उर्दू शायर निदा फाजली साहिब का एक शेर है:
अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए।
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए।
जी हां , बिखरी हुई चीजों को सजाना-संवारना बेहद जरूरी है , क्योंकि यह एक संपूर्ण उपचार पद्धति है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि आपके कार्यस्थल अथवा घर पर चीजें अस्त-व्यस्त या बेतरतीब पड़ी हैं तो उन्हें व्यवस्थित कीजिए ,इससे आपके मन के अंदर भी कोई सही चीज हो जाएगी। वास्तव में आपके कार्यस्थल तथा घर की स्थिति का आपके मन पर गहरा असर होता है। बिखरी हुई चीजें या अव्यवस्था आपके मन द्वारा आपके व्यक्तित्व में बिखराव पैदा कर देती हैं। जब आप बार-बार अपने आसपास के वातावरण में अव्यवस्था तथा बिखराव देखते हैं तो अंदर ही अंदर एक संवाद चलता है , ' सब कुछ कितना बेतरतीब कितना अस्त-व्यस्त है। ' यह संवाद आपके मन में अंकित हो जाता है। आपके मस्तिष्क की इसके लिए कंडीशनिंग हो जाती है। आपके मस्तिष्क की कोशिकाएं इसी दिशा में सक्रिय होकर आपके शरीर को प्रभावित कर आपके परिवेश के अनुसार ही आपका व्यक्तित्व बना देती हैं।
मेज पर या कभी-कभी टीवी पर भी यदि कंघी , जूते साफ करने का ब्रश , चाबियां , पेन , घडि़यां ,पैसे , दवाएं , पुराने अखबार तथा उन्हीं के बीच बिजली-पानी तथा टेलीफोन के बिल , रुमाल आदि सब एक साथ पड़े हैं और उन्हीं के ऊपर पड़ा है टेलीफोन तो यह किस बात का परिचायक है ?पुराने अखबार , न पहनने योग्य पुराने कपड़े तथा जूते , पुराने रिकॉर्ड , गत्ते के डिब्बे , टूटे-फूटे बर्तन , जंग लगा टॉर्च.. आखिर क्यों इन्हें आपने अपने मन पर बोझ बना रखा है ? इस बोझ से छुटकारा पाइए। उपयोगी चीजों को उनके उचित स्थान पर रखिए , अन्यथा वे उपयोगी नहीं रहेंगी।
अनुपयोगी चीजों को अलविदा कह दीजिए। बेकार की चीजों को कबाड़ी को बेच दीजिए , कुछ पैसे भी मिल जाएंगे , अन्यथा ये चीजें आपके मन को कबाड़खाना बना देंगी। सोचकर देखिए जो चीज पिछले पांच या दस सालों में एक बार भी प्रयोग नहीं हुई , क्या वह कबाड़ नहीं है ? क्या भविष्य में उसके प्रयोग की संभावना है ? चीजों को यथास्थान करीने से रखिए , सही तरीके से रखिए। इससे आपके अंदर , आपके मन में भी कोई चीज संवर जाएगी अर्थात आपके व्यक्तित्व में एक सुसंगतता पैदा हो जाएगी।
जब घर में तथा कार्यस्थल पर वस्तुएं व्यवस्थित होंगी तो हमें जीवन में बहुत सुविधा हो जाएगी। चीजें यथास्थान होंगी तो आसानी से उपलब्ध भी होंगी। उनको खोजने में समय का अपव्यय नहीं होगा , अत: आप झुंझलाहट तथा खीझ से बचेंगे , तनाव समाप्त हो जाएगा। वस्तुओं को सजी-संवरी तथा यथास्थान देखते ही मन में एक खुशी की लहर दौड़ जाएगी। आशंका , भय ,चिंता , क्रोध , तनाव , उदासी , ग्लानि , कुंठा , सुस्ती आदि निराशाजनक स्थितियों की अपेक्षा चुस्ती-फुर्ती , खुशी , विश्वास , प्रेम , करुणा , सहयोग , एकाग्रता , सुसंगतता , आराम आदि आशावादी स्थितियां उत्पन्न होंगी। प्रसन्नता की स्थिति में मन में सकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं ,जिससे शरीर में एण्डोर्फिन जैसे रसायन उत्पन्न होते हैं जो आपको पुन: प्रसन्नता प्रदान करते हैं। ये हॉर्मोन्स पूरे शरीर की अरबों-खरबों कोशिकाओं के साथ संवाद करते हैं तथा उन्हें उत्साह प्रदान करते हैं। यह सारी प्रक्रिया आपको रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है तथा व्याधियों से मुक्त भी करती है। इस प्रकार हमारी जीवनशैली का हमारे स्वास्थ्य से गहरा संबंध है।
आशावादी व्यक्ति के मस्तिष्क में एण्डोर्फिन नामक हॉर्मोन अधिक पाया जाता है। शांति की मन:स्थिति में न्यूरोपैप्टाइड नामक हॉर्मोन में वृद्धि होती है , जिससे हम प्राकृतिक एवं मानसिक सुख-शांति का अनुभव करते हैं। तनाव वाले विचार रोग प्रतिरोधक शक्ति कम करते हैं , अत: तनाव पैदा करने वाले विचारों , स्थितियों तथा परिवेश से बचिए।
कई बार देखने में आता है कि बच्चे पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं अथवा परीक्षा में फेल हो जाते हैं। इसका कारण भी होता है चीजों को सही तरीके से न रखना अर्थात सभी विषयों का व्यवस्थित अध्ययन न करना। जब उन्हें इसका आभास हो जाता है तो वे सही तरीके से कार्य करते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं। सफलता की खुशी से वे अधिक स्वस्थ भी हो जाते हैं। अधिक स्वस्थ होंगे तो आगे और अधिक अध्ययन कर सकेंगे , ज्यादा सफलता प्राप्त करेंगे , अधिक खुशी प्राप्त होगी और स्वास्थ्य में असाधारण सकारात्मक परिवर्तन होगा। आरोग्य , अच्छा स्वास्थ्य तथा अच्छा कैरियर इससे बढ़कर और क्या सफलता हो सकती है ?
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