अल्लामा इक़बाल की शायरी को मैं इसलिए पसंद करता हूँ कि उसमें निराशा के लिए कोई जगह नहीं है.
आदमी को विपरीत हालात में भी अपनी सकारात्मकता बनाए रखनी चाहिए ।
अगर आदमी ऐसा कर पाए तो वह देखेगा कि मुश्किल बीत जाने के बाद उसमें 'कुछ गुण और कुछ ख़ूबियाँ' ऐसी उभर आई हैं जो पहले दबी हुई थीं । यही ख़ूबियाँ आदमी को समाज में ऊँचा उठाती हैं और सम्मान दिलाती हैं ।
महापुरूषों का आदर हम उनके उन गुणों के कारण ही करते हैं जो कि मुश्किल हालात में उनके अंदर हम देखते हैं और प्रेरणा पाते हैं।
इस बात को ढंग से जान लेने के बाद निराशा , पलायन और आत्महत्या जैसे भाव और कर्म के लिए कोई गुंजाइश बाक़ी नहीं बचती ।
हमारे देश और हमारे समाज के लिए आज ऐसी सोच की शदीद ज़रूरत है ।
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अल्लामा के बाज़ शेर तो सोने से लिखे जाने के लायक हैं . ऐसा ही एक शेर यह भी है .
अल्लामा इकबाल फ़रमाते हैं कि
बादे मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
ये हवाएं तुझे ऊँचा उठाने के लिए हैं
...................................................................
शब्दार्थ ,
बादे मुख़ालिफ़-विपरीत हवा , उक़ाब-बाज़, एक परिंदा
आदमी को विपरीत हालात में भी अपनी सकारात्मकता बनाए रखनी चाहिए ।
अगर आदमी ऐसा कर पाए तो वह देखेगा कि मुश्किल बीत जाने के बाद उसमें 'कुछ गुण और कुछ ख़ूबियाँ' ऐसी उभर आई हैं जो पहले दबी हुई थीं । यही ख़ूबियाँ आदमी को समाज में ऊँचा उठाती हैं और सम्मान दिलाती हैं ।
महापुरूषों का आदर हम उनके उन गुणों के कारण ही करते हैं जो कि मुश्किल हालात में उनके अंदर हम देखते हैं और प्रेरणा पाते हैं।
इस बात को ढंग से जान लेने के बाद निराशा , पलायन और आत्महत्या जैसे भाव और कर्म के लिए कोई गुंजाइश बाक़ी नहीं बचती ।
हमारे देश और हमारे समाज के लिए आज ऐसी सोच की शदीद ज़रूरत है ।
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इस शेर को एक और एंगल से भी हमने आज ही बयान किया है बल्कि सच यह है कि पहले वही लिखा था , इसे बाद में लिखा है .
आप देखिये इस लिंक पर
"हमारे देश और हमारे समाज के लिए आज ऐसी सोच की शदीद ज़रूरत है।"
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कहते हो जमाल बाबू।
और यह भी कि, अल्लामा इक़बाल की शायरी में निराशा के लिए कोई जगह नहीं है।
होना भी नहीं चाहिये। १००% सही बात है यह।
खुशदीप जी की एक पोस्ट पर मुझे आपकी बात बिल्कुल वाजिब लगी डाक्टर साहब, सो मैनें भी यह कह दिया कि:-
ReplyDeleteडाक्टर अनवर जमाल बिल्कुल ठीक कह रहे हैं खुशदीप जी। आपको इस तरह किसी की मृत्यु का मजाक नहीं बनाना चाहिये। ओसामा ने अमरीका को छठी का दूध याद दिलाया है इसे भी नहीं भूलना चाहिये। पूरे विश्व की सेनायें जिसके पीछे पड़ी हों और फिर भी जो पति का धर्म निभा रहा हो वो दुबका हुआ नहीं कहलाता मिश्रा जी, अण्डर्स्टुड।
प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
ReplyDeleteदोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?
@ भाई झपाटा ! आपकी तबियत तो ठीक है न ?
ReplyDeleteअभी तारकेश्वर गिरी जी की पोस्ट देखी तो वहाँ भी आप मेरा ज़ोरदार समर्थन कर रहे हैं .
हा हा,
ReplyDeleteअरे भाई, जब आप सब जगह वाजिब वाजिब, सही सही बातें कहेंगे तो मेरे पास इसके सिवा चारा ही क्या है डॉक्टर साहब ?
@ झपाटा जी ! हम तो आज भी वही लिख रहे हैं लेकिन आपने पढ़ने वाला चश्मा बदल लिया है .
ReplyDeleteपति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझावअपने अनुभवों से तैयार पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में दंड संबंधी भा.दं.संहिता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव विधि आयोग में भेज रहा हूँ.जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के दुरुपयोग और उसे रोके जाने और प्रभावी बनाए जाने के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए हैं. अगर आपने भी अपने आस-पास देखा हो या आप या आपने अपने किसी रिश्तेदार को महिलाओं के हितों में बनाये कानूनों के दुरूपयोग पर परेशान देखकर कोई मन में इन कानून लेकर बदलाव हेतु कोई सुझाव आया हो तब आप भी बताये.
ReplyDeleteALLAMA IQBAL KI SHAYRI PR AAPKA VICHAR SARAHNIY HAI
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