Saturday, May 28, 2011

डा. राम मनोहर लोहिया की जन्मशती के मौक़े पर बयान एक अटल सत्य का -Dr. Anwer Jamal


 
जब आदमी को अपनी पैदाइश का असली मक़सद और उसे पाने का सही ज्ञान नहीं होगा तो चाहे उसकी नीयत कितनी भी नेक क्यों न हो ?
जीवन भर वह ख़ुद भी भटकेगा और दूसरों को भी भटकाएगा।इस्लाम में दीक्षित होना एक निंदनीय सा कर्म मान लिया जाता है और धर्म जो दे सकता था, उसे छोड़कर अपनी समझ से अपनी सुविधानुसार बहुत से दर्शन गढ़ लिए जाते हैं और अफ़सोस यह कि फिर उनका पालन करना भी वे अनिवार्य नहीं मानते। इंसान को सोचने-समझने की आज़ादी है और उसकी यही आज़ादी उसके लिए जी का जंजाल है क्योंकि इंसान इसका इस्तेमाल मालिक के हुक्म के मुताबिक़ न करके अपने मन के मुताबिक़ करता है। हरेक का मन और उसका चिंतन अलग है, सो रास्ते और दिशाएं भी अलग हो जाते हैं और उनके फ़ायदे और मक़सद भी। इस श्राप से मुक्ति दिला सके ऐसा कोई दर्शन दुनिया में न तो था और न है और न ही होगा।
कल्याण केवल धर्म में है, इस्लाम में है।
जो मानना चाहे मान ले, सत्य तो यही है।

यह पक्तियां लोकसंघर्ष पत्रिका के एक लेख को देखकर कहनी पड़ीं।
लोग भटकते रहें और हम देखते रहें, हमसे ऐसा होता भी तो नहीं।
इस लिंक पर जाकर आप भी उस लेख को देखिए जिसमें डा. लोहिया के चिंतन और उनकी कार्यप्रणाली का एक संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी विचारधारा के विरोधाभास और उसकी नाकामी को रेखांकित किया गया है।

Thursday, May 26, 2011

दुखद यह है कि इंसान ने अपनी शक्ति ख़ुदा का हुक्म भुलाकर इस्तेमाल की और दुनिया में तबाही फैल गई


ख़ुदा ने यह दुनिया इसलिए नहीं बनाई है कि इंसान यहां सदा रहे बल्कि उसने यह दुनिया अपने किसी बड़े मक़सद के लिए बनाई है और इंसान को भी उसने उसी बड़े मक़सद के लिए तैयार करने के लिए इस दुनिया में अस्थायी रूप से छोड़ रखा है। उसने इंसान को शक्ति दी और अपना हुक्म दिया। इंसान ने अपनी शक्ति उसका हुक्म भुलाकर इस्तेमाल की और दुनिया में तबाही फैल गई। दुखद यह है कि इंसान आज भी यही कर रहा है। अपनी तबाही का ज़िम्मेदार इंसान ख़ुद है कि इंसान वह करने के लिए तैयार नहीं है जिसे करने के लिए उसे पैदा किया गया और इस दुनिया में उसे रखा गया।
यह पंक्तियाँ श्री महेश बार्माटे  'माही' जी की पोस्ट पढ़कर लिखनी पडीं , जिसका लिंक यह है :

Sunday, May 15, 2011

अल्लामा इक़बाल की शायरी और जीवन संदेश Art of living

अल्लामा इक़बाल की शायरी को मैं इसलिए पसंद करता हूँ कि उसमें निराशा के लिए कोई जगह नहीं है. 
अल्लामा के बाज़ शेर तो सोने से लिखे जाने के लायक हैं . ऐसा ही एक शेर यह भी है . 
अल्लामा इकबाल फ़रमाते हैं कि


बादे मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब

ये हवाएं तुझे ऊँचा उठाने के लिए हैं


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शब्दार्थ ,
बादे मुख़ालिफ़-विपरीत हवा , उक़ाब-बाज़, एक परिंदा

आदमी को विपरीत हालात में भी अपनी सकारात्मकता बनाए रखनी चाहिए ।
अगर आदमी ऐसा कर पाए तो वह देखेगा कि मुश्किल बीत जाने के बाद उसमें 'कुछ गुण और कुछ ख़ूबियाँ' ऐसी उभर आई हैं जो पहले दबी हुई थीं । यही ख़ूबियाँ आदमी को समाज में ऊँचा उठाती हैं और सम्मान दिलाती हैं ।
महापुरूषों का आदर हम उनके उन गुणों के कारण ही करते हैं जो कि मुश्किल हालात में उनके अंदर हम देखते हैं और प्रेरणा पाते हैं।
इस बात को ढंग से जान लेने के बाद निराशा , पलायन और आत्महत्या जैसे भाव और कर्म के लिए कोई गुंजाइश बाक़ी नहीं बचती ।
हमारे देश और हमारे समाज के लिए आज ऐसी सोच की शदीद ज़रूरत है ।

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इस शेर को एक और एंगल से भी हमने आज ही बयान किया है बल्कि सच यह है कि पहले वही लिखा था , इसे बाद में लिखा है .
आप देखिये इस लिंक पर 

Friday, May 6, 2011

किस काम का अंजाम क्या होता है ?

जिस राष्ट्र में दूसरों का हक़ मारने और किसी अन्य के हक़ पर क़ब्ज़ा करने का चलन आम हो जाय, उसमें अल्लाह दुश्मन का ख़ौफ़ डाल देता है। जिस राष्ट्र में व्यभिचार फैल जाए वह विनाश को पहुंच जाता है। जहां नाप-तौल में बेईमानी हो वहां कमाई की बरकत ख़त्म हो जाती है। जहां ग़लत और जबरन फ़ैसले हों वहां ख़ून-ख़राबा होता है और जो क़ौम वायदे तोड़ती है, उस पर दुश्मन का क़ब्ज़ा हो जाता है।

Monday, May 2, 2011

...ज़रा सोचिये कि क्या आप वास्तव में 'मार्ग' पर हैं ? The Path

इंसान के जीवन का मकसद वही देगा जो जिसने उसे जीवन दिया. इंसान और अन्य जीवों को खाने की ज़रुरत है  तो हम देखते हैं कि भोजन हमारे लिए उपलब्ध है. हमें पीने की आवश्यकता है. और हमारे लिए पानी उपलब्ध है. हमें सांस लेने की ज़रुरत है, और हमारे लिए काफी वायु उपलब्ध है. लेकिन एक चीज़ हे जिसमें हम अन्य जीवों से भिन्न हैं. और वो है  हमारी सोचने की क्षमता, जवाबों की तलाश है. अब ज़ाहिर सी बात हे, अगर हमारी भौतिक आवश्यकताओं के लिए सब कुछ उपलब्ध हे, तो हमारी मानसिक और आध्यात्मिक ज़रूरतों के लिए भी कुछ उपलब्ध होना चाहिए. यही ज़रुरत वही के ज़रिये पूरी होती है.

इस सच को कहा है हमारे भाई मुशफिक ने इस पोस्ट पर

जीवन का एक मक़सद है, उसे पूरा कीजिए ताकि आपका जन्म सफल हो