-पॉजिटिव थिंकिंग से रास्ते की मुश्किलें हल हों या न हों, मन का तनाव जरूर खत्म हो जाता है। जिनकी सोच पॉजिटिव रहती है वे किसी भी महफिल में छा जाते हैं। रिसर्च के अनुसार, सकारात्मक सोचने वालों की उम्र भी अधिक होती है। कुल मिलाकर सकारात्मक सोच 'हैप्पी लांग लाइफ' की कुंजी है। जॉब के लिए भी जब आप जाते हैं तो आपके पॉजिटिव एटीट्यूड को नोट किया जाता है।

    एक बार इन्हें अपनाएं

    फ्रेंड सर्कल : पॉजिटिव थिंकिंग वाले लोगों के साथ रहें। यह बहुत जरूरी है आप के आस-पास के लोग सकारात्मक सोच वाले हों। फिर देखिए कि कैसे मुश्किल हालात भी आसान हो जाते हैं।

    दयालुता - इसकी शुरुआत भी आप अपने आप से करें। खुद के प्रति दयालु रहें आपकी सोच पॉजिटिव हो जाएगी। फिर अपने आसपास के लोगों को जानिए कि किसे आपकी भावनात्मक या सामाजिक जरूरत है? सबको दया की दृष्टि से देखना शुरू कीजिए आपके मन में खुद ब खुद कोमल भाव आने लगेगें।

    विश्वास- जी हां, फरेब की इस दुनिया में विश्वास के साथ चलें। आपका विश्वास आपको दिशा देगा। सबसे ज्यादा जरूरी है स्वयं पर विश्वास। फिर ईश्वर पर विश्वास रखें कि वे आपके साथ कभी कुछ बुरा नहीं करेंगे बल्कि जो आपकी प्रगति के लिए बेहतर होगा वही प्रयोग आपके साथ भगवान करेगा।

    प्रेरणा - जिस व्यक्ति का काम अच्छा लगे उससे प्रेरणा लें। अखबार के अलावा किताबें पढ़ने की आदत डालें। हर किसी में अच्छी बातें तलाशें और जिनसे आप प्रभावित हों व जो समाज हित में हो उसे अपने जीवन में अपनाएं।

    स्माइल- सबसे अधिक जरूरी है एक प्यारी-सी, मीठी-सी स्माइल। आपका मुस्कुराना दूसरों से पहले आपको तनावमुक्त करता है। मुस्कान सोच में बदलाव लाती है।

    रिलैक्स्ड रहें - दिन भर में पचासों ऐसे कारण सामने आते है जिनसे खीज होती है, स्वस्थ रहने के लिए बेहतर है कि यह खीज आपके साथ क्षण भर ही रहे। तुरंत नियंत्रण पाने की कोशिश करें। खुद को परेशानी से तुरंत दूर करना ही सेहत के लिए बेहतर है।

    ध्यान बांटे- जो बात आपको ज्यादा परेशान कर रही है उससे अपना ध्यान हटा कर उन बातों की तरफ रूख कीजिए जो आपको अच्छी लगती है। जैसे ऑफिस में काम के बीच थोड़ी देर के लिए ब्रेक ले लीजिए और गूगल पर खूबसूरत फ्लॉवर्स या क्यूट बेबी सर्च कीजिए। जरूरी नहीं आप भी यही करें आप अपनी रूचि के इमेज तलाश कर सकते हैं। अगर आपको टेडी से प्यार है तो आप उसके आकर्षक फोटो देख लीजिए या फिर लिटिल बर्ड। च्वॉइस आपकी।

    प्यार के बारे में सोचें- हम सभी अपने जीवन में एक बार प्यार अवश्य करते हैं। स्वस्थ रहने के लिए वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है प्यार की मधुर स्मृतियां आपको ताकत देती है। याद रहे, प्यार की अच्छी और सुखद बातें ही सोचें ना कि तकलीफदेह बातें।

