ख़ुदा ने यह दुनिया इसलिए नहीं बनाई है कि इंसान यहां सदा रहे बल्कि उसने यह दुनिया अपने किसी बड़े मक़सद के लिए बनाई है और इंसान को भी उसने उसी बड़े मक़सद के लिए तैयार करने के लिए इस दुनिया में अस्थायी रूप से छोड़ रखा है। उसने इंसान को शक्ति दी और अपना हुक्म दिया। इंसान ने अपनी शक्ति उसका हुक्म भुलाकर इस्तेमाल की और दुनिया में तबाही फैल गई। दुखद यह है कि इंसान आज भी यही कर रहा है। अपनी तबाही का ज़िम्मेदार इंसान ख़ुद है कि इंसान वह करने के लिए तैयार नहीं है जिसे करने के लिए उसे पैदा किया गया और इस दुनिया में उसे रखा गया।
यह पंक्तियाँ श्री महेश बार्माटे 'माही' जी की पोस्ट पढ़कर लिखनी पडीं , जिसका लिंक यह है :
मैं माफ़ी चाहूँगा अनवर जी !
ReplyDeleteतथा सभी गणमान्य ब्लॉगरगण ...
मैंने ये कविता, ग़ज़ल या जो कहें आप इसे, किसी के दिल को दुःख पहूँचाने के लिए नहीं लिखी थी,
बस दिल में ख्याल आया तो लिख डाली.
फिर भी अगर आपको कुछ बुरा लगा हो तो क्षमा करें...
और तमाशा देखिए,कि इन्सान और हैवान के फर्क़ को भी हम ही परिभाषित कर रहे हैं!
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