    प्यार के सुहाने पल मन में मीठी गुदगुदी का भाव जगाते हैं इसलिए ब्रेकअप के बजाय उससे पहले के लगाव और नए-नए आकर्षण की बातें सोचें आपको उनसे जीवन जीने की नई ऊर्जा मिलेगी।

    सकारात्मक सोच जीवन-संघर्ष में आपकी सच्ची साथी है। साथ ही आपको बीमारियों से भी बचाती है।

    Source: http://hi.shvoong.com/how-to/health/2203053-%E0%A4%9C-%E0%A4%A8%E0%A4%95-%E0%A4%B8-%E0%A4%9A-%E0%A4%AA/

    Thursday, January 12, 2012

    सक्सेस फॉर्मूला Scccess Formula

    आप अपनी जिंदगी में जो भी लक्ष्य निर्धारित करते हैं या जो भी बदलाव चाहते हैं, उनके बारे में अच्छी तरह से विचार कर लें। सोच लें कि आपकी इच्छा क्या है, जिंदगी से आप क्या चाहते हैं, जिंदगी में क्या बनना चाहते हैं। फिर इसको लिख लें। 

    दिन में इसे तीन बार पढ़ें और रात को सोते समय नियमित रूप से पढ़ें, ताकि यह आपके चेतन में अच्छी तरह बस जाए। बातचीत के दौरान भी अक्सर यह कहते रहें कि जीवन में आपका उद्देश्य क्या है। ऐसा करने से अपने विचार पर आपको यकीन आ जाएगा, साथ ही आपके रवैये में भी बदलाव नजर आने लगेगा। सफलता के लिए बदलाव जरूरी है। इससे आप सही और असली मुद्दों पर केंद्रित रहना सीख पाएंगे। 

    जब लक्ष्य का दृढ़ विश्वास मन में समा जाता है, तो मौकों को पहचानना भी हम सीखने लगते हैं। अवसर हमारे चारों और बिखरे होते हैं और उन अवसरों का लाभ उठाना हमारे हाथ में होता है। सफल व्यक्तियों के लिए मौकों को पहचानना और उनके अनुरूप काम करना अत्यंत जरूरी है। लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आपको लंबे समय तक बेहतर काम भी करना होता है, ताकि आप आम आदमी से आगे निकल सकें। लगातार किसी काम को करना सोचने में भले ही आसान लगे, पर वास्तव में उसे करने के लिए दृश्य निश्चय जरूरी है। इसके अलावा अनुशासन के साथ एक रुटीन से काम करना भी आवश्यक है। 

    किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए कुछ नियमों का पालन करना ही होता है। हम कहते तो हैं कि हमें अपने लक्ष्य पर खरा उतरना है, लेकिन उसके लिए कीमत चुकाने को तैयार नहीं होते। यदि आपको अपने लक्ष्य तक पहुंचने में कठिनाई आ रही हो, तो उसको दूर करने का प्रयास करें। कठिनाइयों का, चुनौतियों का सामना करने का तरीका आपको खुद ही ढूंढ़ना होगा। निर्धारित लक्ष्य तक यदि हम नहीं पहुंच पाते हैं, तो भी लक्ष्य निर्धारण से हमें किसी काम को व्यवस्थित तरीके से करने की प्रेरणा मिलती रहती है, जिसका फायदा हमें जीवन में किसी-न-किसी रूप में मिलता ही है।

    समय किसी के लिए नहीं ठहरता। इसलिए जो भी लक्ष्य निर्धारित करें, फटाफट उसके अनुरूप कार्य करना शुरू कर दें। साथ ही लंबे समय तक कड़ी मेहनत करें। इससे जी न चुराएं। जो भी काम करें, उसे पूरा जरूर करें। टालने की आदत आपको पीछे धकेलेगी। यह खुद से झूठ बोलने जैसा होगा। सकारात्मक रवैये के साथ काम करेंगे तो जरूर सफलता प्राप्त करेंगे।

    जोगिन्दर सिंह, पूर्व निदेशक, सीबीआई